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जयंतीलाल भंडारी: यूक्रेन संकट के कारण वित्त वर्ष 2022-23 में भारत के सामने निर्यात संबंधी मुश्किलें दिखाई देने लगी हैं। न केवल रूस और यूक्रेन को किए जाने वाले निर्यात में कमी आने की आशंका है, बल्कि अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों में स्वेज नहर और काला सागर से माल की आवाजाही में बाधा और रूस पर पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों के कारण भी भारत का निर्यात प्रभावित होगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत के विदेशी व्यापार पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता व्यक्त की। इस जंग की वजह से देश से होने वाले निर्यात पर भारी असर पड़ने की आशंका पैदा हो गई है। चिंता की बात ज्यादा इसलिए भी है कि जंग जितनी लंबी चलेगी, यह विदेश व्यापार पर उतनी ही ज्यादा मार पड़ेगी। हालांकि रुपए में गिरावट से निर्यातकों को लाभ होता है, लेकिन भारत के अन्य प्रतिस्पर्धी देशों की मुद्राओं की कीमतों में गिरावट, महंगे होते कच्चे माल और यूरोप के बाजार से निर्यात मांग में भारी कमी होने के कारण निर्यात चुनौतियां बढ़ गई हैं।
वाणिज्य मंत्रालय की ओर से दो मार्च को जारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2021-22 में अप्रैल से फरवरी, 2022 तक भारत का निर्यात तीन सौ चौहत्तर अरब डालर पर पहुंच गया और निर्यात पहली बार निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप चार सौ अरब डालर की रिकार्ड ऊंचाई को छू गया। लेकिन अब यूक्रेन संकट के कारण वित्त वर्ष 2022-23 में भारत के सामने निर्यात संबंधी मुश्किलें दिखाई देने लगी हैं। न केवल रूस और यूक्रेन को किए जाने वाले निर्यात में कमी आने की आशंका है, बल्कि अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों में स्वेज नहर और काला सागर से माल की आवाजाही में बाधा और रूस पर पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों के कारण भी भारत का निर्यात प्रभावित होगा।
इस समय यूक्रेन संकट से उत्पन्न निर्यात संबंधी चुनौतियों से निपटते हुए निर्यात बढ़ाने की रणनीति में चार प्रभावी कदम जरूरी हैं। एक, देश में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) की भूमिका को प्रभावी बनाना, दूसरा- मेक इन इंडिया अभियान को और कामयाब बनाना, तीन- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआइ) योजना का उपयुक्त तरीके से क्रियान्वयन और चौथा- संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की तरह दूसरे देशों के साथ भी एफटीए को मूर्तरूप देना।
गौरतलब है कि एक फरवरी को वर्ष 2022-23 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा था कि सरकार विशेष आर्थिक जोन यानी सेज के मौजूदा स्वरूप को बदलेगी। सेज में उपलब्ध संसाधनों का पूरा उपयोग करते हुए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों के लिए विनिर्माण किया जाएगा। सेज संबंधी नए नियम इसी वर्ष 30 सितंबर तक लागू किए जाएंगे। सेज का नया नाम डवलपमेंट आफ इंटरप्राइजेज एंड सर्विस हब (डीईएसएच या देश) होगा।
ऐसे में अब सेज की नई अवधारणा के तहत सरकार सेज से अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार के लिए विनिर्माण करने वाले उत्पादकों को विशेष सुविधाएं मुहैया करवाएगी। सेज में खाली जमीन और निर्माण क्षेत्र का इस्तेमाल घरेलू व निर्यात मैन्युफैक्चरिंग के लिए हो सकेगा। सेज में पूर्णकालिक पोर्टल के माध्यम से कस्टम मंजूरी की सुविधा होगी और उत्पाद निर्माण शुरू करने के लिए जरूरी सभी प्रकार की मंजूरियां भी वहीं दी जाएंगी।
राज्यों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा। ढांचागत सुविधाओं खासतौर से आपूर्ति की सुविधा बढ़ने से उत्पादन लागत घटेगी और भारतीय वस्तुएं अंतरराष्ट्रीय बाजार में आसानी से मुकाबला कर पाएंगी। रेल, सड़क, बंदरगाह जैसी सुविधाओं के बड़े नेटवर्क से भारतीय लागत वैश्विक स्तर की हो जाएगी और भारत को निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सेज की नई अवधारणा से इसे और बेहतर रूप देने के बाद देश को दुनिया का प्रमुख विनिर्माण केंद्र बनाना आसान हो जाएगा। मालूम हो कि आगामी वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में प्रस्तावित सेज के नए नियमों के साथ-साथ बड़े निर्यात प्रोत्साहन भी लाभप्रद होंगे। बजट घोषणा से देश के निर्यात में एक बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले रत्न और आभूषण के निर्यात में भी बढ़ोतरी होगी। कपड़ा और परिधान, चमड़ा, हस्तशिल्प और इलेक्ट्रानिक्स जैसे क्षेत्रों के निर्यात में भी इजाफा होगा। गति शक्ति कार्यक्रम से आपूर्ति की लागत में कमी आएगी।
बजट में एक सौ कार्गो टर्मिनल बनाने की घोषणा की गई है, जिससे माल की आवाजाही और आसान हो सकेगी और लागत में घटेगी। बजट में तैयार हीरों और रत्नों के आयात शुल्क तथा फैशन वाले आभूषण के आयात पर शुल्क में कमी की गई है। इससे चीन से आने वाली सस्ते आभूषण पर रोक लगेगी और भारत में इसके निर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा। कपड़ा और चमड़ा उत्पादों के निर्यात प्रोत्साहन के लिए जिपर, बटन जैसे उत्पादों, विशेष प्रकार के चमड़े और पैकेजिंग बाक्स के आयात को शुल्क-मुक्त कर दिया गया है। इससे इनके निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
जहां उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआइ) की सफलता से चीन से आयात किए जाने वाले कच्चे माल के विकल्प तैयार हो सकेंगे, वहीं औद्योगिक उत्पादों का निर्यात भी बढ़ सकेगा। देश में अभी भी दवा उद्योग, मोबाइल उद्योग, चिकित्सा उपकरण उद्योग, वाहन उद्योग और बिजली उपकरणों जैसे कई उद्योग बहुत कुछ चीन से आयातित माल पर आधारित हैं। सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत नवंबर 2020 से चौदह औद्योगिक क्षेत्रों के लिए पीएलआइ योजना को करीब दो लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहनों के साथ आगे बढ़ाया है। इस योजना के तहत दिए गए विभिन्न प्रोत्साहनों से देश के उत्पादक चीन से आयातित कुछ कच्चे माल को स्थानीय उत्पादों के आधार पर तैयार करेंगे।
निर्यात बढ़ाने में विभिन्न देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते की भूमिका अहम हो सकती है। गौरतलब है कि इस साल 18 फरवरी को भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने एफटीए पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को समग्र आर्थिक साझेदारी समझौता (सीपा) नाम दिया गया है। इस व्यापार समझौते से भारत और यूएई के बीच कारोबार पांच साल में दोगुना बढ़ा कर सौ अरब डालर किए जाने का लक्ष्य रखा गया है, जो अभी करीब साठ अरब डालर है। इस समय यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और अमेरिका के बाद दूसरा बड़ा निर्यात केंद्र है।
इस समझौते के तहत दोनों देश इस साल मई से विभिन्न क्षेत्रों की निर्धारित वस्तुओं को शुल्क मुक्त और रियायती शुल्क पर पहुंच की अनुमति देंगे। भारत यूएई को कपड़ा, आभूषण, दवाइयां, चिकित्सा उपकरण, चमड़े के उत्पाद, जूते, हस्तशिल्प व खेलकूद के सामान, कीमती रत्न, खनिज, खाद्य वस्तुएं जैसे मोटे अनाज, चीनी, फल और सब्जियां, चाय, मांस और समुद्री खाद्य, इंजीनियरिंग और मशीनरी, रसायन जैसे उत्पाद निर्धारित रियायतों पर भेजे जा सकेंगे। वहीं यूएई भारत को पेट्रो रसायन उत्पाद, धातु जैसे सेक्टरों के साथ सेवा से जुड़े कई क्षेत्रों में रियायतें देगा।
यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि इस एफटीए से यूएई के बाजार में अब किसी भी भारतीय दवा उत्पाद को आवेदन करने के नब्बे दिनों में शून्य शुल्क पर बिक्री की इजाजत मिल जाएगी। सेवा क्षेत्र और डिजिटल व्यापार को लेकर भी दोनों देशों में विशेष समझौता हुआ है। अब यूएई के बाद विभिन्न देशों के साथ की जा रही एफटीए वार्ताओं में भारत के वार्ताकारों को डेटा संरक्षण नियम, ई-कामर्स, बौद्धिक संपदा और पर्यावरण जैसे नई पीढ़ी के कारोबार मसलों को ध्यान में रखा जाना होगा। साथ ही, किसानों और दुग्ध उत्पादों से संबंधित मुद्दों को भी ध्यान में रखना होगा।
उम्मीद की जानी चाहिए कि यूक्रेन संकट से बने हालात के बीच निर्यात बढ़ाने के लिए जहां सेज की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी, वहीं बदली हुई वैश्विक व्यापार व कारोबार की पृष्ठभूमि में यूएई के साथ किया गया एफटीए वैश्विक व्यापार को बढ़ाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। यूएई के बाद अब आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, इजरायल, भारत खाड़ी देश परिषद और यूरोपीय संघ के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जा सकेगा।