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By NI Editorial
अर्थव्यवस्था का जो मूल्य बढ़ता है, उसमें लगभग आधा योगदान करने वाले परिवारों की आमदनी बीते छह साल में गिरती चली गई है। ऐसे में अगर बाजार में मांग नहीं है, तो उसमें हैरत की बात क्या है।
मार्केट रिसर्च एजेंसी इंडिया रेटिंग्स ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में बताया है कि देश में वेतन वृद्धि में लगातार हो रही गिरावट एक बड़ा सिरदर्द बन गई है। इस गिरावट का परिणाम उपभोग घटने के रूप में सामने आया है। उसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर हो रहा है। 2017 से 2022 तक ये गिरावट अनवरत जारी है। इन वर्षों में उन परिवारों की आमदनी असल में 5.7 प्रतिशत घटी है, जिनका देश के सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में योगदान 44-45 फीसदी रहता है। यानी अर्थव्यवस्था का जो मूल्य बढ़ता है, उसमें लगभग आधा योगदान करने वाले परिवारों की आमदनी बीते छह साल में गिरती चली गई है। ऐसे में अगर बाजार में मांग नहीं है, तो उसमें हैरत की बात क्या है। इंडिया रेटिंग्स ने उचित ही यह कहा है कि आमदनी गिरने के इस ट्रेंड से परिवारों की क्रय शक्ति घटी है। यह एक ऐसी बात है, जिसका अंदाजा हर व्यक्ति को अपने आस-पास की स्थिति को देख कर लग सकता है।
और जब यह हाल हो, तो क्या इसमें कोई आश्चर्य की बात है कि पिछले हफ्ते जारी हुए संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक में भारत का दर्जा गिर गया। अब 180 देशों की इस सूची में भारत 132वें नंबर पर है। जब आम परिवारों की आमदनी गिर रही हो और सरकार की तरफ से उपलब्ध कराई जाने वाली सामाजिक सुरक्षाएं लचर होती जा रही हों, तो जिन पैमानों पर मानव विकास को मापा जाता है, उन पर देश की सूरत का खराब होना एक स्वाभाविक घटना ही मानी जाएगी। लेकिन वर्तमान सरकार को इन बातों से संभवतः चिंता नहीं होती। फिलहाल, उसे अपने समर्थकों को सुखबोध में रखने के लिए इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में हासिल हुई 13.5 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर है। इंडिया रेटिंग्स ने उचित ही चेतावनी दी है कि एक तो यह वृद्धि निम्न आधार पर दर्ज हुई है, इसलिए इसे ज्यादा अहमियत नहीं देनी चाहिए, और दूसरे अगर लोगों की क्रय शक्ति गिरती रही, तो कोई भी वृद्धि दर टिकाऊ नहीं हो सकती। स्पष्टतः इससे अधिक साफ शब्दों में कोई चेतावनी नहीं दी जा सकती।

Gulabi Jagat
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