सम्पादकीय

Indian Economy: प्रवासी भी दे रहे अर्थव्यवस्था में योगदान

Neha Dani
28 Dec 2022 2:04 AM GMT
Indian Economy: प्रवासी भी दे रहे अर्थव्यवस्था में योगदान
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भारतीय मूल के लोग विकसित देशों में अपना विशेष स्थान बनाने में लगातार कामयाब हो रहे हैं।
हाल ही में विश्व बैंक ने बताया है कि विदेशों में रह रहे भारतीयों द्वारा वर्ष 2022 में भारत भेजी गई राशि 10,000 करोड़ डॉलर तक पहुंच सकती है। पिछले वर्ष 2021 में प्रवासी भारतीयों ने 8,940 करोड़ डॉलर भेजी थी, जिससे यह 12 प्रतिशत अधिक है। पूरे विश्व में विभिन्न देशों द्वारा विप्रेषण के माध्यम से प्राप्त की जा रही राशि की सूची में भारत का प्रथम स्थान बना हुआ है। इतनी भारी भरकम राशि में अमेरिका, इंग्लैंड एवं सिंगापुर में रह रहे भारतीयों द्वारा भेजे जाने वाला धन भी शामिल है। इन तीनों देशों का योगदान वर्ष 2016 से 2021 के बीच 26 प्रतिशत से बढ़कर 36 प्रतिशत हो गया है।
जबकि गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) देशों का योगदान इस अवधि में 54 प्रतिशत से घटकर 28 प्रतिशत हो गया है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि अब भारतीय मूल के लोग अमेरिका, इंग्लैंड एवं सिंगापुर सहित अन्य कई विकसित देशों में डॉक्टर,इंजीनियर एवं वैज्ञानिक के रूप में उच्च शिक्षा प्राप्त एवं उच्च कौशल के पदों पर कार्य कर रहे हैं, जहां उन्हें अधिकतम वेतन प्राप्त हो रहा है। जबकि पूर्व में अधिकतर भारतीय जीसीसी देशों में ब्लू कॉलर जॉब करते रहे हैं, जहां तुलनात्मक रूप से बहुत कम वेतन प्राप्त होता रहा है। इसी के चलते अब अधिकतर भारतीय खाड़ी देशों की तुलना में विकसित देशों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
आज अनिवासी भारतीयों की सूची में सूचना प्रौद्योगिकी जैसे तकनीकी क्षेत्र में कार्य करने वाले भारतीयों की संख्या अमेरिका एवं यूरोप के देशों में तेजी से बढ़ती जा रही है, इस वर्ग को तुलनात्मक रूप से अधिक वेतन की राशि प्राप्त होती है, जिसके चलते भारतीयों का यह वर्ग विप्रेषण भी अधिक राशि का करता है। भारत में विप्रेषित की जाने वाली राशि में अत्यधिक वृद्धि के कारकों में भारतीय रुपये का अमेरिकी डॉलर की तुलना में हो रहा अवमूल्यन भी शामिल है, क्योंकि इससे भारतीय नागरिकों को डॉलर की तुलना में रुपये में अधिक राशि का विप्रेषण होता है। विदेशों में रह रहे भारतीयों द्वारा अधिक राशि भेजी जा रही है, तो इससे भारत की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत हो रही है, क्योंकि इससे भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार लगातार बढ़ रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था को गति एवं मजबूती मिल रही है। साथ ही इससे भारत में नया निवेश बढ़ रहा है, जिससे रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं।
इस प्रकार भारत से बाहर रह रहे भारतीय मूल के नागरिकों द्वारा भी भारत के आर्थिक विकास में योगदान दिया जा रहा है। भारत में लगातार तेज गति से हो रहे आर्थिक विकास के चलते भी भारतीयों का अन्य देशों, विशेष रूप से विकसित देशों की ओर रुझान, अपने व्यवसाय को विदेशों में विस्तार देने, उच्च शिक्षा प्राप्त करने, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उच्च पदों पर रोजगार प्राप्त करने एवं परिवार सहित विदेशों में घूमने जाने के उद्देश्य से लगातार बढ़ता जा रहा है। इस संदर्भ में केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़े सचमुच में चौंकाते हैं। वर्ष 2019 में 25,25,328 भारतीय, वर्ष 2020 में 7,15,733 भारतीय; वर्ष 2021 में 8,33,880 भारतीय; वर्ष 2022 में (31 अक्तूबर तक) 21,43,873 भारतीय रोजगार प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत से बाहर अर्थात विदेशों में चले गए हैं। साथ ही, वर्ष 2019 में 14,67,537 भारतीय; वर्ष 2020 में 2,65,433 भारतीय; वर्ष 2021 में 1,26,611 भारतीय एवं वर्ष 2022 में (31 अक्तूबर तक) 4,64,275 भारतीय अपना व्यवसाय शुरू करने अथवा अपने वर्तमान व्यवसाय को विस्तार देने के उद्देश्य से विकसित देशों में चले गए हैं।
जहां पिछले कुछ वर्षों तक अधिकतर भारतीय ब्लू कॉलर रोजगार प्राप्त करने के उद्देश्य से संयुक्त अरब अमीरात की ओर जाते थे, वहीं अब सबसे अधिक भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा एवं विज्ञान जैसे उच्च कौशल के क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त करने के उद्देश्य से अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों की ओर जा रहे हैं। एक तो उच्च शिक्षा प्राप्त, दूसरे उच्च कौशल प्राप्त एवं तीसरे भारतीय सनातन संस्कृति का अनुसरण, इन तीनों विशेषताओं के साथ भारतीय मूल के लोग विकसित देशों में अपना विशेष स्थान बनाने में लगातार कामयाब हो रहे हैं।

सोर्स: अमर उजाला

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