सम्पादकीय

अफगानिस्तान मामले में भारत के अपने संदेह बने रहेंगे, तालिबान-2 की मंशा कुछ दिनों में दिखेगी

Rani Sahu
21 Aug 2021 10:58 AM GMT
अफगानिस्तान मामले में भारत के अपने संदेह बने रहेंगे, तालिबान-2 की मंशा कुछ दिनों में दिखेगी
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यूएई में होने वाले अगले टी-20 विश्व कप क्रिकेट के दौरान अफगानिस्तान की टीम वस्तुत: शरणार्थी हो सकती है

यूएई में होने वाले अगले टी-20 विश्व कप क्रिकेट के दौरान अफगानिस्तान की टीम वस्तुत: शरणार्थी हो सकती है। भारत-अफगानिस्तान मामलों पर नजर रखने वालों के साथ क्रिकेट प्रेमियों के लिए भी काबुल सरकार का ये पतन चौंकाने वाला है। जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 11 सितंबर (अपने वोटरों को 9/11 की याद दिलाने के लिए) तक अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का ऐलान किया तो अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने चेताना शुरू कर दिया था कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के छह से 12 महीनों के भीतर काबुल की सरकार गिर जाएगी। लेकिन 15 अगस्त तक ही काबुल पर तालिबान का कब्जा हो गया। 'फिक्सिंग फेल्ड स्टेट्स' किताब के लेखक और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी अपने करीबियों के साथ देश से भाग गए।

दरअसल गनी को उनके अमेरिकी दोस्तों ने ही नीचा दिखाया। इसमें न केवल राष्ट्रपति बाइडेन, बल्कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी हैं, जिन्होंने दोहा, कतर और बाकी जगह हुई बातचीत की शृंखला में अफगानों को उनकी आजादी से समझौता करने, तालिबान कैदियों की रिहाई और शांति के रोडमैप पर राजी होने के लिए मजबूर किया था। ये सब असल में आत्मसमर्पण के लिए तैयार हो रही जमीं थी।
अफगानिस्तान में शांति के लिए अमेरिका के विशेष दूत जल्मे खलीलजाद ने इस नीति को अंजाम दिया और वे कॉमन ग्राउंड पर आने के लिए दोनों पक्षों के वार्ताकारों को बधाई देते रहे। लेकिन जब वे इस कॉमन ग्राउंड के लिए दोहा में बात कर रहे थे, अफगानिस्तान की सरजमीं लगातार हमलों से खून से लाल हो रही थी। मौजूदा युद्ध से पहले भी तालिबान 2001 से अब तक करीब 15 से 20 लाख अफगानियों को मार चुके थे।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 16 अगस्त को हुई बैठक में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने दयनीय भाव से अफगानिस्तान में नई सरकार बनाने के लिए फिर से बातचीत के लिए कहा। भारत की अध्यक्षता में परिषद ने युद्ध की समाप्ति और नागरिकों से दुर्व्यवहार रोकने की मांग की। अंतरराष्ट्रीय गठबंधन द्वारा लागू की गई सुरक्षा से उत्साहित भारत ने अफगानिस्तान में तीन अरब डॉलर का निवेश करके महिलाओं और बच्चों के लिए देश का सबसे बड़ा अस्पताल बनाया, स्कूल खड़े किए, सलमा बांध बनाया और जरांज-देलरम हाईवे का निर्माण किया। यही नहीं काबुल में 24 घंटे बिजली की व्यवस्था की और अफगानी संसद का नया भवन बनाया।
सभी 34 अफगानी राज्यों में भारत के प्रोजेक्ट चल रहे थे। इस सबमें भारत का उद्‌देश्य अफगान लोकतंत्र में स्थिरता और सिविल सोसायटी को मजबूत बनाना था। इसकी बजाय अब ये सभी संपत्तियां उस शासन के हाथों में हैं, जो उस सबके खिलाफ है, जिसके लिए हम खड़े हैं। भारत को और ज्यादा निराश करने वाला तथ्य ये है कि रूस और चीन के राजदूतों ने तालिबान के साथ मिलकर काम करने की इच्छा दिखाई है।
चीन पहले ही क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा के लिए तालिबान से बात कर रहा है और उइगर मुस्लिमों को काबू करने में मदद ले रहा है। चीन-अफगान-पाकिस्तान का गठजोड़ भारत का दुस्वप्न बन सकता है। अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा कि क्या 1996 से 2001 का खौफ लौटेगा या तालिबान-2 दुनिया से मान्यता चाहेगा।
भारत के अपने संदेह बने रहेंगे। अपने घर में अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने में असमर्थ अफगानिस्तान की क्रिकेट टीम को हमने भारत में होम ग्राउंड उपलब्ध कराया। क्रिकेट के दीवाने भारतीय, अफगानी खिलाड़ियों को अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए देखना चाहेंगे, लेकिन ये भी मुमकिन है कि पिछले कुछ सालों की शांति के बावजूद कहीं यह तालिबान के खूनी खेल में दब न जाए। पिछली बार तालिबान ने अपने शासन में क्रिकेट पर भी रोक लगा दी थी।

शशि थरूर का कॉलम

Rani Sahu

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