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
नवभारत टाइम्स: ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का दो दिवसीय भारत दौरा यूं तो यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ और इसलिए उसकी थोड़ी-बहुत छाया जरूर पड़ी इस पर, लेकिन दोनों पक्षों ने यह रेखांकित करने में कोई कमी नहीं रखी कि यात्रा के द्विपक्षीय पहलू कहीं ज्यादा अहम हैं। सचाई यही है कि जॉनसन की यह यात्रा काफी पहले हो जानी थी। कोविड महामारी और कुछ अन्य वजहों से यात्रा का कार्यक्रम एकाधिक बार टालना पड़ा। बहरहाल, भारत और ब्रिटेन दोनों बदलते हुए अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के मद्देनजर अपने द्विपक्षीय रिश्तों को आगे ले जाना चाहते हैं। ब्रेग्जिट के बाद जहां ब्रिटेन के लिए जरूरी हो गया है कि वह यूरोपियन यूनियन (ईयू) से अलग विभिन्न देशों के साथ अपने रिश्तों को नया आयाम दे, वहीं भारत के भी हक में है कि ब्रिटेन की नई जरूरतों के अनुरूप उसके साथ सहयोग की संभावनाओं को अच्छी तरह खंगालने का यह मौका हाथ से जाने न दे। इसी संदर्भ में दोनों प्रधानमंत्रियों ने प्रस्तावित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट से जुड़ी उम्मीदों पर जोर दिया। दोनों पक्षों के प्रतिनिधिमंडलों के बीच इस प्रस्तावित समझौते के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत जल्दी ही शुरू होने वाली है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉनसन ने कहा भी कि वह चाहते हैं दिवाली तक इस समझौते पर सहमति बन जाए। रक्षा क्षेत्र में भी सहयोग की व्यापक संभावनाएं दोनों देश देख रहे हैं।
इसी तथ्य की ओर इशारा करते हुए जॉनसन ने कहा कि इंडो पैसिफिक को खुला और मुक्त रखने में दोनों देशों के साझा हित हैं। जहां तक यूक्रेन युद्ध का सवाल है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि उस पर दोनों देशों के रुख में अंतर है। लेकिन मतभेदों के बीच सहयोग का मार्ग बनाते हुए दोनों प्रधानमंत्रियों ने न केवल युद्ध जल्द से जल्द खत्म करने की जरूरत बताई बल्कि सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की अहमियत भी दोहराई। साफ है कि दोनों देश बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के मद्देनजर न केवल अपने रिश्तों की गरमाहट बनाए रखना चाहते हैं बल्कि आपसी विश्वास और परस्पर सहयोग को बढ़ाते हुए इसे नई ऊंचाई देना चाहते हैं। हालांकि जॉनसन इन दिनों घरेलू मोर्चे पर बुरी तरह से घिरे हुए हैं। कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन के मामले में उनके ऊपर जांच और कार्रवाई की तलवार लटक रही है। ऐसे में उनके लिए यह ज्यादा जरूरी है कि भारत के साथ सहयोग के मोर्चे पर कोई बड़ा फैसला हो जाए ताकि वह उसे अपनी उपलब्धि के रूप में दिखा सकें। लेकिन इसमें भी कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि ब्रिटेन के साथ दीर्घकालिक व्यापारिक समझौता भारत के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोलेगा और भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा।