सम्पादकीय

कश्मीर में रची-बसी भारतीय संस्कृति, भारत से भिन्न समझना अलगाववाद

Gulabi Jagat
21 March 2022 6:09 AM GMT
कश्मीर में रची-बसी भारतीय संस्कृति, भारत से भिन्न समझना अलगाववाद
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कश्मीर एक छंदबद्ध कविता है। सौंदर्य परिपूर्ण स्वर्ग और एक सांस्कृतिक अनुभूति
हृदयनारायण दीक्षित। कश्मीर एक छंदबद्ध कविता है। सौंदर्य परिपूर्ण स्वर्ग और एक सांस्कृतिक अनुभूति। यह भारत और भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। प्रकृति यहां सभी रंगों में खिलती है। यह प्राचीन काल से ही ज्ञान पीठ रहा है। कश्मीरी पंडित ज्ञान और दर्शन के संवाहक रहे हैं। उनका नरसंहार हुआ। वे घर छोड़ने को विवश किए गए। उनके सामूहिक उत्पीड़न और व्यथा पर बनी फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' ने लोकप्रियता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। फिल्म देखकर लोग रोते हुए निकल रहे हैं। फिल्म पर व्यापक बहस हो रही है। कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत महत्वपूर्ण है। यहां ज्ञान और दर्शन पर शोध एवं बोध का वातावरण रहा है।
भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में कश्मीर क्षेत्र का विशेष योगदान है। कश्मीर भारत के लिए सामान्य भूखंड नहीं है। पुराणों के अनुसार इसे कश्यप ऋषि ने बसाया था। कश्मीर का नाम कश्यप सागर से भी जुड़ा हुआ है। कल्हण कश्मीर के प्रतिष्ठित इतिहासकार थे। उनकी लिखी 'राजतरंगिणी' को प्रामाणिक इतिहास माना गया है। इसी तरह अभिनव गुप्त ने विशाल साहित्य की रचना की। तंत्र पर उनका लेखन अद्भुत है। उन्होंने देव स्तुतियां भी लिखी हैं। दर्शन और सौंदर्य शास्त्र पर उनका काम अनूठा है। यह कार्य भारतीय चिंतन के लिए उपयोगी एवं अनुकरणीय है।
कश्मीर में संस्कृति के काव्य शास्त्र का विकास हुआ। कश्मीर एक समय ज्ञान और दर्शन का प्रतिष्ठित केंद्र था। लगभग एक हजार साल पहले कश्मीर का एक नाम 'शारदा देशम्' भी था। यहां ज्ञान की देवी सरस्वती की उपासना होती थी। विशाल मंदिर भी था। यह भाग इस समय गुलाम कश्मीर में है। सरस्वती की उपासना में 'नमस्ते शारदे देवी कश्मीरपुरा वासिनी' गीत गाया जाता था। शारदा पीठ में भारतीय उपमहाद्वीप में प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय था। विशाल पुस्तकालय के लिए इसकी अंतरराष्ट्रीय चर्चा रही है। यहां दूर-दूर से लोग अध्ययन के लिए आते थे। कश्मीर के अनेक राजा भी संस्कृत के विद्वान थे। यहां ज्ञान दर्शन आधारित काव्य का रस सर्वत्र फैला हुआ था। आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य केरल से चलकर यहां पहुंचे थे। उन्होंने दर्शन में अद्वैत वेदांत का विचार दिया था। उन्होंने कश्मीरी ज्ञान-दर्शन को अद्वैत सिद्धांत से जोड़ा। यहीं उनके अनेक दार्शनिक विचारधाराओं पर तर्क हुए। उनमें प्रमुख रूप से भारतीय दर्शन के न्याय, दर्शन, मीमांसा और वैशेषिक दर्शनों पर शास्त्रार्थ चले।
शंकराचार्य ने चर्चित 'सौंदर्य लहरी' नामक पुस्तक लिखी। आनंद वर्धन ने सौंदर्य शास्त्र पर 'ध्यान लोक' लिखा। आचार्य क्षेमेंद्र, अभिनव गुप्त के प्रतिष्ठित शिष्य थे। रामायण, महाभारत और गीता पर ग्रंथ लिखे गए। भरतमुनि का नाट्यशास्त्र इसी क्षेत्र में रचा गया। अभिनव गुप्त ने भरत मुनि के नाट्यशास्त्र पर भाष्य लिखा। नाट्यशास्त्र दुनिया में अभिनय कला का प्राचीनतम ग्रंथ है। कश्मीर तब प्राचीन ज्ञान पीठ था। यहां बौद्ध, शैव और वैष्णव विद्वान ज्ञान प्राप्ति के लिए आते थे। देश के कोने-कोने से विख्यात कवि व्याकरणाचार्य भी तर्क शास्त्र और दार्शनिक अध्ययन के लिए यहां जुड़ते थे। ऋषि पिप्पलाद के आश्रम में भारद्वाज के पुत्र सुकेशा, शिविकुमार, सत्यकाम, शौर्यायणि, कौशल क्षेत्र से आश्वलायन, विदर्भ से भार्गव और कबंधि ब्रह्मज्ञान के लिए कश्मीर गए थे। इन विद्वानों ने एक-एक प्रश्न पूछा। पिप्पलाद ने जीवन जगत, अध्यात्म, ब्रह्म और वेदांत आदि से जुड़े प्रश्नों के उत्तर दिए थे। इन्हीं प्रश्नोत्तरों का संकलन प्रश्नोपनिषद है। इसके बावजूद आश्चर्य है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के विद्वानों, कवियों, गणितज्ञों, तर्कशास्त्रियों और दार्शनिकों को आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली में सम्मिलित नहीं किया गया। राजनीति संस्कृति और प्राचीन दर्शन को मिथक मानती है।
द कश्मीर फाइल्स के एक दृश्य में दर्शन कुमार विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास के नायकों का उल्लेख करते हैं। इसके प्रतिकार में कुछ लोग जोर से 'मिथ' बोलते हैं। कुत्सित राजनीति में राम, कृष्ण और शंकराचार्य भी मिथ (कल्पना) हैं। इतिहासकार उनकी उपेक्षा करते हैं। कश्मीर की कथित आजादी का शोर मचाने वाले लोग अपने ही क्षेत्र के प्रतिष्ठित विद्वानों को नहीं जानते। प्राचीन ज्ञान, दर्शन व संस्कृति की उपेक्षा करने वाले राष्ट्र दीर्घजीवी नहीं होते। प्राचीन काल में अनेक भाषाएं और लिपियां थीं। कश्मीर में शारदा लिपि का भी प्रचलन था। इसके जानकार अब कम हो गए हैं।
कश्मीर के एक राजा थे ललितादित्य। कल्हण ने राजतरंगिणी में इन्हें विजेता की संज्ञा दी है। ललितादित्य ने अनेक राजाओं को जीता। कश्मीर में अनेक प्रतिष्ठित मंदिर थे। इनमें से मार्तंड सूर्य मंदिर की प्रतिष्ठा बार-बार दोहराई जाती है। अनंतनाग स्थान का नाम सांस्कृतिक संज्ञा है। पौराणिक साहित्य के अनुसार विष्णु की शैया वाले नाग के आधार पर इसका नाम अनंतनाग रखा गया है। कश्मीर भारतीय संस्कृति और दर्शन का संवर्धक क्षेत्र था। कश्मीर के विद्वानों ने अपने कर्म, तप के बल पर भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया। कश्मीर को भारत से भिन्न समझना अलगाववाद है। भारतीय संस्कृति कश्मीरी दर्शन, चिंतन से समृद्ध होती रही है। इसी प्रकार कश्मीर की संस्कृति और दर्शन में भारतीय संस्कृति का योगदान है। मजहब आधारित राजनीति के कारण कश्मीर में बार-बार अलगाववादी हिंसा होती है। पाकिस्तान आतंकी भेजता है।
कश्मीर की आजादी और भारत विरोधी नारेबाजी होती है। ऐसी नारेबाजी भारतीय राष्ट्र राज्य के विरुद्ध युद्ध है, लेकिन ऐसे सभी भारत विरोधी कृत्य सेक्युलर कहे जाते हैं। जबकि यही अलगाववादी कश्मीर को अलग करने के प्रयास करते रहते हैं। कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार का पाप अक्षम्य है। अब भारतीय जनता ने फिल्म के माध्यम से उनका कत्लेआम देखा है। भारत व कश्मीर एक हैं। देवी उपासना भारत में प्राचीनकाल से है। कश्मीर की शारदा पीठ में भी रही है। शैव उपासना कश्मीर में थी और भारत में भी है। दर्शन और तर्क की परंपरा कश्मीर में प्रत्यक्ष दिखाई पड़ती है। इसके साक्ष्य हैं। यही परंपरा भारत में भी है। यहां दर्शन व सौंदर्य शास्त्र के सभी अनुशासनों पर विशेष अध्ययन हुआ है। कोई आश्चर्य नहीं है कि इसी ज्ञान-दर्शन और प्राकृतिक सौंदर्य की शिखर-ऊंचाई के कारण कश्मीर को शेष भारत में स्वर्ग कहा जाता रहा है। यह ज्ञान-विज्ञान का केंद्र रहा है।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष है)
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