सम्पादकीय

भारतीय सेना और कारगिल-3

Rani Sahu
22 July 2022 6:44 PM GMT
भारतीय सेना और कारगिल-3
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कारगिल युद्ध में जो हमारे सैनिक शहीद हुए, उनकी उम्र तो कम थी ही, पर उनमें से ज्यादातर अविवाहित थे तथा कुछेक मात्र चंद महीनों की वैवाहिक जिंदगी के बाद अपनी नई नवेली दुल्हन को जिसके हाथों की अभी मेहंदी भी नहीं सूखी थी, उनको घर छोड़ गए थे। कुछ ऐसे थे जो अपने मां-बाप का इकलौता सहारा थे, पर इन सब निजी दायित्व और पारिवारिक प्रेम को पीछे करते हुए भारत मां की सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए

कारगिल युद्ध में जो हमारे सैनिक शहीद हुए, उनकी उम्र तो कम थी ही, पर उनमें से ज्यादातर अविवाहित थे तथा कुछेक मात्र चंद महीनों की वैवाहिक जिंदगी के बाद अपनी नई नवेली दुल्हन को जिसके हाथों की अभी मेहंदी भी नहीं सूखी थी, उनको घर छोड़ गए थे। कुछ ऐसे थे जो अपने मां-बाप का इकलौता सहारा थे, पर इन सब निजी दायित्व और पारिवारिक प्रेम को पीछे करते हुए भारत मां की सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए, इन वीर सैनिकों ने कारगिल की चोटियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेडऩे तथा तिरंगा लहराने के लिए अपना सर्वोत्तम न्योछावर करते वक्त लेश मात्र भी संशय नहीं रखा। इससे प्रमाणित हुआ कि भारतीय सपूतों में देश की सेवा के लिए सब कुछ न्योछावर करने का जज्बा जन्म से ही कूट-कूट कर भरा होता है। इस युद्ध में शहीद होने वाले रणबांकुरे वैसे तो देश के हर राज्य और क्षेत्र से संबंध रखने वाले थे, पर हमारे हिमाचली वीर सपूतों ने भी बड़ी संख्या में मातृभूमि की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान करके तिरंगे को कारगिल की चोटियों पर लहराने में अहम योगदान दिया। लगभग 3 महीने चलने के बाद 26 जुलाई को अधिकारिक तौर पर समाप्त होने वाले इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों की पूर्ण निष्कासन की घोषणा की थी। इस युद्ध में भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम को याद करते हुए सरकार 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाती है। भूतपूर्व सैनिकों के बहुत सारे संगठन भी इस दिवस को बड़े जोश के साथ मनाते हैं। इस दिन सेना द्वारा प्रदर्शित किए गए शौर्य और पराक्रम की गाथा देश, प्रदेश के हर कोने एवं गांव के अलावा युवा पीढ़ी तक पहुंचे, इसलिए कारगिल विजय दिवस को हर शहर, गांव, पंचायत तथा शिक्षण संस्थानों में भी मनाया जाता है। एक ही दिन में हर जगह इस कार्यक्रम का आयोजन करने में कई बार कुछ दिक्कतें आने की वजह से 20 जुलाई से 26 जुलाई तक के सप्ताह को कारगिल विजय सप्ताह के रूप में भी मनाने की बहुत सारे भूतपूर्व संगठन बात कर चुके हैं तथा इस सप्ताह में अलग-अलग जगहों पर ऐसे आयोजन करना भी शुरू कर चुके हैं।

उसी के अनुसार इस सप्ताह हिमाचल में भी बहुत सारी जगहों में कारगिल विजय दिवस के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। कारगिल विजय दिवस की इस 23वीं वर्षगांठ पर जो युवा इस बार 23 साल के ही हुए हैं, उनको सेना में जाने के लिए जब से प्रेरित किया जा रहा था, उनके लिए इस बार अग्निवीर योजना का आना तथा मात्र 4 वर्ष की सेवा के बाद सेवानिवृत्ति का प्रपोजल युवाओं का सेना की तरफ जाने के लिए मोहभंग कर रहा है। ऊपर से अग्निवीर योजना के लिए नामांकन करने वाले युवाओं से जाति पूछना भी हास्यास्पद है। देश में पिछले 75 साल में सेना में सेवा किए सैनिकों ने अपने शौर्य और पराक्रम का प्रमाण जिस तरह से दिया है, वह देश और दुनिया के सामने है, जिसमें किसी भी जाति विशेष का कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि हर समुदाय और जाति से आने वाले लोगों ने देश की सुरक्षा के लिए अपना सर्वोपरि न्योछावर करते हुए जरूरत पडऩे पर शहादत दी है। वर्तमान सरकार का पहले अग्निवीर योजना लाना और उसके बाद आवेदन में जाति को नामांकित करना, मेरा मानना है यह देश की सेना में सेवा देने वाले युवाओं के मन में जाति के नाम पर हीनभावना भरने जैसा हो सकता है और सेना की एकता और अखंडता के लिए भी घातक सिद्ध हो सकता है।
कर्नल (रि.) मनीष
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

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