सम्पादकीय

बेअसर 'संजीवनी'!

Rani Sahu
15 Dec 2021 6:46 PM GMT
बेअसर संजीवनी!
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भारत में कोरोना वायरस कार्यबल के अध्यक्ष डॉ. वीके पॉल का आकलन है

भारत में कोरोना वायरस कार्यबल के अध्यक्ष डॉ. वीके पॉल का आकलन है कि नया 'ओमिक्रॉन' स्वरूप के मद्देनजर हमारे कोरोना टीके 'अप्रभावी' साबित हो सकते हैं। कोरोना टीकों में जरूरी सुधार का ऐसा प्लेटफॉर्म होना चाहिए, जो वायरस के बदलते स्वरूप के साथ नया टीका तैयार कर सके। टीके में सुधार और संवर्द्धन हर तीन माह में नहीं किया जा सकता, लेकिन साल भर में टीकों को संशोधित किया जाना चाहिए, ताकि वे कोरोना के किसी भी प्रकार के खिलाफ कारगर साबित हो सकें। देश के ही विख्यात चिकित्सकों का मानना है कि 'ओमिक्रॉन' पर भी हमारे टीके एक सीमा तक 'प्रभावी' रहेंगे। उन्हें बिल्कुल खारिज नहीं किया जा सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन भी वायरस के किसी भी वेरिएंट पर मौजूदा टीकों को 'असरदार' मानती रही हैं। भारत में कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी टीके ही अभी लगाए जा रहे हैं। जायड्स कैडिला के टीके को आपात मंजूरी दिए काफी वक़्त हो गया है, लेकिन वह आम आदमी के लिए कब उपलब्ध होगा, ऐसी किसी तारीख की घोषणा नहीं की गई है। तीन खुराक वाले टीके के परीक्षण भी लगभग संपन्न हो चुके हैं।

उसे मंजूरी देने और उसकी उपलब्धता में भी समय लगेगा। कोरोना राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के विशेषज्ञों ने मौजूदा टीकों की ही तीसरी खुराक को 'बूस्टर डोज़' मानने से इंकार कर दिया है। वैसे भी भारत सरकार ने अदालत में हलफनामा दिया है कि 'बूस्टर डोज़' पर विशेषज्ञ अभी विचार-विमर्श कर रहे हैं। फिलहाल उसके लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं। सलाहकार समूह ने भी शोध और प्रयोग के अध्ययनों और निष्कर्ष तक पहुंचने में गुंज़ाइश की बात कही है। साफ है कि अभी भारत में 'बूस्टर डोज़' दूर की कौड़ी है। देश के आधा दर्जन राज्यों में 12-13 दिन में ही 'ओमिक्रॉन' के 61 संक्रमित मामलों की पुष्टि हो चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी खौफ जताया है कि 20 दिन में ही यह स्वरूप 77 देशों में फैल चुका है। अब मौत और अस्पताल में भर्ती होने के सिलसिले भी बढ़ेंगे, लेकिन यह स्वरूप कितना जानलेवा है, यह दावा करना अभी जल्दबाजी होगी। सारांश यह है कि 'ओमिक्रॉन' के संदर्भ में फिलहाल सभी टीकों की प्रभावशीलता सवालिया है। विशेषज्ञों में भी विरोधाभास हैं, जबकि अभी इस प्रकार के लक्षण और संक्रामकता और प्रभावों की अंतिम पुष्टि नहीं हुई है। कोई साक्ष्य और डाटा दुनिया के सामने नहीं है। अभी वैज्ञानिक अनुसंधानों में जुटे हैं। फिलहाल ये लक्षण स्पष्ट हुए हैं कि यह स्वरूप डेल्टा वेरिएंट के प्रभावों को पीछे छोड़ देगा। भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सीन के साथ व्यापक टीकाकरण का अभियान जारी है। कोविशील्ड अलग ब्रांड के नाम से, मूल कंपनी के साथ, ब्रिटेन में बेचा और लोगों को दिया जा रहा है। वहां 'अप्रभावी' की बात नहीं कही गई है।
कोवैक्सीन को भी विश्व स्वास्थ्य संगठन मान्यता दे चुका है और कई देशों में वह टीका लोगों को दिया जा रहा है। भारत में करीब 135 करोड़ खुराकें दी जा चुकी हैं। इनमें से 52 करोड़ से अधिक दोनों खुराकें लगाई जा चुकी हैं। यह वयस्क आबादी का करीब 41 फीसदी है। प्रधानमंत्री मोदी और विशेषज्ञ चिकित्सक अब भी टीकाकरण को लेकर आह्वान कर रहे हैं। घर-घर टीकाकरण के सर्वे किए जा रहे हैं और खासकर 60 साल की उम्र से ऊपरवालों को घरों में ही खुराकें दी जा रही हैं। यदि कोरोना के संदर्भ में 'संजीवनी' माने गए टीके ही बेअसर करार दिए जा सकते हैं, तो पूरा टीकाकरण ही बेमानी है। यह टीकों का भी प्रभाव हो सकता है कि हमारे देश में लाखों संक्रमित केस रोज़ाना दर्ज किए जाते थे, जो अब 5784 केस हररोज़ तक सिमट गए हैं। सक्रिय मरीज भी अस्पतालों में करीब 89,000 रह गए हैं। कोरोना लगातार नगण्य होता जा रहा है। टीकाकरण पर जो भी आकलन सामने रखा जाए, वह निर्णायक और पुष्ट होना चाहिए, क्योंकि यह लोगों की जि़ंदगी से जुड़ा मामला है। यदि मौजूदा स्थिति में टीके बेअसर घोषित किए जाते हैं, तो उनका विकल्प क्या होगा? नया टीका बनने में कमोबेश एक साल लग सकता है। यदि अनुमानों के मुताबिक, जनवरी-फरवरी में 'ओमिक्रॉन' के केस बढ़ते हैं, तो भारत के लोगों का क्या होगा? जाहिर है हमें कोरोना प्रोटोकॉल का निष्ठा के साथ पालन करना है। भीड़भाड़ से बचें, मास्क पहनें और हाथों को बार-बार साबुन से धोएं अथवा सेनेटाइज करें। ऐसा करके भी हम कोरोना के फैलाव को रोक सकते हैं।

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