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- भारत का रुख
Written by जनसत्ता: भारत ने रूस से फौरन युद्ध खत्म करने की अपील कर अपना रुख साफ कर दिया है। शुक्रवार को दिल्ली में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा कि युद्ध अब बंद होना चाहिए और शांति के प्रयासों में रूस जो भी मदद चाहेगा, भारत उसमें अपना योगदान देगा। रूसी विदेश मंत्री लावरोव ऐसे वक्त में भारत आए हैं जब यूक्रेन पर रूस के हमले जारी हैं और युद्ध रोकने के लिए तुर्की में शांति वार्ता के दौर भी चल रहे हैं।
लावरोव की भारत यात्रा ज्यादा महत्त्वपूर्ण इसलिए भी मानी जा रही है कि गुरुवार को अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह और ब्रिटेन की विदेश मंत्री एलिजाबेथ ट्रुस ने भी नई दिल्ली पहुंच कर विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की थी और भारत पर रूस के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार करने का दबाव बनाया था। पर लावरोव की यात्रा से यह तो साफ हो गया है कि भारत के साथ रिश्तों को लेकर रूस आज भी पहले जितना ही आश्वस्त है। गौरतलब है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत ने अब तक तटस्थता की नीति अपनाई है। इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी रूस के खिलाफ प्रस्तावों पर मतदान में भी भारत ने हिस्सा नहीं लिया। जाहिर है, रूस इसके अर्थ को समझ रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका और पश्चिमी देश भारत पर लगातार दबाव बना रहे हैं कि वह उनके खेमे में आ जाए और रूस के खिलाफ आवाज उठाए। अमेरिका तो कई मौकों पर भारत के रुख को लेकर नाराजगी भी जता चुका है। वह भारत पर लगातार दबाव बना रहा है कि वह रूस से कच्चा तेल न खरीदे और हथियारों के सौदे न करे। रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने को लेकर तो अमेरिका पहले से ही खिसियाया हुआ है। अमेरिका ने तो यहां तक धमकी दी है कि वह रूस पर पाबंदी के बाद उन देशों पर भी प्रतिबंध लगा सकता है जो रूस के साथ व्यापार कर उसका सहयोग करेंगे। भारत पर दबाव बनाने के इरादे से ही पिछले दिनों जापान के प्रधानमंत्री भी भारत आए थे।
उसके बाद आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने भी अपने भारतीय समकक्ष के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए शिखर बैठक की थी। पर भारत ने अपने रुख और तटस्थता की नीति पर कायम रहते हुए अमेरिका सहित पश्चिमी देशों को एक बड़ा संदेश तो दे ही दिया है कि वह किसी के दबाव में आने वाला नहीं है। उसके लिए उसका राष्ट्रहित सर्वोपरि है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक राजनीति में भारत का कद बढ़ा है। चाहे रूस का खेमा हो या अमेरिका का, सब समझ रहे हैं कि भारत को अब दबाया नहीं जा सकता। और आखिर भारत को किसी के आगे झुकना भी क्यों चाहिए! वह चाहे जिससे तेल खरीदे या हथियार खरीदे, यह उसकी स्वतंत्र नीति और उसका अधिकार है।
अमेरिका और ब्रिटेन के नेताओं को भारत ने यही स्पष्ट संदेश दिया है। बल्कि भारत ने तो आईना दिखाते हुए यह भी बता दिया कि रूस से तीस फीसद ईंधन तो यूरोप के देश ही खरीद रहे हैं। तो फिर भारत पर रूस से तेल नहीं खरीदने के लिए दबाव क्यों बनाया जा रहा है? भले रूस भारत को सस्ती दरों पर कच्चा तेल देने को तैयार है, पर यूक्रेन युद्ध के मसले भारत ने कोई ढुलमुल रवैया नहीं दिखाया, बल्कि स्पष्ट कहा कि रूस अब युद्ध रोके।