सम्पादकीय

भारतीय शहर विश्व में सबसे ज्यादा प्रदूषित, अब पर्यावरण बचाने से ही जीवन का बचाव संभव

Gulabi Jagat
29 March 2022 10:28 AM GMT
भारतीय शहर विश्व में सबसे ज्यादा प्रदूषित, अब पर्यावरण बचाने से ही जीवन का बचाव संभव
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शहरी वायु गुणवत्ता पर एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में से 63 भारत में हैं
सुहित के सेन.
शहरी वायु गुणवत्ता (Urban Air Quality) पर एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में से 63 भारत में हैं. दिल्ली (Delhi) लगातार चौथे साल दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी के रूप में दर्ज हुई है. ये जानकारी विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट- क्षेत्र और शहर PM 2.5 रैंकिंग, 2021 की रिपोर्ट से मिली है, जिसे IQAir नामक संगठन द्वारा व्यापक डाटासेट और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित गाइडलाइंस के आधार पर तैयार किया गया है. इस रिपोर्ट में 117 देशों के 6,475 शहरों का डेटा शामिल है.
प्रदूषण से जुड़ी इस रिपोर्ट को समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि PM2.5 क्या होते हैं. दरअसल इनका तात्पर्य हवा में मौजूद 2.5 माइक्रोन या उससे भी छोटे कणों से है, जो सबसे ज्यादा हानिकारक होते हैं. रिपोर्ट बताती है कि वायु प्रदूषण, स्वास्थ्य और इकॉनोमी, दोनों ही मामलों में बहुत महंगा पड़ता है. रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण की अनुमानित दैनिक लागत 8 अरब डॉलर या सकल विश्व उत्पाद का 3-4 प्रतिशत है.
20 सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में 14 भारतीय शहर शामिल हैं
वायु प्रदूषण को समझने के लिए 63 शहरों की ही लिस्ट बनाना काफी नहीं होगा या इतना जानने से काम नहीं बनेगा कि विश्व के 50 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से देश के 35 कौन से हैं – तो जानते हैं कि दुनिया की कौन सी 20 लोकेशन सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं. इनका क्रम: भिवाड़ी, गाजियाबाद, होतान (चीन), दिल्ली, जौनपुर, फैसलाबाद (पाकिस्तान), नोएडा, बहावलपुर, पेशावर (दोनों पाकिस्तान में), बागपत, हिसार, फरीदाबाद, ग्रेटर नोएडा, रोहतक, लाहौर (पाकिस्तान), लखनऊ, जींद, गुरुग्राम, काशगर (चीन) और कानपुर है.
तो इस तरह विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में 14 भारतीय शहर शामिल हैं. और गौर करने वाली बात ये है कि इनमें सात नेशनल कैपिटल रीजन (NCR) में हैं और इसके अलावा किसी भी मेट्रो सिटी का नाम इसमें नहीं आया है. इस आधार पर कहा जा सकता है कि शहर के आकार, जनसंख्या घनत्व, गाड़ियों की संख्या और प्रदूषण के बीच कोई सीधा कनेक्शन नहीं बनता है. दूसरे शब्दों में, देश में बड़े शहरों की तुलना में कई छोटे कस्बे/शहर अत्यधिक प्रदूषित हैं.
उदाहरण के लिए, 2021 में जौनपुर (5) का वार्षिक प्रदूषण औसत 95.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो नवंबर में अपने उच्च स्तर 196 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच गया. सितंबर 2021 में, WHO ने अपनी गाइडलाइन में हवा में परिमिसिबल PM2.5 कंसेंट्रेशन 10 µg/m3 से घटाकर 5 µg/m3 कर दी थी. दुनिया के टॉप 100 प्रदूषित शहरों में 98वें स्थान पर आए पंजाब के खन्ना शहर में इस कंसेंट्रेशन का वार्षिक औसत 49.7 µg/m3 था जो कि WHO के दिशानिर्देश के हिसाब से 10 गुणा अधिक था.
भारत में 75 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयला जलाकर किया जाता है
अगर भारत प्रदूषण की समस्या से वाकई गंभीरता से निपटना चाहता है तो उसे सबसे पहले ये समझना होगा कि ये काम आसान नहीं है. स्वच्छ वायु कोष (Clean Air Fund) और भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के साथ साझेदारी में डालबर्ग एडवाइजर्स द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय व्यापार के लिए वायु प्रदूषण की लागत हर वित्तीय वर्ष में 95 अरब डॉलर यानी 7 लाख करोड़ रुपये के करीब बैठती है. यह रकम देश में सालाना एकत्र किए गए सभी कर की रकम के 50 प्रतिशत और देश के स्वास्थ्य बजट के 150 प्रतिशत के बराबर है.
बाद में बताए गए आंकड़े एक बड़ी और महत्वपूर्ण समस्या पर प्रकाश डालते हैं कि जहां वायु प्रदूषण से लोगों की आयु कम हो रही है, वहीं राज्य और केंद्र सरकारों के पास उनके बेहतर इलाज के लिए साधन नहीं हैं. इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि प्रदूषण की समस्या से दो तरीकों से निपटा जाए- एक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से और दूसरा ऊर्जा उत्सर्जन (Emission) और जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से.
इन बातों से यह स्पष्ट है कि प्रदूषण की समस्या का समाधान एक लकीर पर चलकर नहीं मिलेगा. महानगरों और अन्य बड़े शहरों में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों को सड़क पर उतार देने से एक छोटे क्षेत्र के वायु प्रदूषण को तो कम किया जा सकता है, लेकिन महज इस कदम से ही व्यापक पैमाने पर इसे दूर करने में मदद नहीं मिलेगी. भारत में 75 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयला जलाकर किया जाता है, ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग से भी प्रदूषण कम नहीं होगा, बस ये एक जगह से दूसरी जगह विस्थापित हो जाएगा.
यहां नियमों के पालन को लेकर स्थिति बेहद दयनीय है
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अधिक व्यापक समाधान तलाशे जाने की जरूरत है. सबसे आसान और स्पष्ट तरीका है कि शहरी क्षेत्रों में सस्ता और आरामदायक पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम तैयार कर निजी वाहनों के अधिक प्रयोग को रोका जाए. हालांकि ये भी सर्वविदित है कि देश के छोटे शहरों में अभी तक किसी भी तरह का कोई सार्वजनिक परिवहन, तेज तो भूल ही जाएं, सिस्टम लागू ही नहीं किया गया है. यहां तक कि महानगरों के बाहर के क्षेत्रों में भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम अच्छा नहीं है. देश में एक बड़ी समस्या ये भी है कि यहां नियमों के पालन को लेकर स्थिति बेहद दयनीय है. नतीजतन उद्योगों पर, हानिकारक उत्सर्जन सहित पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली तमाम गतिविधियां करने के बावजूद, कोई कार्रवाई नहीं की जाती है. यहां जरूरत नियमों को ज्यादा कड़ा और कठोर करने की है.
वहीं विकसित देशों को भी वायु प्रदूषण को कंट्रोल और दूर करने से जुड़े तकनीकी पहलू विश्व के दक्षिणी हिस्से के साथ साझा करने चाहिए, जैसा कि क्योटो प्रोटोकॉल समेत कई बहुपक्षीय समझौतों में कहा गया है. देश के बदलाव ये आया है कि पर्यावरणविद और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन भी नागरिकों के स्वच्छ हवा के अधिकार को लेकर अपनी आवाज और मुखर कर रहे हैं. लेकिन इसका असर तभी होगा जब नागरिकों का एक बड़ा वर्ग प्रदूषण को बड़ी और गंभीर समस्या के रूप में देखना शुरू करेगा और सरकारों पर पहले प्रदूषण को समस्या को कानूनी रूप से मान्यता देने और फिर इसका हल ढूंढने के लिए दबाव बनाएगा.
दिसंबर 2020 में, यूनाइटेड किंगडम की एक अदालत ने एक अभूतपूर्व फैसले सुनाते हुए दमे से पीड़ित नौ साल की बच्ची की मौत के पीछे वायु प्रदूषण को एक बड़ा कारण माना था. हमारे देश में भी इसी तरह कानूनी रूप से यह स्वीकार करने की जरूरत है कि प्रदूषण भी लोगों की मौत का कारण बन सकता है. साथ ही ये सरकारों की भी स्पष्ट जिम्मेदारी है कि वह तमाम तरीकों से इस प्रदूषण को कम करने का प्रयास करे ताकि ये एक बड़ी संख्या में मौतों का कारण न बन सके.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)
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