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पिछले सप्ताह काफी उथल-पुथल से भरा रहा। हिमाचल की हेरिटेज रेलवे लाइन जो पंजाब को हिमाचल के दो जिलों कांगड़ा और मंडी को जोड़ती थी, बरसात के पानी की वजह से पठानकोट और कांगड़ा को जोडऩे वाले चक्की पुल का गिर जाना, कांगड़ा जिला में चर्चा का विषय बना रहा। इसके लिए इलाके के कुछ लोग रेलवे प्रबंधक कमेटी तो कोई चक्की रिवर में चल रहे खनन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। शायद लापरवाही तो सरकार की है ही, खनन माफिया जिस तरह से हिमाचल की हर नदी नाले में पहुंच रखा है वह हमारे पर्यावरण और आने वाले पीढ़ी के लिए बड़ा ही भयावह और नुकसानदेह होने वाला है। सरकार को समय रहते अगर खनन को दी जाने वाली इजाजत और उसके बाद उनको सीमित कार्य क्षेत्र तक ही सीमित रखने के लिए जिम्मेदार एजेंसियों को ताकत भी देनी पड़ेगी और उन पर नजर भी रखनी पड़ेगी। अगर राजनीतिक चर्चाओं पर बात करें तो कांगड़ा के एक बड़े कांग्रेसी सियासी नेता का भाजपा में जाने से कांग्रेस के खेमे में तो सन्नाटा पसरना जाहिर था ही, पर भाजपा में भी उथल-पुथल मच गई है और इसके क्या परिणाम होंगे यह तो आने वाले समय में भी पता चलेगा क्योंकि नेता कहते हैं कि उन्होंने अपनी मर्जी नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं के कहने पर दल बदला है।
नेताओं का एक दल से दूसरे दल में जाना यह उनकी निजी राय और निजी विचारधारा पर डिपेंड करता है, पर जबरदस्ती ईडी और सीबीआई का दबाव बनाकर और धन प्रलोभन देकर नेताओं का दल बदलवाना एक अच्छी रिवायत नहीं है। महाराष्ट्र, बिहार, उससे पहले मध्यप्रदेश में और भी कई बड़े राज्यों में यह सब पिछले कुछ दिनों से देखने को मिल रहा है। पिछले सप्ताह दिल्ली के उपमुख्यमंत्री के घर सीबीआई की रेड डलना और उसके बाद उप मुख्यमंत्री का कहना कि उसे बीजेपी में शामिल होने का ऑफर आया है और कहा है कि मुख्यमंत्री भी बनाएंगे और सारे मुकद्दमे भी खत्म कर देंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने प्रैस वार्ता में कहा कि उनके विधायकों को खरीदने के लिए 800 करोड़ की राशि रखी गई है, ताकि दिल्ली की सरकार के 40 विधायक दल बदल कर दूसरे दल की सरकार बनाएं, यह सब चाहे सही है या गलत, पर इस तरह की सोच और इस तरह का कृत्य एक स्वस्थ और सशक्त लोकतंत्र के लिए कदापि अच्छा नहीं हो सकता। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पहली बार रूस का साथ न देकर आजादी के बाद से चल रही हमारी विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव लाने के संकेत दिए हैं। यूक्रेन का साथ देते वक्त शायद भारतीय रणनीतिकारों के मन में अब पासा बदलने की बात आना शुरू हो गई है।
आजादी के बाद आज तक हर बार अच्छे और बुरे वक्त में रूस ने भारत का साथ दिया है और आज तक पूरे विश्व में रूस को भारत का सच्चा मित्र माना जाता रहा है, पर यूक्रेन का साथ देते वक्त भारत में अपना दांव अमेरिका की तरफ खेलने की जो सोच की शुरुआत की है उससे आने वाले समय में ताइवान और चीन के बीच चल रही आपसी कलह में भारत को गुटनिरपेक्ष रहने के बजाय शायद ताइवान की तरफदारी करनी पड़ेगी, जो हमारी विदेश नीति में एक बड़ा ही अहम बदलाव का पहलू होगा जिसे आज गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। आज पूरा विश्व एक बदलाव से गुजर रहा है। इस वक्त हम जिस भी रणनीति के तहत विदेश नीति बनाएंगे वह हमारे देश के अगले 50 साल में होने वाले भविष्य को तय करेगा। इसलिए यह बड़ा ही जरूरी है कि विदेश नीति पर कोई भी फैसला लेने से पहले सरकार उस पर गंभीरता से चिंतन-मंथन करे।
कर्नल (रि.) मनीष
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal

Rani Sahu
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