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
कोरोना के कहर से कुछ मुक्ति मिलने के बाद भारतीय विदेश नीति ने भी यकायक रफ्तार पकड़ी है। इसी सिलसिले में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल के दिनों में कई महत्वपूर्ण देशों की यात्रा की। बीते दिनों वह शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की बैठक में भाग लेने के लिए ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे भी गए। दरअसल अफगानिस्तान में तेजी से बदल रहे घटनाक्रम के बीच एससीओ बैठक की महत्ता और बढ़ गई। एससीओ बैठक के एजेंडे से यह सिद्ध भी हो गया, जहां अफगानिस्तान का मसला ही चर्चा के केंद्र में रहा। यह बहुत स्वाभाविक भी था, क्योंकि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की विदाई के बाद अब यह उसके पड़ोसी देशों का दायित्व बन जाता है कि वे आतंक और अस्थिरता से पीडि़त इस देश पर विशेष रूप से ध्यान दें। अन्यथा अफगान धरती से निकली आतंक की चिंगारी रूस और चीन से लेकर मध्य एवं दक्षिण एशिया में अशांति की भीषण आग लगा सकती है। स्पष्ट है कि अफगानिस्तान को लेकर आस-पड़ोस के देशों पर दबाव बन रहा है। यह दबाव दुशांबे में भी महसूस किया गया। वहां बनी यह सहमति महत्वपूर्ण रही कि अफगानिस्तान में तालिबान को तब तक वैधानिकता और मान्यता मिलने से रही, जब तक कि वह स्वयं को सभी अफगान पक्षों और अंशभागियों के साथ एक मंच पर नहीं आता। इससे तालिबान पर एक प्रकार का दबाव तो बनेगा। इसकी पुष्टि अफगान सरकार के साथ उसकी वार्ता से भी हुई है।
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