सम्पादकीय

पाकिस्तान में शरीफ परिवार के नेतृत्व से भारत को सिर्फ कश्मीर-कश्मीर खेलने की उम्मीद ही होनी चाहिए!

Gulabi Jagat
11 April 2022 8:17 AM GMT
पाकिस्तान में शरीफ परिवार के नेतृत्व से भारत को सिर्फ कश्मीर-कश्मीर खेलने की उम्मीद ही होनी चाहिए!
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भारत के लिए शहबाज़ का ये संदेश बहुत साफ है
प्रवीण कुमार | पाकिस्तान (Pakistan) में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की क्यों न हो, जब तक पाकिस्तानी सेना का सत्ता में दखल रहेगा, दिल्ली के साथ इस्लामाबाद के रिश्तों में किसी तरह की उम्मीद पालना बेमानी है. यह एक अकाट्य सत्य है. कह सकते हैं कि पाकिस्तान की मौजूदा दौर का राजनीतिक परिदृश्य कुछ-कुछ 'म्यूज़िकल चेयर रेस' जैसा है और इसमें भारत के लिए शायद ही कोई बदलाव की गुंजाइश हो. नवाज शरीफ के भाई शहबाज़ शरीफ की लीडरशिप अपवाद नहीं हो सकता. आखिर इनकी सत्ता भी सेना के रहमोकरम पर ही तो चलनी है. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने से पहले इस्लामाबाद में जियो न्यूज से बातचीत में शहबाज़ शरीफ (Shahbaz Sharif) ने जिस लफ्ज़ का इस्तेमाल किया है वह बहुत साफ है. "हम भारत के साथ शांति चाहते हैं, लेकिन कश्मीर मुद्दे (Kashmir Issue) के समाधान के बिना शांति संभव नहीं है."
भारत के लिए शहबाज़ का ये संदेश बहुत साफ है. हां, इतना जरूर हो सकता है कि दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की पूर्ण बहाली हो जाए, 'ट्रैक टू' स्तर पर संवाद की गतिविधियां शुरू हो जाए, व्यापारिक गतिविधियों को फिर से खोल दिया जाए. लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच रिश्तों में किसी भी मौलिक बदलाव की संभावना को देखना मुश्किल है.
सेना के रहमोकरम पर सत्ता से कैसी उम्मीद?
दरअसल, पाकिस्तान के गठन के बाद से ही उसकी सेना देश की 'रीढ' के तौर पर बनी रही है. आजाद पाकिस्तान में ऐसा पहली बार हुआ है जब सत्ता परिवर्तन में सीधे तौर पर सेना की दखलंदाजी सामने नहीं आई. लेकिन पर्दे के पीछे जो खेल खेला जा रहा था उसकी डोर तो सेना के हाथ में ही थी. पाक सेना वैसे भी भारत पर गोलियां चलाती है, आतंकवादियों को प्रशिक्षित कर कश्मीर में घुसपैठ कराती है और उसे लगता है कि ऐसा करते रहने के लिए ही पाकिस्तान का जन्म हुआ है.
और इसी गलतफहमी में पाकिस्तान निरंतर अराजकता, अस्थिरता और अनिश्चितता के दलदल में फंसता चला जा रहा है. ऐसे में सरकार के बदल जाने भर से न तो पाकिस्तानी अवाम का कुछ भला होने वाला है और न ही भारत के लिए कुछ बदलने जा रहा है. लेकिन नई दिल्ली की इस मायने में तारीफ करनी होगी कि वह बार-बार पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन को हसरत भरी निगाहों से देखता है और एक सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने का रास्ता गढ़ने की कोशिश भी करता है. आखिर है तो पड़ोसी ही न. दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कहते भी थे- आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं.
शहबाज़ इतने शरीफ नहीं कि हम भरोसा कर लें
शहबाज़ शरीफ को पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति में भले ही एक प्रभावी प्रशासक के तौर देखा जाता हो, लेकिन ये भी सच है कि अपने बड़े भाई नवाज के विपरीत शहबाज़ की पाकिस्तानी सेना के साथ बेहतर संबंध हैं और हम सब जानते हैं कि पाक सेना का पाकिस्तान की राजनीति में सीधा दखल होता है.
27 फरवरी 2019 को पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में शहबाज़ के उस भाषण को कौन भूल सकता है जिसमें उन्होंने कहा था- "अगर कश्मीर में वहां के लोगों की समस्याओं का हल नहीं होगा, लोगों पर जुल्म होंगे, बच्चों की आंखें पैलेट गन से छलनी होंगी, महिलाओं की इज्जत तार-तार होगी, मां-बाप के सामने लाशें घसीटी जाएंगी, लोगों को जीप के नीचे कुचला जाएगा तो मोदी ही नहीं पूरी दुनिया को ये जान लेना चाहिए कि ऐसे कश्मीर में अमन कायम नहीं हो सकता है. भारत ने अपने उन वादों को पूरा नहीं किया जो किए थे और कश्मीर में खून बहता रहा. कश्मीर के नौजवान मजबूर हैं कि वह हथियार उठाएं. सिर्फ बातें करने से कुछ नहीं होगा, अब जरूरत है कि कश्मीरियों की आजादी में कड़ी मेहनत और कुर्बानी से हम हिस्सेदार बनें." नेशनल असेंबली में ही एक और भाषण में शहबाज़ ने कहा था- "कश्मीरी युवा घाटी में अपनी मां, बहनों, बेटियों और बच्चों पर जुल्म के खिलाफ खामोश नहीं रह सकते. अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीरियों का संहार रोकने के लिए आगे नहीं आता, तो यह कश्मीरियों को उत्पीड़न करने वाली ताकतों के खिलाफ अपनी सुरक्षा के लिए हथियार उठाने का अधिकार दे देगा. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी दुनिया की शांति और मानवता से खिलवाड़ कर रहे हैं. दमन के बीज बोने के बाद शांति की उम्मीद नहीं की जा सकती है."
कश्मीर को लेकर इस तरह की सोच रखने वाले शहबाज से भारत कितनी शराफत की उम्मीद कर सकता है, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.
गंभीर चुनौतियां से निपटना होगा शहबाज़ को
जहां तक भारत से संबंधों की बात है तो द्विपक्षीय संबंधों पर नजर रखने वाले विश्लेषक नए प्रधानमंत्री को नवाज शरीफ सरकार की निरंतरता के तौर पर देख रहे हैं जो अब भी लंदन में बैठकर पीएमएल-एन के सभी राजनीतिक फैसले लेते हैं और उनके भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संबंध कोई छिपी बात नहीं हैं. लेकिन शहबाज़ के लिए तमाम संभावित चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह दूसरा "मोदी का यार" कहे जाने को लेकर चिंतित होंगे. ये भी तय मानिए कि शहबाज़ कुछ वक्त के लिए ही सत्ता में रहने वाले हैं. क्योंकि कई विपक्षी दलों ने संकेत ये भी दिया है कि कुछ जरूरी सुधार के बाद नए सिरे से चुनाव कराए जाएंगे. विपक्ष में कई पार्टियां हैं और सबकी अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह कि शहबाज़ शरीफ आपसी सहयोग बनाते रहेंगे या सरकार चलाएंगे?
भारत को पाक चुनाव का इंतजार करना चाहिए
शहबाज़ शरीफ बड़ी मुश्किल से एक साल सरकार चलाएंगे और इस छोटे से कार्यकाल में उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि जिन मुद्दों पर वो इमरान खान को 'नालायक' कहते आ रहे थे, अगर उन मुद्दों को संभाल नहीं पाए मसलन बदतर आर्थिक हालात, महंगाई, भ्रष्टाचार तो फिर इमरान खान के लिए आगामी चुनाव में एक हरी घास की पिच खुद-ब-खुद तैयार हो जाएगी जहां पर वो बड़ी सहजता से विपक्ष की गिल्लियां बिखेर सकते हैं. क्योंकि इमरान अपनी सरकार को गिराए जाने में विदेशी साजिश के तहत अमेरिका का नाम पहले ही ले चुके हैं. पाकिस्तान के चुनाव में अमेरिका विरोधी सेंटीमेंट्स होते हैं और इमरान इसे भुनाने की पूरी कोशिश करेंगे क्योंकि नवाज ब्रदर्स का अमेरिका प्रेम जगजाहिर है. ऐसे में लगता नहीं है कि भारत को लेकर किसी एजेंडे पर गंभीर काम होगा. इसलिए पाकिस्तान से संबंधों पर जमी बर्फ के पिघलने की उम्मीद शहबाज़ शरीफ की सरकार से करना भारत के लिए फिलहाल ठीक नहीं होगा. इसके लिए पाकिस्तान में आगामी चुनाव का इंतजार करना होगा और उसके बाद जो नई सरकार चुनकर आएगी वही इस दिशा में कुछ पहल कर सकती है बशर्ते वह सेना और चीन का पिट्ठू न हो.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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