सम्पादकीय

भारतीय सेना और विस्तारवादी चीन-2

Gulabi
4 Dec 2021 3:57 AM GMT
भारतीय सेना और विस्तारवादी चीन-2
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इसमें कोई दो राय नहीं कि चीनी सेना संख्या तथा हथियारों के मामले में भारत से इक्कीस है
इसमें कोई दो राय नहीं कि चीनी सेना संख्या तथा हथियारों के मामले में भारत से इक्कीस है। अगर आंकड़ों की बात की जाए तो आज चीन के पास करीब 22 लाख एक्टिव तथा करीब पांच लाख रिजर्व सैनिक हैं जो भारत के एक्टिव व रिजर्व सैनिकों से संख्या में काफी ज्यादा हैं। चीन के पास टैंक, आर्टिलरी गन तथा अन्य हथियार हर चीज भारत से ज्यादा है, पर फिर भी चीन को यह पता है कि संख्या बल ज्यादा होने के बावजूद भारतीय सेना उसे हर मैदान में टक्कर देने में ज्यादा सक्षम है और भारतीय सेना चीन को किसी भी तरह से हिंदुस्तानी जमीन पर विस्तार करने की उसकी नीति को कामयाब नहीं होने देगी। पर यह भी जरूरी है कि भारत अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दो साल पहले वाले हालात बनाए और चीन जिस क्षेत्र में आगे बढ़ रखा है, वहां से उसे पीछे हटने को मजबूर करे। भारतीय सेना चीन की बढ़ती ताकत को ध्यान में रखते हुए पिछले कुछ सालों से मैदान और रेगिस्तान के साथ-साथ पहाड़ी क्षेत्र में भी अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाते हुए, नई माउंटेन स्ट्राइक कोर तैयार करने में भी लगी हुई है। अगर चाइना की विस्तारवादी सोच पर बात की जाए तो वह न केवल भारत की जमीन हड़पने की कोशिश कर रहा है, बल्कि इंडो-पेसिफिक और पूरे एशियाई क्षेत्र में अपना वर्चस्व बढ़ाने की कवायद में है। अफगानिस्तान से अमेरिका का जाना चीन को ज्यादा मजबूत कर गया है। पिछले कुछ महीनों से जिस तरह से चाइना ने ताइवान की आजादी पर भी प्रश्न उठाने के साथ-साथ उसके एयरस्पेस पर अपना हस्तक्षेप करना शुरू किया है, उससे यह लग रहा है कि चीन कभी भी ताइवान को अपने साथ मिलाने के लिए हमला कर सकता है।
अगर हमारे पड़ोसी देश भूटान की बात करें तो चीन ने वहां भी 'स्कतेंग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी' जो कि भूटान-चीन की अंतरराष्ट्रीय सीमा से करीब 100 किलोमीटर अंदर है, उस पर भी अपनी दावेदारी की बात रखी है। भूटान के अंदर तक कब्जा करने के पीछे चीन की भविष्य में तवांग क्षेत्र पर कब्जा करने की मंशा है। जिस तरह से चीन भूटान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर समझौता करने का दबाव बना रहा है उससे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। ज़मीन पर कब्जा करने की बात तो एक तरफ है, पर चीन का समुद्र में भी अधिकार क्षेत्र को ज्यादा फैलाना उसकी विस्तारवादी सोच का एक हिस्सा है। पिछले साल वियतनाम के समुद्री बेड़ों पर हमला तथा इंडोनेशिया को दक्षिणी चाइना समुद्र में आने से रोकना उसकी मनमानी पर मोहर लगाता है, जबकि जापान के सेनकाकू और रियाका द्वीपों पर चीन द्वारा अपना अधिकार बताना चिंताजनक है। इसके अलावा दक्षिणी कोरिया के आईआईजैड (इक्सक्लुसिव इकोनोमिक ज़ोन) के द्वीपों तथा फिलीपीन के द्वीपों पर भी अधिकार दिखाना चीन द्वारा विभिन्न देशों के समुद्री मूवमेंट के अधिकारों पर बने अंतरराष्ट्रीय नियमों की सरेआम खिल्ली उड़ाने या मजाक बनाने की तरह है। इस सबके बीच भी विश्व के समस्त देश चीन की ऐसी हरकत तथा रवैये पर चुप्पी साधे हुए हैं। मेरा मानना है कि आज भारत को सभी प्रभावित देशों को साथ लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन की हकीकत पर विचार-विमर्श करना चाहिए तथा इसकी विस्तारवादी सोच पर अंकुश लगाने के लिए समय रहते जरूरी कदम उठाने चाहिए।
कर्नल (रि.) मनीष धीमान
स्वतंत्र लेखक
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