सम्पादकीय

भारत की अध्यक्षता व जी-20 के परिणाम

Gulabi Jagat
26 Sep 2023 12:24 PM GMT
भारत की अध्यक्षता व जी-20 के परिणाम
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जी-20 शिखर सम्मेलन 10 सितंबर 2023 को भारत की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह आयोजन भारत के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह भारत के लिए अपनी विविध प्रकार की उपलब्धियों का प्रदर्शन करके दुनिया को प्रभावित करने का एक अवसर था। भारत के कौशल की भी परीक्षा चल रही थी कि क्या हम वैश्विक नेताओं को रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे विवादास्पद मुद्दों पर आम सहमति पर पहुंचा सकते हैं, और विकासशील देशों, जिन्हें हम ग्लोबल साउथ कहते हैं, के सामने आ रही आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं। राजनयिक हलकों में इसे आश्चर्य के रूप में लिया गया कि जी-20 के पिछले बयान की तुलना में, जिसमें रूस की ‘आक्रामकता’ के लिए उसकी ‘निंदा’ की गई थी, दिल्ली घोषणापत्र में ‘विश्वास की कमी’ की बात की गई है और वर्तमान में चल रहे रूस-यूक्रन संघर्ष के मद्देनजर इस विश्वास की कमी को हल करने की आवश्यकता है। हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय देश यह नहीं मान सकते कि जी-20 का रुख नरम हो गया है, लेकिन हम ‘लिखित’ में यही देखते हैं। भारत की अध्यक्षता में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन और उसके निष्कर्षों को लेकर न केवल भारत बल्कि अन्य विकासशील देशों में भी काफी उत्सुकता थी। भारत की ओर से इसके लिए न केवल भौतिक तैयारी, बल्कि बौद्धिक तैयारी भी पूरी गंभीरता से की गई थी। अब जब यह सम्मेलन संपन्न हो गया है तो यह समझना महत्वपूर्ण होगा कि इस सम्मेलन के निष्कर्ष दुनिया के लिए क्या मायने रखते हैं?यह समझना होगा कि यह सम्मेलन कई मायनों में बहुत महत्व रखता है।
जी-20 दिल्ली शिखर सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण परिणाम, समूह में अफ्रीकी संघ का प्रवेश रहा। अफ्रीकी संघ के शामिल होने से पहले, जी-20 दुनिया की दो-तिहाई आबादी, दुनिया की 85 प्रतिशत जीडीपी और 75 प्रतिशत वैश्विक व्यापार का प्रतिनिधित्व करता था। लेकिन जी-20 में अफ्रीकी संघ के प्रवेश के बाद, अब यह दुनिया की 82 प्रतिशत आबादी, दुनिया की 88 प्रतिशत जीडीपी और लगभग 84 प्रतिशत वैश्विक व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है। इस बदलाव का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अब ग्लोबल साउथ न केवल बहुसंख्यक आबादी का ही प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि सकल घरेलू उत्पाद और वैश्विक व्यापार में भी उसका बड़ा हिस्सा है। यह उम्मीद करना उचित है कि यह बदलाव अब जी-20 के कामकाज और निर्णयों में दिखाई देने लगेगा। वैश्विक तनाव और उथल-पुथल के बावजूद, न केवल घोषणा पर आम सहमति बन सकी, बल्कि जो निष्कर्ष निकले, वे इस सम्मेलन में भारत द्वारा दिए गए ध्येय वाक्य ‘एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य’ के अनुरूप प्रतीत होते हैं। इस जी-20 शिखर सम्मेलन की खासियत यह रही कि भारत ने शुरुआत से ही ‘ग्लोबल साउथ’ के हितों की रक्षा की बात की। इसके मुताबिक, सम्मेलन के अंत में निर्मला सीतारमण ने कहा, ‘भारत अपनी बात पर खरा उतरा।’ यानी भारत ने जो कहा, वो किया। जी-20 सम्मेलन की खासियत यह रही कि इसमें विकासशील देशों की आकांक्षाओं पर न सिर्फ बात की गई, बल्कि उस दिशा में कदम भी उठाए गए।
अब यह देखने का समय है कि दिल्ली घोषणापत्र किसी भी तरह से विकसित देशों की ओर झुका हुआ नहीं था, बल्कि हम कह सकते हैं कि इस बार इसका फोकस वैश्विक दक्षिण यानी ग्लोबल साउथ पर अधिक था। सम्मेलन की पहली उपलब्धि यह रही कि सदस्य देश इस बात पर सहमत हुए कि बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) को बेहतर, बड़ा और अधिक प्रभावी बनाया जाए, ताकि वे दुनिया के देशों की अपेक्षाओं के अनुरूप अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकें। भारत हमेशा से वैश्विक वित्तीय ढांचे में सुधारों का पक्षधर रहा है। इस संदर्भ में, इस बात पर सहमति हुई कि बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) की पूंजी संरचना में बदलाव होना चाहिए। इस शिखर सम्मेलन में, एक स्वतंत्र पैनल की सिफारिशों के अनुसार, पूंजी पर्याप्तता ढांचे (सीएएफ) के माध्यम से इन एमडीबी में सुधार सुनिश्चित करने पर सहमति व्यक्त की गई है। इस शिखर सम्मेलन की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि ‘क्रिप्टो’ को विनियमित करने को लेकर है। भारत ने कराधान के माध्यम से क्रिप्टो को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए अपने स्वतंत्र प्रयास किए हैं। गौरतलब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले भी इस संबंध में दुनिया से समन्वय और आपसी सहयोग का आह्वान किया था। जी-20 शिखर सम्मेलन इस संबंध में वैश्विक सहमति बनाने का एक उपयुक्त अवसर था। दिल्ली घोषणा में कहा गया है कि जी-20 देश क्रिप्टो परिसंपत्ति पारिस्थितिकी तंत्र में तेजी से हो रहे बदलावों के जोखिमों पर बारीकी से नजर रखना जारी रखेंगे। घोषणा में कहा गया, ‘हम क्रिप्टो-परिसंपत्ति गतिविधियों और बाजारों और वैश्विक स्थिर कॉइन व्यवस्था के विनियमन, पर्यवेक्षण और निरीक्षण के लिए वित्तीय स्थिरता बोर्ड (एफएसबी) की उच्च स्तरीय सिफारिशों का समर्थन करते हैं।’ इसके अलावा घोषणा में विशेष रूप से, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी), डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का निर्माण, डिजिटल इको-सिस्टम को बढ़ावा देने पर अलग-अलग उप-खंड हैं। इन मुद्दों के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत पहले से ही इन मुद्दों पर अपने समकक्ष देशों से बहुत आगे है। लंबे समय से विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देश बहुराष्ट्रीय कंपनियों, खासकर तकनीकी कंपनियों, सोशल मीडिया कंपनियों और ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा कर परिहार (टैक्स अवॉयडेंस) की समस्या से जूझ रहे हैं। इन कंपनियों के बहुराष्ट्रीय होने के कारण कर प्रणाली पर वैश्विक सहमति के अभाव में इन कंपनियों को उचित तरीके से कर के दायरे में लाना मुश्किल हो रहा है। इस संबंध में आम सहमति के संदर्भ में जी-20 दिल्ली घोषणापत्र में व्यापक चर्चा की गई है। यह कहा जा सकता है कि यह ‘कार्य प्रगति पर’ है। भविष्य में इस पर वैश्विक सहमति बनने पर इन कंपनियों से टैक्स वसूलना आसान हो जाएगा। इससे विकसित और विकासशील दोनों देशों की जनता को फायदा होगा। यह इस सम्मेलन की तीसरी बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है।
आज कई विकासशील देश कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं, जिसके कारण उनकी अर्थव्यवस्थाएं संकट में हैं। जी-20 दिल्ली घोषणापत्र में वैश्विक ऋण कमजोरियों के प्रबंधन का आह्वान किया गया है। घोषणापत्र में जाम्बिया, घाना, इथियोपिया और श्रीलंका की ऋण स्थिति को हल करने की भी बात कही गई है। यह इस शिखर सम्मेलन की चौथी बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। इस शिखर सम्मेलन की एक और बड़ी उपलब्धि जलवायु वित्त को लेकर है। जलवायु परिवर्तन दुनिया के सामने एक बड़ा संकट बनकर उभर रहा है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती की भयावहता की तुलना में इससे निपटने के प्रयास बेहद अनिर्णायक और आधे-अधूरे प्रतीत होते हैं। कोई भी वैश्विक मंच हो, विकासशील देशों की हमेशा यही शिकायत रही है कि अतीत में विकसित देशों द्वारा किए गए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण आज दुनिया जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रही है। पहले विकसित देशों द्वारा इस बात पर सहमति व्यक्त की गई थी कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए उनकी ओर से 100 अरब डॉलर की सहायता प्रदान की जाएगी। लेकिन अब तक, वे वायदे के अनुसार सहायता प्रदान करने में विफल रहे हैं। इतना ही नहीं, वे इस संकट से निपटने के लिए तकनीक हस्तांतरित करने को भी तैयार नहीं हैं। मानवता विकसित देशों द्वारा यह सहायता देने के लिए अनिश्चित काल तक प्रतीक्षा नहीं कर सकती। इस जी-20 सम्मेलन के दिल्ली घोषणापत्र में जलवायु और सतत वित्त पर काम करने का आह्वान किया गया है, ताकि इसके माध्यम से मानवता के सामने आने वाली सबसे बड़ी समस्या से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।
डा. अश्वनी महाजन
कालेज प्रोफेसर
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