सम्पादकीय

क्यारियों में उगता व्यक्तिवाद

Subhi
4 July 2022 4:41 AM GMT
क्यारियों में उगता व्यक्तिवाद
x
पिछले दिनों हमारे एक युवा संबंधी को विदेश से आना था। उन्हें हमारे यहां ही रुकना था। स्वाभाविक ही था कि जहां भी संभव हो सके, खरीदारी भी हो। हमने उन्हें सुझाया कि आते हुए सामान कम लाएं, जिसका वजन कम रहे

प्रभात कुमार: पिछले दिनों हमारे एक युवा संबंधी को विदेश से आना था। उन्हें हमारे यहां ही रुकना था। स्वाभाविक ही था कि जहां भी संभव हो सके, खरीदारी भी हो। हमने उन्हें सुझाया कि आते हुए सामान कम लाएं, जिसका वजन कम रहे, ताकि वापस जाते समय जगह बची रहे और यहां से खरीदा गया सामान बिना किसी अतिरिक्त किराया चुकाए ले जाया जा सके। पिछले कुछ समय से किराए की बढ़ी दरों से खबरदार रहते हुए यह उपाय जरूरी है। आमतौर पर जो चीजें विदेश में महंगी मिलती हैं, उन्हें भारतीय यहां से खरीद कर ले जाते हैं। हमारे वे संबंधी दो बड़े अटैची ले लाए। एक में उनकी पत्नी अपने काफी कपड़े ले आई थीं और कह रही थीं कि कपड़े पहनते हुए समझ नहीं आता कि कौन-सा पहना जाए। इसलिए मैं सारे ले आई।

मुझे लगा कि इनका काम कुछ कम कपड़ों से भी चल सकता था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। मैंने उनके पति को सुझाव दिया कि कभी भी कहीं जाना हो तो कम से कम सामान ले जाना चाहिए, जिसमें कपड़े भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यह आपका दृष्टिकोण है और जरूरी नहीं कि यही दूसरों का भी हो। मैंने उनसे कहा कि यह सलाह मैं आपको दे रहा हूं, लेकिन यह नजरिया सिर्फ मेरा नहीं है। यह यात्रा और पर्यटन विशेषज्ञों का व्यावहारिक सुझाव है जो वास्तव में बहुत फायदेमंद भी है।

किसी भी संदर्भ में उचित बात या सुझाव क्या है, इस बारे सुनने या मानने के लिए ज्यादातर लोग तैयार नहीं होते हैं। इसका सीधा कारण समाज में बढ़ती समृद्धि की क्यारियों में उगता व्यक्तिवाद है। किसी व्यक्ति की बात मानने के लिए दूसरा बाध्य नहीं है। सभी को अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जीने का अधिकार है, लेकिन इस व्यक्ति या उस व्यक्ति की बात से अलग है जिंदगी में उचित विचार, जिसे तरजीह देकर अपनी और दूसरों की भलाई के लिए स्वीकार करना लाभदायक रहता है। इस संदर्भ में अगर हम कहीं की भी यात्रा करते हुए कम मगर जरूरी सामान साथ रखेंगे तो हमारे पास कम और छोटे थैले होंगे, जिन्हें उठाना, सामान निकालना और रखना आसान होगा। अगर हम सार्वजनिक परिवहन से सफर कर रहे हैं तो और सहज रहेगा। उचित बात मान कर बेहतर रहेगा।

उचित सामान ही नहीं स्वास्थ्य, खाना-पीना, बातचीत, सलाह-मशविरा, उपहार आदि बारे भी उचित सोचा जाना जरूरी है। स्वास्थ्य की ही बात करें तो कई स्तर पर खयाल रखा जाना अभी जरूरी है। काफी लोग अपने स्वास्थ्य के बारे जागरूक हो चुके हैं, लेकिन अभी भी ऐसे लोग हैं जो अपने स्वास्थ्य बारे उचित देखभाल न करते हुए लापरवाही बरत रहे हैं। यानी वे उचित उपाय नहीं कर रहे हैं। यह समझना बहुत जरूरी है कि जो व्यक्ति स्वस्थ है, वह वास्तव में दौलतमंद है।

वह जितना चाहे मेहनत कर सकता है। अपनी जिंदगी को आरामदेह बनाने के लिए पैसा कमा सकता है। वर्तमान जीवन शैली में काम पर तो ध्यान दिया जा रहा है, लेकिन अपने शरीर के रखरखाव के बारे में उदासी फैली हुई है। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों ने सक्रिय भूमिका अदा की है। मोटापा बढ़ रहा है, जो धीरे-धीरे अपनी सहयोगी बीमारियों को शरीर में ला रहा है। कम उम्र के कारण शरीर अभी सब सह रहा है, लेकिन वास्तव में शरीर की हर कोशिका पर असर तो पड़ ही रहा है।

जीवन जीने की इस मनचाही, मगर नुकसानदेह जीवन शैली जीना बिल्कुल उचित नहीं है। इस बारे में सिर्फ अपनी पसंद, व्यवस्था या दूसरों की तरह जीना जरूरी नहीं है। हर चीज महंगी हो रही है, इसलिए मेहनत से अर्जित धन को समझदारी से खर्च करना लाजिमी है। यानी उचित निर्णय जरूरी है।

इस जरूरत के संदर्भ में आपस में विचारों का आदान-प्रदान करना बेहतर रहेगा। यों तो बाजार आपकी व्यावसायिक मदद करने के लिए झूठी मुस्कुराहटें चिपकाए आपकी बगल में तैयार खड़ा है।

लेकिन यह बाजार आपका खर्चा बढ़ा सकता है। आपको फुसला कर फालतू चीजें खरीदवाता है। ऐसे में अपने विवेक का उचित प्रयोग कर पाएंगे, तभी उचित निर्णय लिया जा सकता है। अक्सर यह होता है कि पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलावों के कारण आजकल अधिकतर लोगों को अपनी बात ही सही लगती है। सामने वाले की बात को बिना सोचे-समझे विचार मंच से हटा देना रिवायत बनती जा रही है। लेकिन सामने वाले या किसी और की बात सही भी हो सकती है।

उचित-अनुचित निर्धारण के बारे में दुनिया के हर क्षेत्र में किंतु-परंतु पसरे होते हैं। कुछ विशेष अधिकार प्राप्त खास व्यक्ति निर्णय लेते हैं, लेकिन उनका निर्णय उनकी नजर में सही होता है, उचित नहीं होता। यहीं सीखने का महत्त्व बढ़ जाता है। सीखने के लिए हर लम्हा शुभ होता है और किसी से भी सीखा जा सकता है। हर व्यक्ति के पास चौबीस घंटे ही होते हैं, काम को करने के तरीके का ही फर्क होता है। उम्र का बंधन नहीं होता। सिर्फ उचित क्या है, यह जान और चुन लिया जाए तो जिंदगी के साथ हमारा और जिंदगी का हमारे साथ व्यवहार बदल जाता है।


Next Story