सम्पादकीय

आवश्यक मुद्दे पर भारत का ध्यानाकर्षण: यूएनएससी बैठक में मोदी ने सामुद्रिक सुरक्षा के वैश्विक पहलुओं पर किया ध्यान केंद्रित, महासागरों की समझाई महत्ता

Tara Tandi
14 Aug 2021 6:48 AM GMT
आवश्यक मुद्दे पर भारत का ध्यानाकर्षण: यूएनएससी बैठक में मोदी ने सामुद्रिक सुरक्षा के वैश्विक पहलुओं पर किया ध्यान केंद्रित, महासागरों की समझाई महत्ता
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बीते नौ अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी यूएनएससी बैठक की अध्यक्षता की।

विवेक काटजू ]: बीते नौ अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी यूएनएससी बैठक की अध्यक्षता की। उन्होंने 'सामुद्रिक सुरक्षा को बढ़ाना-अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए एक केस' विषय पर अपना अध्यक्षीय संबोधन दिया। वर्चुअल माध्यम से हुई बैठक में वैश्विक महत्व के इस विषय पर दुनिया के अन्य नेताओं ने भी भाग लिया। इनमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन चिन, केन्या के राष्ट्रपति उहुरु केन्यात्ता और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन शामिल रहे। सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता का दायित्व अगस्त में भारत के पास रहेगा। परिषद के एजेंडे को निर्धारित करने में अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसे अन्य सदस्यों विशेषकर पांच स्थायी सदस्यों को साधना पड़ता है।

सुरक्षा चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित

अधिकांश भारतीयों के लिए सुरक्षा चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करना एक साझा चिंता है। विशेषकर उत्तरी सीमा से सटे राज्यों पर यह बात और प्रभावी ढंग से लागू होती है। ऐतिहासिक रूप से भारत में आक्रांताओं ने खैबर और बोलन दर्रों के जरिये ही घुसपैठ की है, जो अब अफगानिस्तान और पाकिस्तान को अलग करते हैं। हमारे प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास पर इसकी छाप है। उन आततायियों की कटु स्मृतियां आज भी भारतीय मानस पटल पर अंकित हैं। वहीं अंग्रेज समुद्री मार्ग से व्यापारी के वेश में आए और बाद में आक्रांता बन गए। इसके बाद ही हमारी चेतना में यह बात बैठी कि समुद्री सीमाओं से भी देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। यहां तक कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत की सुरक्षा को स्थल सीमा से ही संकट झेलने पड़े। इन सीमाओं पर पाकिस्तान और चीन हमें परेशान करते रहे। हम यह भी नहीं भूल सकते कि भारत 7,516 किमी लंबी तट रेखा वाला देश है। इस सीमा से लगे सागर अवसरों की खान होने के साथ ही चुनौतियों का सबब भी हैं।

मोदी ने सामुद्रिक सुरक्षा के वैश्विक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया

मोदी को इसका श्रेय जाता है कि वह भारत की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा में सामुद्रिक मोर्चे की महत्ता पर ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने न केवल सामुद्रिक सुरक्षा के वैश्विक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया, बल्कि भारतीयों को भी देश के राष्ट्रीय जीवन में महासागरों की महत्ता समझाई। अपने संबोधन में वैश्विक सामुद्रिक सुरक्षा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए मोदी ने पांच महत्वपूर्ण बिंदु गिनाए। उन्होंने समुद्री व्यापार की सुरक्षा को प्राथमिकता में रखा। उन्होंने आह्वान किया कि वैधानिक व्यापार की राह में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए, क्योंकि सभी देशों की समृद्धि वस्तुओं की निर्बाध आवाजाही पर निर्भर करती है। एक बेहद उल्लेखनीय बिंदु की ओर संकेत करते हुए मोदी ने यथार्थ ही कहा कि देशों के बीच किसी भी सामुद्रिक विवाद का समाधान अंतरराष्ट्रीय कानूनों के आधार पर ही किया जाना चाहिए। उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया, पर उनका इशारा उसकी ही ओर था, जो दक्षिणी चीन सागर में दूसरे देशों पर दबंगई दिखा रहा है। मोदी ने सभी देशों से आह्वान किया कि वे उन शरारती तत्वों के खिलाफ मुहिम छेड़ें, जो समुद्रों में खतरे पैदा करते हैं। इनमें खास तौर से वे समुद्री दस्यु शामिल हैं, जो न सिर्फ जहाजों से सामान चुरा लेते हैं, बल्कि फिरौती के लिए उनका अपहरण भी कर लेते हैं। मोदी ने महासागरों से उपजी प्राकृतिक आपदाओं की चुनौती का सामना करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अहमियत का भी उल्लेख किया। एक अन्य बिंदु सामुद्रिक पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण पर केंद्रित था, जिसके लिए सामुद्रिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से बचना होगा। उन्होंने महासागरों में तेल के रिसाव और प्लास्टिक के जमावड़े से जुड़े खतरों की ओर भी सही संकेत किया, जिसके सामुद्रिक जीवन पर बेहद खतरनाक प्रभाव पड़ रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने चीन पर साधा निशाना

प्रधानमंत्री मोदी का अंतिम बिंदु भी चीन पर निशाना साधने वाला रहा। उन्होंने कहा कि बंदरगाह जैसे समुद्री कनेक्टिविटी से जुड़े बुनियादी ढांचे के विकास में देशों को इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि जहां उन्हेंं विकसित किया जा रहा है वहां संबंधित देश ऐसे ढांचे को समायोजित कर सकते हैं या नहीं? यह बात चीन के संदर्भ में सटीक बैठती है, जो विभिन्न देशों में बंदरगाह और उनसे जुड़ी अवसंरचना विकसित कर रहा है। इसके कारण श्रीलंका जैसे कई देश उसके कर्ज जाल में फंस गए हैं। असल में ये परियोजनाएं र्आिथक रूप से उतनी फलदायी नहीं होतीं और इन देशों के लिए चीन से लिए कर्ज को चुकाना मुश्किल हो जाता है। नतीजतन वे अपनी परिसंपत्तियां चीन के हाथों गंवा बैठते हैं। स्वाभाविक है कि इससे मुश्किलें पैदा होंगी।

वैश्विक मुद्दे पर अध्यक्षता को लेकर पुतिन ने मोदी को दिया धन्यवाद

राष्ट्रपति पुतिन ने एक महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दे पर अध्यक्षता को लेकर मोदी को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि सामुद्रिक क्षेत्र को लेकर सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दायरे में रहना चाहिए। हालांकि समुद्रों को लेकर देशों के बीच विवाद सुलझाने के मसले पर पुतिन ने कहा कि इसका दारोमदार संबंधित देशों पर ही होना चाहिए। यह तो मौजूदा अंतरराष्ट्रीय पंचाटों वाली व्यवस्था से गंभीर विचलन है, जो इन विवादों को सुलझाने के लिए स्थापित की गई है। स्पष्ट है कि पुतिन चीन को कुपित नहीं करना चाहते थे, जो इन पंचाटों के फैसले को अस्वीकार करता आया है, क्योंकि दक्षिण चीन सागर से जुड़े विवादों में वे बीजिंग के खिलाफ ही गए हैं। इसीलिए पुतिन ने संबंधित पक्षों के बीच संवाद की बात कही। दूसरी ओर अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने चीन का नाम न लेते हुए भी दक्षिण चीन सागर में उसकी गतिविधियों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि अमेरिका ऐसे देशों के खिलाफ है, जो दूसरे देशों और उनकी समुद्री संपदा के बीच बाधा खड़ी करते हैं। अनुमान के अनुसार बैठक में उपस्थित चीनी प्रतिनिधि ने दक्षिण चीन सागर के मामले में अमेरिकी हस्तक्षेप को आड़े हाथों लिया। यह भी उल्लेखनीय है कि इस बैठक में चीन का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र में उसके राजदूत ने नहीं किया। भारत इस संकेत को बखूबी समझता है।

मोदी का आह्वान बेहद महत्वपूर्ण और अत्यंत समीचीन रहा

समुद्री सुरक्षा में वास्तविक अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सभी देशों द्वारा जिम्मेदारी का परिचय देते हुए अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान सुनिश्चित करने संबंधी मोदी का आह्वान बेहद महत्वपूर्ण और अत्यंत समीचीन रहा। बहरहाल दूसरे कई अंतरराष्ट्रीय मामलों की तरह इस पहल के भी चीन और अमेरिका के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता की ही भेंट चढ़ने के आसार हैं।



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