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Vijay Garg: पिछले पांच वर्षों में प्रस्तुत किए जाने वाले पेटेंट और औद्योगिक डिजाइनिंग दाखिल करने में भारत छलांग मार कर दुनिया के शीर्ष छह देशों में शामिल हो गया है। ज्ञान से हासिल बौद्धिक संपदा को अपने नाम कराने में भारत की यह बड़ी उपलब्धि है। बौद्धिक संपदा का अधिकार मानव मस्तिष्क द्वारा सृजन को प्रदर्शित करता है। विश्व बौद्धिक संपदा (डब्लू आइपीओ) की रपट के अनुसार वर्ष 2023 में भारत की ओर से दाखिल किए गए पेटेंट की संख्या 64,480 थी।
पेटेंट दाखिल करने में वृद्धि 2022 की तुलना में 15.7 फीसद थी। 2023 में दुनिया में 35 लाख से अधिक पेटेंट दाखिल किए गए। यह लगातार चौथा वर्ष था, जब वैश्विक पेटेंट जमा कराने में वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष सबसे ज्यादा 6.40 लाख पेटेंट चीन ने प्रस्तुत किए, जबकि अमेरिका 5,18,364 । ही पेटेंट दाखिल करा पाया। इसके बाद जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और फिर भारत का स्थान हैं। पेटेंट दाखिल करने में एक और विशेष बात रही कि सबसे ज्यादा पेटेंट एशियाई देशों ने कराए। वर्ष 2023 में वैश्विक पेटेंट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिजाइन दाखिल करने में एशिया की हिस्सेदारी क्रमशः 68.7 फीसद, 66.7 फीसद और 69 फीसद रही। इनमें आविष्कार, साहित्यिक और कलात्मक कार्य, डिजाइन, प्रतीक, नाम और वाणिज्य के क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली छवियां शामिल हैं। डब्लूआइपीओ की स्थापना संयुक्त राष्ट्र की एजंसी के रूप में की गई थी।
कोई भी व्यक्ति किसी चीज की खोज करता है, तो उसे अपनी पेटेंट करा लेता है। कंपनियां भी यही करती क संपदा बताते हुए पट्ट हैं। मसलन, उत्पाद और इसे बनाने की विधि को कोई और उनकी इजाजत के बिना उपयोग नहीं कर सकता। पश्चिमी देशों द्वारा लाया गया पेटेंट एक ऐसा कानून है, जो व्यक्ति या संस्था को बौद्धिक संपदा का अधिकार देता है। मूल रूप से यह कानून भारत जैसे विकासशील देशों के पारंपरिक ज्ञान को हड़पने के लिए लाया गया, क्योंकि यहां जैव विविधता के अकूत भंडार होने के साथ, उनके नुस्खे मानव और पशुओं के स्वास्थ्य लाभ से भी जुड़े हैं।
इन्हीं पारंपरिक नुस्खों का अध्ययन करके उनमें मामूली फेरबदल कर उन्हें एक वैज्ञानिक शब्दावली दे दी जाती 赍 और फिर पेटेंट के जरिए इस ज्ञान को हड़प कर इसके एकाधिकार चंद लोगों के सुपुर्द कर दिए जाते हैं। यही वजह है कि वनस्पतियों से तैयार दवाओं की ब्रिकी करीब तीन हजार अरब डालर तक पहुंच गई है। हर्बल या आयुर्वेद उत्पाद के नाम पर सबसे ज्यादा दोहन भारत की प्राकृतिक संपदा का हो रहा है। आयुर्वेद में पश्चिमी देश इसलिए रोड़ा अटकाते हैं कि कहीं उनका एकाधिकार टूट न जाए!
● अब तक वनस्पतियों की जो जानकारी वैज्ञानिक हासिल कर पाए हैं, उनकी संख्या लगभग ढाई लाख है। इनमें से 50 फीसद उष्णकटिबंधीय वन-प्रांतरों में उपलब्ध हैं। भारत में 81 हजार वनस्पतियां और 47 हजार प्रजातियों के जीव-जंतुओं की पहचान सूचीबद्ध हैं। अकेले आयुर्वेद में पांच हजार से भी ज्यादा वनस्पतियों का गुण दोषों के आधार पर मनुष्य जाति के लिए क्या महत्त्व है, इसका विस्तार से विवरण मिलता है। ब्रिटिश वैज्ञानिक राबर्ट एम ने जीव और वनस्पतियों की दुनिया में कुल 87 लाख प्रजातियां बताई हैं। दवाइयां बनाने वाली विदेशी कंपनियों की निगाहें इस हरे सोने के भंडार पर हैं। इसलिए 1970 में अमेरिकी पेटेंट कानून में कुछ संशोधन किए गए। विश्व बैंक ने अपनी एक रपट में कहा था कि 'नया पेटेंट कानून परंपरा में चले आ रहे देसी ज्ञान को महत्त्व और मान्यता नहीं देता, बल्कि इसके उलट जो जैव व सांस्कृतिक विविधता और उपचार की देसी प्रणालियां प्रचलन में हैं, उन्हें नकारता है।
इसी क्रम में सबसे पहले भारतीय पेड़ नीम के औषधीय गुणों का पेटेंट अमेरिका और जापान की कंपनियों ने कराया था। 3 दिसंबर 1985 को अमेरिकी कंपनी विकउड ने नीम के कीटनाशक गुणों की मौलिक खोज के पहले दावे के आधार पर बौद्धिक संपदा का अधिकार दिया गया था। इसके पहले 7 मई 1985 को जापान की कंपनी तरुमो ने नीम की छाल के तत्त्वों और उसके लाभ को नई खोज मान कर बौद्धिक स्वत्व यानी इस पर एकाधिकार दिया गया था। नतीजा यह हुआ कि इसके बाद पेटेंट का सिलसिला रफ्तार पकड़ता गया। हल्दी, करेला, जामुन, तुलसी, भिंडी, अनार, आंवला, रीठा, अर्जुन, हरड़, अश्वगंधा, शरीफा, अदरक, कटहल, अर्जुन, अरंड, सरसों, बासमती चावल, बैंगन और खरबूजे तक तक पेटेंट की जद में आ गए। सबसे नया पेटेंट भारतीय है। इसका पेटेंट अमेरिकी बीज कंपनी मोनसेंटो को खरबूजे का हो असेटी इसका किया था कि उसने बीज तथा पौधे में कुछ आनुवंशिक परिवर्धन किया है, इससे वह हानिकारक जीवाणुओं से प्रतिरोध करने में सक्षम हो गया है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने इस हरकत को वनस्पतियों की लूट-खसोट कहा। वैश्विक व्यापारियों को अच्छी तरह से पता था कि दुनिया में पाई जाने वाली वनस्पतियों में से पंद्रह हजार ऐसी हैं, जो केवल भारत में पाई जाती हैं। इनमें 160 फीसद औषधि और खाद्य सामग्री के उपयोग की जानकारी आम भारतीय को है। इसलिए हर कोई जानता है कि करेले और जामुन का उपयोग मधुमेह से मुक्ति के उपायों में शामिल हैं। मगर इनके पेटेंट के बहाने नया आविष्कार वष्कार बता कर अमेरिकी कंपनी क्रोमेक रिसर्च ने एकाधिकार हासिल कर लिया है। क्या इन्हें मौलिक आविष्कार माना जा सकता है? इसी तरह केरल में पाई जाने वाली 'वेचूर' नस्ल की गायों के दूध में में पाए जाने वाले तत्त्व 'अल्फा लैक्टालबुमिन' का पेटेंट इंग्लैंड के रोसलिन संस्थान ने । ने करा लिया था। इन गायों के दूध में वसा की मात्रा 6.02 से 7.86 फीसद तक पाई जाती है, जो यूरोप में पाई जाने वाली किसी भी गाय की नस्ल में नहीं मिलती। यूरोप में पनीर और मक्खन का बड़ा व्यापार है और भारत दुग्ध उत्पादन में अग्रणी देश है। इसलिए अमेरिका और इंग्लैंड 'वेचूर' गाय' का । जीन यूरोपीय गायों की नस्ल में करेंगे और पनीर और मक्खन से करोड़ों डालर का मुनाफा बटोरेंगे।
इसी तरह भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बहुतायत पैदा होने वाले बासमती चावल का पेटेंट अमेरिकी कंपनी राइसटेक ने हड़प लिया। यह चावल आहार नलिकाओं को स्वस्थ रखने में औषधीय गुण का काम करता है। हल्दी का उपयोग शरीर में लगी चोट को ठीक करने में परंपरागत ज्ञान के आधार पर किया जाता है। इसमें कैंसर के कीटाणुओं को शरीर में पनपने से रोकने की भी क्षमता है। मधुमेह और बवासीर में हल्दी असर करने वाली औषधि के रूप में इस्तेमाल होती है। कोरोना काल में विषाणु के असर को खत्म करने के लिए करोड़ों लोगों ने इसे दूध में मिला कर पिया था। हैरत यह कि इसका भी पेटेंट अमेरिकी कंपनी ने करा लिया था, लेकिन इसे चुनौती देकर भारत सरकार खारिज करा चुकी है। इस परिप्रेक्ष्य में यह गर्व की बात है कि भारत पेटेंट दाखिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
Gulabi Jagat
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