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भारत के सेवा क्षेत्र का इंडेक्स पीएमआई यानी सर्विसेज परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स जून में सिकुड़ते हुए 41-2 प्रतिशत पर पहुंच गया। मई में यह 46.4 प्रतिशत पर था। गौरतलब है कि इस इंडेक्स के 50 के नीचे रहने का मतलब होता है कि संबंधित क्षेत्र में माइनस ग्रोथ हुआ। कभी ऐसे सिकुड़न या पीएमआई में वृद्धि के बावजूद गिरावट की खबरें बड़ी चिंता पैदा करती थीं। लेकिन जैसाकि कहा जाता है कि अगर और भी लकीर आ जाए, तो पुरानी कोई भी लकीर छोटी हो जाती है। तो अब ऐसी खबरें ना तो चर्चित होती हैं और ना उनसे झटका लगता है, क्योंकि देश के माली हालात उससे बहुत ज्यादा खराब हो चुके हैं, जिसका संकेत ऐसे इंडेक्स देते हैँ। मसलन, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की उस शोध रिपोर्ट पर गौर करें, जिसमें बताया गया है कि अब भारत में सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में कर्ज का अनुपात चिंताजनक स्तर तक पहुंच गया है। इसका सीधा मतलब है कि आम भारतीय घर गहरे दबाव में हैं। दूसरी खबरें भी बताती रही हैं कि माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं या सीधे तौर पर महाजनों से कर्ज लेकर करोड़ों भारतीयों ने पहले लॉकडाउन लेकर आज तक की अवधि की गुजारी है। अब ये कर्ज वे कैसे चुकाएंगे, इसका कोई रोडमैप किसी को दिखाई नहीं देता।
