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बीते दिनों जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (आइपीसीसी) द्वारा 'क्लाइमेट चेंज 2022 : इंपैक्ट, एडप्शन और वल्नरेबिलिटीÓ नामक एक रिपोर्ट जारी की गई है
पीयूष द्विवेदी।
बीते दिनों जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (आइपीसीसी) द्वारा 'क्लाइमेट चेंज 2022 : इंपैक्ट, एडप्शन और वल्नरेबिलिटीÓ नामक एक रिपोर्ट जारी की गई है। विश्व बिरादरी को इसमें चेतावनी दी गई है कि यदि उत्सर्जन में कमी नहीं लाई गई तो लगभग एक दशक में 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक वैश्विक तापमान बढ़ सकता है जो कि एक खतरनाक स्थिति होगी। ऐसी स्थिति में, वैश्विक स्तर पर गर्मी व आर्द्रता में भारी वृद्धि होगी तथा यह मानव जीवन के लिए अनेक प्रकार से प्रतिकूल स्थितियां पैदा करेगी।
इस रिपोर्ट में ऐतिहासिक और हाल के परिवर्तनों का विस्तृत आकलन किया गया है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और बढ़ते तापमान के विभिन्न स्तरों के तहत भविष्य में होने वाले बदलावों का अनुमान भी इसमें लगाया गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बदलती जलवायु के साथ एशिया में कृषि और खाद्य प्रणालियों के लिए जलवायु संबंधी जोखिम अलग-अलग रूप में बढ़ते जाएंगे। विविध फसलों के उत्पादन में कमी आने, भूजल स्तर के नीचे जाने, समुद्र के खतरनाक स्तर तक पहुंचने जैसे अनेक संकटों के प्रति भी उक्त रिपोर्ट में दुनिया को आगाह किया गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण एशियाई देशों में इस सदी के अंत तक सूखे की स्थिति में पांच से 20 प्रतिशत तक वृद्धि होने की आशंका भी रिपोर्ट में जाहिर की गई है।
इस रिपोर्ट में भारत को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकटों के प्रति विशेष रूप से सचेत किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय शहरों में ज्यादा गर्मी और चक्रवाती तूफान आने की आशंका बनी रहेगी। इस सदी के मध्य तक तटीय इलाकों में रहने वाली देश की करीब साढ़े तीन करोड़ आबादी के बाढ़ जैसे संकट से प्रभावित होने की बात भी इसमें कही गई है। वहीं इस सदी के अंत तक यह आंकड़ा पांच करोड़ तक भी पहुंच सकता है। कुल मिलाकर स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन वैसे तो पूरे विश्व के लिए ही संकट का सबब बन रहा है, उसमें भी भारत के लिए इसकी भयावहता कुछ अधिक ही होने के आसार नजर आ रहे हैं।
उक्त रिपोर्ट में जो भी तथ्य सामने आए हैं, वे भले ही भविष्य के लिए हों, लेकिन इस रिपोर्ट के लेखकों में से एक आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के डा. फ्राइडेरिक ओटो का कहना है, 'जलवायु परिवर्तन भविष्य की समस्या नहीं है, ये मौजूदा समस्या है और सारी दुनिया पर असर डाल रही है।Ó अत: इस संकट से यदि निपटना है तो सबसे पहले इसे भावी संकट के बजाय मौजूदा संकट के रूप में देखते हुए रणनीति तय करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दीर्घकालिक कार्यक्रमों को अपनाने की आवश्यकता है। हमारे लिए मुश्किल यह है कि यह समस्या आनी नहीं है, बल्कि हमारे समक्ष आ चुकी है और आगे यह और अधिक भयावह होगी।
वर्तमान समय की मांग है कि अब पूरी गंभीरता के साथ जलवायु संकट के समाधानों पर न केवल विचार किया जाए, अपितु वैश्विक स्तर पर एक आम राय बनाकर उन्हें व्यवहार में भी लाया जाए। परंतु दुखद यह है कि ऐसे गंभीर संकट पर भी विश्व के विकसित देश अभी भी अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार नहीं नजर आ रहे।
एक संबंधित आंकड़े के मुताबिक, कार्बन उत्सर्जन अमेरिका में सबसे अधिक 25 प्रतिशत, उसके बाद यूरोपीय संघ में 22 प्रतिशत और चीन में 13 प्रतिशत रहा है। जाहिर है, विकसित देशों ने उत्सर्जन करके विकास तो कर लिया, परंतु अब वे जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में अपना उत्सर्जन कम करने तथा विकासशील देशों की समुचित सहायता करने के प्रति व्यावहारिक रूप से क्रियाशील नहीं दिखाई दे रहे। वैश्विक आबादी में भारत की 17 प्रतिशत हिस्सेदारी है, लेकिन कार्बन उत्सर्जन में योगदान महज पांच प्रतिशत है, परंतु इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि जलवायु परिवर्तन का संकट भारत के लिए भी विनाशकारी साबित हो सकता है। इसी तथ्य को लेकर भारत वैश्विक मंचों पर जलवायु न्याय का विषय उठाता रहा है। संयुक्त राष्ट्र सहित विकसित देश जितना शीघ्र जलवायु न्याय के पहलू के प्रति गंभीर हो जाएंगे, जलवायु परिवर्तन से वैश्विक लड़ाई में उतनी ही मजबूती आएगी।
हालांकि जलवायु संकट बढऩे पर भारत के इससे विशेष रूप से प्रभावित होने की आशंका है। इस आशंका का एक प्रमुख कारण देश की विशाल आबादी तथा विविधतापूर्ण जलवायु स्थितियां भी हैं। परंतु इस स्थिति से इतर तथ्य यह भी है कि जलवायु संकट से निपटने के लिए जो भी वैश्विक प्रयास हुए हैं, भारत ने उनमें अग्रणी भूमिका निभाई है और विश्व समुदाय को दिशा देने का काम भी किया है। जी-20 समूह में भारत एकमात्र ऐसा देश है जो पेरिस जलवायु समझौते का ठीक ढंग से अनुपालन करते हुए उसके लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जीवनशैली में परिवर्तन पर विशेष बल देते रहे हैं। पर्यावरण के अनुकूल सतत जीवनशैली, जिसका उदाहरण भारत का लोक जीवन है, उसे अपनाकर जलवायु परिवर्तन से लड़ाई को मजबूती दी जा सकती है।
वस्तुत: यदि यह धरती रहेगी तो ही किसी के महाशक्ति और विकसित होने का कोई अर्थ है, अत: वर्तमान आवश्यकता यही है कि विश्व के सभी देश अपने आपसी टकरावों, मतभेदों और प्रतिस्पर्धाओं को कुछ समय के लिए किनारे रखकर जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में व्यावहारिक एकजुटता दिखाते हुए शीघ्र जरूरी कदम उठाएं।

Rani Sahu
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