सम्पादकीय

बरबाद पाकिस्तान नहीं आबाद हिंदुस्तान आएगा काम, तालिबान को मान्यता देकर बढ़त ले सकता है भारत

Rani Sahu
18 Aug 2021 9:56 AM GMT
बरबाद पाकिस्तान नहीं आबाद हिंदुस्तान आएगा काम, तालिबान को मान्यता देकर बढ़त ले सकता है भारत
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भारत (India) के लिए अफगानिस्तान (Afghanistan) कूटनीतिक दृष्टिकोण से बहुत अहम है

संयम श्रीवास्तव। भारत (India) के लिए अफगानिस्तान (Afghanistan) कूटनीतिक दृष्टिकोण से बहुत अहम है. साउथ ईस्ट एशिया (South East Asia) का दिल कहे जाने वाले अफगानिस्तान में अगर भारत अपनी पोजिशन को मजबूत रखता है तो ना सिर्फ वह पाकिस्तान (Pakistan) पर दबाव बनाने में कामयाब होगा बल्कि चीन को काबू में रख पाएगा. इसके लिए तालिबान (Taliban) से ना सिर्फ बातचीत करनी होगी बल्कि उसे अमेरिका (America) जैसे देशों से पहले मान्यता भी देनी होगी. ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत ही तालिबान से बातचीत करना चाहता है, तालिबान की ओर से कश्मीर और अफगानिस्तान में चल रहे भारतीय प्रोजेक्ट्स को लेकर जो हालिया बयान आए हैं उसे देखें तो समझ आ जाएगा कि तालिबान भी भारत से अपने रिश्ते बेहतर चाहता है. तालिबान के लिए भी कूटनीतिक मजबूरी है कि उसे अब बरबाद पाकिस्तान के बजाय आबाद हिंदुस्तान का साथ चाहिए.

तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है, दुनिया कहीं ना कहीं इस बात को स्वीकार चुकी है. चीन, रूस, पाकिस्तान और टर्की जैसे देश तो उसे एक तरह से मान्यता भी दे चुके हैं और अमेरिका भी अब तालिबान के खिलाफ उस तरह का कड़ा रवैया नहीं अपना रहा है जैसा कि उसने 9/11 के हमले के बाद किया था. भारत के लिए यह स्थिति फंसने वाली हो सकती है. भारत हमेशा से तालिबान के साथ संबंध रखने की बात को खारिज करता रहा है. देश में सरकार चाहे जिसकी हो लेकिन तालिबान को लेकर रुख एक सा ही हमेशा रहा है. हालांकि जब तालिबान अफगानिस्तान में मजूबत होने लगा तो तो मौजूदा सरकार ने बैक डोर से उससे बातचीत करनी चाही. अब यह बातचीत कितनी सफल हुई इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता. लेकिन ये जरूर सच है कि अब हमें देर नहीं करनी चाहिए. तालिबान को मान्यता देकर हम वैश्विक राजनीति में बढ़त ले सकते हैं.
1-तालिबान के लिए भी बरबाद पाकिस्तान के बजाय आबाद भारत ज्यादा माकूल साबित होगा
तालिबान भी अब पुराने आतंकी संगठन वाली छवि से मुक्त होने की कोशिश करेगा. इसके साथ ही अफगानिस्तान में उसके खिलाफ कोई दूसरा तालिबान न खड़ा हो इसके लिए उसे जरूरत होगी फंड और विकास की. तालिबान यह समझता है कि इसके लिए सबसे बेहतर यही है कि पाकिस्तान के बजाय हिंदुस्तान के साथ आए. वैसे भी तालिबान के पास पाकिस्तान से जुड़ी बेहद कड़वी यादे हैं. पाकिस्तानियों ने उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया है. इसके साथ ही अफगानिस्तान जानता है कि पाकिस्तान हमेशा से उसे तोड़ना चाहता रहा है. पख्तुन आबादी वैसे भी पाकिस्तान में खुश नहीं है. इन सब बातों का लब्बोलुआब यह है कि तालिबान और पाकिस्तान का साथ अब ज्यादे दिनों का नहीं है. इन दोनों के बीच दूरियां अगर बढ़ती हैं तो भारत की कूटनीति यही कहती है कि भारत को पहल शुरू करनी चाहिए. अफगानिस्तान में प्रभावी होते ही तालिबान ने यह कह दिया है कि भारत अपने निर्माण कार्य जारी रख सकता है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश का खिताब मिल चुका है. अमेरिका और पूरा विश्व जानता है कि तालिबान के पीछे पाकिस्तान हमेशा खड़ा रहा है. जाहिर है कि तालिबान को अगर आतंकवादी की छवि से छुटकारा पाना है तो पाकिस्तान से अलग-थलग दिखना होगा. हो सकता है कि तात्कालिक जरूरतो को पूरा करने के लिए अभी वो पाकिस्तान को पूरी तरड छोड़ न पाए पर भविष्य में ऐसा होना तय है. अगर तालिबान अपनी आतंकी छवि से मुक्त नहीं होता है तो खुद पाकिस्तान भी भविष्य मे उससे दूरी बना सकता है. एफएटीएफ के लिए पॉजिटिव रेटिंग पाने के लिए पाकिस्तान को भविष्य मे ये सब करना ही होगा.
2-चीन-पाकिस्तान-रूस-टर्की ने ऐसे सिगनल दे दिए हैं कि वो तालिबान को मान्यता दे रहे हैं
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद जहां एक ओर पूरी दुनिया इसकी कड़ी निंदा कर रही है. वहीं दूसरी ओर चीन, पाकिस्तान, टर्की और रूस जैसे देश इसे सही ठहरा रहे हैं. चीन जहां एक ओर तालिबान से अच्छे संबंध विकसित करने की बात करता है. तो वहीं रूस अफगानिस्तान के लिए तालिबान को बेहतर बताता है. तालिबान से पाकिस्तान के संबंधों की जानकारी किसी से छुपी नहीं है. टर्की भी तालिबान का समर्थन शुरू से करता आ रहा है. जहां दुनियाभर के देशों ने अफगानिस्तान में अपने दूतावास को बंद कर दिया है.
वहीं पाकिस्तान और रूस जैसे देश अभी अफगानिस्तान में अपने दूतावास को खोले हुए हैं और तालिबान से बेहतर संबंध बनाने की बातचीत कर रहे हैं. तालिबान को लेकर इनके रवैये को देखकर साफ जाहिर होता है कि आने वाले समय में यह देश तालिबान को मान्यता भी दे सकते हैं. हालांकि आज से 25 साल पहले जब 1996 में तालिबानियों ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था तो इसे सिर्फ पाकिस्तान और सऊदी अरेबिया ने मान्यता दी थी. ये बात अलग है कि भारत अब 90 वाला हिंदुस्तान नहीं है , अब भारत घर में घुसकर मारता है . फिर भी भारत के लिए यहां कूटनीति यही कहती है कि तालिबान को मान्यता देकर सामान्य संबंध स्थापित किया जाए.
3- अफगानिस्तानी सेना खुद लड़ाई नहीं लड़ रही, अमेरिका भी इसलिए हथियार डाल चुका है
अमेरिका, जिसके अफगानिस्तान में आने के बाद तालिबान न सिर्फ सत्ता से बेदखल हुआ, बल्कि तकरीबन दो दशक तक छुपने पर मजबूर हो गया था. हालांकि इस दौरान अमेरिका ने करोड़ों रुपए अफगानिस्तान पर खर्च किए. अफगानी सैनिकों को ट्रेनिंग दी. उन्हें तालिबान से लड़ने के तौर-तरीके सिखाए. लेकिन यह सब कुछ फेल हो गया जब अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बिडेन ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला लिया. इस फैसले के बाद से ही तालिबान अफगानिस्तान में फिर से खड़ा हो गया और उसने आज पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. जो बिडेन से जब इस पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने साफ कर दिया कि अफगानिस्तान को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी. यानि उनका साफ-साफ कहना था कि जब अफगानी सैनिक या अफगानी लोग खुद अपनी लड़ाई नहीं लड़ सकते तो अमेरिका उनका कब तक साथ देगा.
4-अमेरिका के मान्यता देने के बाद तालिबान को मान्यता देने में देर हो जाएगी
भारत को अगर तालिबान को मान्यता देनी है तो उसे देर नहीं करनी चाहिए. क्योंकि अगर एक बार अमेरिका जैसे देशों ने तालिबान को मान्यता दे दी तो फिर भारत के मान्यता देने का कोई मतलब नहीं होगा. भारत को अमेरिका का पिछलग्गू होने की छवि से बचना होगा. भारत के पास अभी वक्त है कि वह तालिबान को मान्यता देकर अपने कूटनीतिक और राजनैतिक मकसद को पूरा कर सके. ऐसा करके भारत ना सिर्फ पाकिस्तान को करारा जवाब देगा. बल्कि अफगानिस्तान में जो उसने लगभग 22000 करोड़ रुपए का निवेश किया है उसे भी बचा पाएगा. आने वाले समय में तालिबान से जो भारत को खतरा है उसे भी कहीं ना कहीं कम करने में मदद मिलेगी. क्योंकि 90 के दशक में जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था तब भारत को इसके कई नुकसान झेलने पड़े थे. चाहे कंधार हाईजैक हो या फिर कश्मीर में तेजी से बढ़ा आतंकवाद. यह सब कुछ तालिबान की ही देन थी. इसलिए भारत को अमेरिका जैसे देशों के तालिबान को मान्यता देने से पहले उससे बातचीत कर उसे मान्यता देने पर विचार करना चाहिए.
5-पाकिस्तान का एकाधिकार भी खत्म होगा
फिलहाल तालिबान का अगर कोई दोस्त है जो शुरू से उसे अपने यहां पनाह देता आया है या उसका समर्थन करता आया है, तो वह पाकिस्तान है. जिसने 90 के दशक से लेकर आज तक तालिबान की सहायता की है. जाहिर सी बात है अब जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन चलेगा तो इसका सबसे ज्यादा फायदा भी पाकिस्तान को ही होगा और पाकिस्तान तालिबान का इस्तेमाल कर भारत को कमजोर करने की पूरी कोशिश करेगा.
भारत के संबंध तालिबान से पहले से ही बेहतर नहीं हैं. इसलिए पाकिस्तान को इसका पूरा लाभ मिलेगा. यही वजह है कि अगर भारत पाकिस्तान का अफगानिस्तान में एकाधिकार खत्म करना चाहता है तो उसे कूटनीतिक तरीके से तालिबान से ना सिर्फ बात करनी चाहिए बल्कि देश के राजनीतिक और कूटनीतिक लाभ को देखते हुए उसे मान्यता भी देने पर विचार करना चाहिए.
6-तालिबान की ओर से बार-बार प्रपोजल दिया जा रहा है
तालिबान भी चाहता है कि भारत जैसे उसके आने के पहले अफगानिस्तान में विकास कार्यों को कर रहा था, वैसे ही अभी भी करता रहे. तालिबान ने यहां तक कहा है कि भारत को अफगानिस्तान में अपने प्रोजेक्ट को पूरा करना चाहिए. पाकिस्तान के एक न्यूज़ चैनल से बात करते हुए तालिबान के नेता ने यह बात खुलकर कही कि दूसरे देशों के खिलाफ वह अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल नहीं होने देंगे और उन्होंने कहा कि भारत को अफगानिस्तान में चल रहे उसकी परियोजनाओं को पूरा करना चाहिए. यहां तक की तालिबान ने कश्मीर के मुद्दे पर भी इसे द्विपक्षीय, आंतरिक मुद्दा बताया है.
जाहिर सी बात है तालिबान अब जब अफगानिस्तान पर काबिज हो चुका है तो उसे सरकार चलाने के लिए संसाधनों की जरूरत पड़ेगी और भारत पहले से ही अफगानिस्तान को यह संसाधन उपलब्ध कराता आया है. पाकिस्तान अफगानिस्तान को यह संसाधन या विकास योजनाएं उपलब्ध नहीं करा सकता, क्योंकि वह आज खुद आर्थिक कंगाली और भुखमरी से जूझ रहा है.
7-कूटनीति भी यही कहती है कोई भी देश स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता
कूटनीतिक दृष्टिकोण से भी देखें तो भारत को तालिबान से अपने संबंध बेहतर करने की जरूरत है. वह दौर कुछ और था जब भारत ने तालिबान से बातचीत न करने की कसम खा रखी थी. अब वैश्विक स्तर पर चीजें बदल गई हैं. आज का जो माहौल है उसे देखते हुए भारत को अपने हाथों से अफगानिस्तान नहीं निकलने देना चाहिए. तालिबान भले ही इस वक्त अफगानिस्तान पर काबिज है, लेकिन वह भी अपने आप में बदलाव करना चाहता है. जिस तरह के बयान तालिबान दे रहा है, अफगानिस्तान के लोगों के साथ जिस तरह का व्यवहार कर रहा है. उसे देखकर लगता है कि वह भी अब अपने भीतर बदलाव करने की ओर अग्रसर है.
भारत अगर तालिबान से अपने रिश्ते बेहतर कर लेता है तो उसे तीन मोर्चों पर लाभ होगा. पहला उसने जो 22000 करोड़ रुपए का अफगानिस्तान में निवेश कर रखा है वह नहीं डूबेगा. दूसरा तालिबान के मजबूत होने से जो समस्या कश्मीर में उत्पन्न हो सकती है वह नहीं उत्पन्न होगी और तीसरी सबसे बड़ी समस्या पाकिस्तान भी अफगानिस्तान की धरती और तालिबानी लोगों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं कर पाएगा.


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