सम्पादकीय

भारतीय अर्थव्यवस्थाः आंकड़ों से आगे

Rounak Dey
12 Dec 2021 3:10 AM GMT
भारतीय अर्थव्यवस्थाः आंकड़ों से आगे
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इसका मतलब यह होगा कि सरकार न केवल बहरी है, बल्कि कुंद भी है।

बहस शुरू हो चुकी है, बावजूद इसके कि सरकारी पक्ष के शीर्ष वक्ता अपनी विदाई की तैयारी कर रहे हैं। क्या अर्थव्यवस्था किनारे पहुंच चुकी है? क्या हम दो अंकों वाली विकास दर के रास्ते पर हैं? सीएसओ (केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय) के 2021-22 की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) की विकास दर के अनुमान ने सरकार को खुश होने का कुछ मौका दिया है। दूसरी तिमाही में 8.4 फीसदी की जीडीपी विकास दर का उपहास नहीं किया जा सकता, भले ही यह पिछले वर्ष की दूसरी तिमाही में -7.4 फीसदी के निम्न आधार पर हो। और भले ही यह क्रमिक रूप से 2021-22 की पहली तिमाही के 20.1 फीसदी से कम क्यों न हो।

जिन आंकड़ों ने सरकार के चेहरे पर मुस्कराहट लाई है, उन्हें उच्च आवृत्ति वाले संकेतक कहा जा रहा है और इनमें कर संग्रह, यूपीआई का आकार, ई-वे बिल, रेलवे की माल ढुलाई का ट्रैफिक, बिजली की खपत इत्यादि शामिल हैं। ये सिर्फ आंकड़े हैं, न कि लोग, और निश्चित रूप से ये वे लोग तो नहीं ही हैं, जो कि अनौपचारिक क्षेत्र पर निर्भर हैं, जिनका हमारे पास डाटा नहीं है या फिर ये आर्थिक पिरामिड के निचले हिस्से के लोग हैं।
समय से पहले जश्न
यह एक गंभीर विचार है कि वित्त मंत्रालय के अधिकारी जब जय-जयकार कर रहे थे, अन्य मंत्री और सत्ताधारी पार्टी के सांसद चुप थे, और लोग वास्तव में जश्न नहीं मना रहे थे! सीएसओ के अनुमानों से प्रेरित सुर्खियां एक या दो दिन में गायब हो गईं और पेट्रोल, डीजल, कुकिंग गैस, टमाटर तथा प्याज के बढ़ते दामों और बाजार में उपभोक्ताओं की कमी ने फिर से उनकी जगह ले ली।
सीएसओ के वही अनुमान इस तथ्य को भी रेखांकित करते हैं कि लोग न तो पर्याप्त मात्रा में खरीद कर रहे थे और न ही पर्याप्त उपभोग कर रहे थे। निजी खपत, विकास के चार इंजनों में सबसे प्रमुख इंजन है। जीडीपी का यह करीब 55 फीसदी होती है। जरा महामारी से पूर्व के वर्ष (2018-19 और 2019-20), महामारी से प्रभावित वर्ष (2020-21) और तथाकथित रिकवरी वर्ष (2021-20) के निजी खपत के आंकड़ों पर गौर करें:
वर्ष पहली तिमाही दूसरी तिमाही
2018-19 19,07,366 19,29,859
2019-2020 20,24,421 20,19,783
2020-21 14,94,524 17,93,863
2021-22 17,83,611 19,48,346(करोड़ रुपये में)
मौजूदा वर्ष की दूसरी तथा तीसरी तिमाही में निजी खपत अब भी 2019-20 की निजी खपत से कम है; इससे भी बुरी बात यह है कि छमाही की कुल खपत 2018-19 की छमाही की कुल खपत से कम है। इसके अलावा 202-22 की छमाही में कुल जीडीपी 68,11,471 करोड़ रुपये थी, जबकि 2019-20 में यह 71,28,238 करोड़ रुपये थी; महामारी से पूर्व की स्थिति के उत्पादन स्तर तक पहुंचने के लिए हमें कुछ कदम उठाने होंगे।
खर्च पर अंकुश
आखिर लोग तथाकथित रिकवरी वर्ष में महामारी से ठीक पहले वाले वर्ष की तुलना में कम उपभोग क्यों कर रहे हैं? नीचे कुछ कारण दिए गए हैं, जो बड़ी आबादी के लिए सही साबित होंगेः
प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से लोग गरीब हुए हैं;
लोगों की आय कम है;
लोगों ने नौकरियां खो दीं;
लोगों ने अपने कारोबार बंद कर दिए;
लोगों की खर्च करने की आय घटी;
लोग ऊंची कीमतों से भयग्रस्त हैं;
लोग अधिक बचत कर रहे हैं।
मेरे दृष्टिकोण में, उपरोक्त सभी संभवतः सही हैं। आंकड़े दिखाते हैं कि उनके लोगों का वेतन घटा है, अनेक लोगों की नौकरियां चली गईं, अनेक लोगों के पास उच्च करों (ईंधन कर, जीएसटी दर) के कारण खर्च करने लायक धन कम हुआ है और अनेक कारोबार बंद हो गए हैं। ऐसा भी लगता है कि अनेक लोगों ने कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाने के भय से अपनी बचत बढ़ा दी।
परिवारों से बातचीत में मैंने उन्हें भय से यह कहते सुना, 'यदि मैं या परिवार में कोई वायरस से संक्रमित हो जाएगा तो क्या होगा?' यह भय वास्तविक है, अखबारों में रोजाना प्रकाशित होने वाले आंकड़ों के मुताबिक भारत की अभी सिर्फ 50.8 फीसदी वयस्क आबादी को वैक्सीन की दोनों खुराक मिल चुकी हैं, 85.1 फीसदी वयस्क आबादी को वैक्सीन की एक खुराक मिल चुकी है और 15 फीसदी वयस्कों को अभी एक भी खुराक नहीं मिली है। सभी बच्चों को अभी वैक्सीन नहीं लगी है। बड़ी और महंगी शादियों, छुट्टियां मनाने जा रहे लोगों से भरे हवाई जहाज, बाहर खाने और खरीदारी की चकाचौंध बड़े शहरों और टियर टू शहरों तक ही सीमित है। गांवों का मिजाज उदास है। डर है या, कम से कम, चिंता।
गलत नुस्खा
सरकार, अपने विदा ले रहे मुख्य आर्थिक सलाहकार के नेतृत्व में निरंतर आपूर्ति पक्ष से जुड़े उपायों पर आश्रित है। जबकि आपूर्ति तभी प्रासंगिक होगी, जब उसके अनुकूल या उससे अधिक की मांग हो। यदि मांग सुस्त है, तो निर्माता और वितरक उत्पादन में कटौती करने के लिए मजबूर होंगे- ऑटो उद्योग, विशेष रूप से दोपहिया वाहनों में क्या हो रहा है, यह इसका सुबूत है।
अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का सही नुस्खा है, निचले स्तर की आधी आबादी में मांग बढ़ाने के उपाय। मोदी सरकार ने इसे बंद कर रखा है या अक्सर उसका मजाक उड़ाती रही है। मैंने निरंतर ईंधन और कुछ अन्य सामान में करों में कटौती, अत्यंत गरीबों को नकद हस्तांतरण, और सूक्ष्म तथा लघु उद्यमियों को वित्तीय सहायता देने की वकालत की है, ताकि वे अपना उद्यम फिर से शुरू कर सकें और फिर से कामगारों को काम दे सकें। लेकिन ऐसी अपीलों को अनसुना कर दिया गया।
नतीजतन शीर्ष के एक फीसदी लोग अत्यंत अमीर बन गए, शीर्ष दस फीसदी लोग अमीर बन गए और पचास फीसदी निचले लोग और गरीब हो गए। अगर सरकार बिना गहराई से देखे सीएसओ के आंकड़ों से आत्ममुग्ध हो रही है, तो इसका मतलब यह होगा कि सरकार न केवल बहरी है, बल्कि कुंद भी है।

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