सम्पादकीय

भारत की बढ़ती आबादी

Subhi
13 July 2022 3:34 AM GMT
भारत की बढ़ती आबादी
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भारत में जनसंख्या वृद्धि कोई नया मसला नहीं है। आजादी के बाद 1950 से ही सरकारी स्तर पर परिवार नियोजन की योजनाएं लागू हैं परन्तु इसके बावजूद 1947 में केवल 32 करोड़ से बढ़ कर हम आज 140 करोड़ हो चुके हैं।

आदित्य चोपड़ा; भारत में जनसंख्या वृद्धि कोई नया मसला नहीं है। आजादी के बाद 1950 से ही सरकारी स्तर पर परिवार नियोजन की योजनाएं लागू हैं परन्तु इसके बावजूद 1947 में केवल 32 करोड़ से बढ़ कर हम आज 140 करोड़ हो चुके हैं। हम बेशक इसे जनसंख्या विस्फोट भी कह सकते हैं मगर भारत को इस कथित 'विस्फोट' से कुछ लाभ भी हुआ है और वह इसके 'युवा देश' होने का है। भारत की आबादी में 65 प्रतिशत 35 वर्ष से कम आयु के हैं। इसके साथ ही भारत के भीतर ही जिस तरह रोजी-रोटी की तलाश लोगों का एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवास होता है उससे देश के सर्वांगीण विकास में मदद मिलती है। 1991 से बाजार मूलक अर्थव्यवस्था का दौर शुरू होने के बाद से इस क्रम में तेजी आना बताता है कि आर्थिक विकास में बढ़ती जनसंख्या की भूमिका तय की जा सकती है परन्तु यह प्रक्रिया सतत रूप से जारी नहीं रखी जा सकती क्योंकि आबादी का बढ़ता भार सीमित स्रोतों को निगलने की क्षमता भी रखता है। राष्ट्र संघ के जनसंख्या आंकलन प्रकोष्ठ के अनुसार भारत की आबादी इसी चालू वर्ष 2022 के दिसम्बर माह तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी हो जायेगी और यह चीन को भी पछाड़ देगी। जैसा कि राजनीति में होता है सत्ता व विपक्ष हर मुद्दे पर एक-दूसरे के विरुद्ध राय प्रकट करने की प्रतियोगिता में लग जाते हैं। जनसंख्या के प्रश्न पर भी हमें यही देखने को मिल रहा है। पहले की तरह ही विपक्षी नेता बढ़ती जनसंख्या के बावजूद अपनी आर्थिक तरक्की करने को लेकर 'चीन' का उदाहरण दे रहे हैं। इसे पूरी तरह अज्ञानता का शिकार होना कहा जायेगा। सर्वप्रथम चीन एक कम्युनिस्ट देश है जिसमें सामान्य नागरिक के कोई मौलिक अधिकार नहीं होते। कम्युनिस्ट देशों की शासन व्यवस्था सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक सरोकारों से 'मुक्त' होकर केवल सरकारी सरोकारों से 'युक्त' रहते हुए आम जनता को 'मशीन' में बदल कर अपने आर्थिक हित साधती है। मानवीय संवेदनाओं के लिए ऐसी शासन व्यवस्था में कोई स्थान नहीं होता। मजदूर से लेकर अन्य कर्मचारियों के अधिकार शासन के पास बंधक रहते हैं। जिससे नागरिक उत्पादन करने वाली मशीन से ज्यादा और कुछ नहीं रहता। जबकि भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में सबसे महत्वपूर्ण नागरिकों के मूल अधिकार होते हैं और उनकी देखभाल करने वाली स्वतन्त्र न्यायपालिका होती है। लोगों के सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक अधिकारों व मान्यताओं की रक्षा करने के साथ हमने पिछले 75 वर्षों में जो विकास किया है उसे निश्चित रूप से एक उपलब्धि कहा जा सकता है। भारत की अर्थव्यवस्था समूचे विश्व की अर्थव्यवस्थाओं में आज छठे नम्बर पर गिनी जा रही है और संयोग से विश्व की सकल आठ अरब की आबादी का छठा हिस्सा ही इस देश में बसता है जो एक अरब 40 करोड़ के करीब है। परन्तु जब 1950 में भारत की तत्कालीन नेहरू सरकार ने परिवार नियोजन योजना शुरू की थी तो औसतन एक परिवार में छह बच्चे हुआ करते थे। यह औसत घट कर अब 2.1 के आसपास आ चुका है। इसके बावजूद हमारी आबादी चीन से ज्यादा हो चुकी है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि हम इस प्रति परिवार प्रजनन क्षमता को इतना कम कर दें कि आगामी 40 वर्षों में बूढ़ों का देश बन जायें। एक अनुमान के अनुसार भारत में 2050 तक बूढे़ कहे जाने वाले लोगों की संख्या सर्वाधिक होगी क्योंकि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने एक आदमी की औसतन जीवन सीमा को 70 साल से अधिक का बना दिया है। इस मामले में हमें भारतीय समाज की संरचना का अवलोकन करना होगा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश के मुस्लिम समाज की आबादी दर में भी कमी आयी है परन्तु इसका औसत अभी भी काफी ऊंचा है। भारत को हर दृष्टि से सन्तुलित और संविधान से चलने वाला देश बनाये रखने के लिए हमें मुस्लिम समाज की औसत प्रजनन दर भी 2.1 पर लानी होगी । इसके साथ भारत के ग्रामीण इलाकों में भी हिन्दू समाज में प्रजनन दर ऊंची है। प्रजनन दर का सीधा सम्बन्ध शहरीकरण से भी है। जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है वैसे-वैसे ही औसत प्रजनन दर भी कम हो रही है। 2050 तक भारत के 60 प्रतिशत लोग शहरों के निवासी होंगे। शहरीकरण का प्रभाव हिन्दू व मुसलमान दोनों पर ही एक समान रूप से होगा। पर्यावरण सन्तुलन का मसला तब और वीभत्स हो सकता है। संपादकीय :वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब फेसबुक पेज की धूमभारत की बढ़ती आबादीद्रौपदी मुर्मू का बढ़ता समर्थनट्विटर डील रद्द क्यों हुईमां काली और प्रधानमंत्री मोदीमजहबी जुनून के खिलाफ संदेशहमें याद रखना होगा कि 2019 के 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हुए प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जनता का ध्यान इस ओर दिलाया था। उनका इशारा आने वाली पीढि़यों को खुशहाल जिन्दगी देने की तरफ ही था। प्रकृति की कृपा से भारत में अभी भी जल संकट पैदा नहीं होता है। ईश्वर ने हमे इतने जल स्रोत दिये हैं कि 140 करोड़ की आबादी की जल आपूर्ति जैसे-तैसे हो जाती है। मगर शहरीकरण के बढ़ने से इस मोर्चे पर संकट भी पैदा हो सकता है। इसके साथ बिजली उत्पादन पर भी हमें लगातार जोर देते रहना होगा। लेकिन प्रसन्नता की बात यह है कि भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान आधारभूत ढांचा गत क्षेत्र में जो विकास हुआ है विशेषकर सड़क निर्माण में जिस तरह चहुंमुखी वृद्धि हुई है उससे शहरीकरण का मार्ग ही प्रशस्त होगा अतः इसी मोर्चे पर हमें सावधानी के साथ बढ़ने की जरूरत है और इसके लिए जरूरी शर्त यह है कि हम अपनी आबादी की रफ्तार को थामें। इसके लिए यदि कानून बनाने की जरूरत भी पड़े तो उससे पीछे न हटें। सबसे कारगर कानून यह हो सकता है कि तीन से ज्यादा बच्चों के परिवार को वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया जाये।

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