सम्पादकीय

अंग्रेजी के मोह से मुक्त हो भारत, भारतीय भाषाओं को समृद्ध बनाने का लें प्रण

Rani Sahu
28 Aug 2022 5:52 PM GMT
अंग्रेजी के मोह से मुक्त हो भारत, भारतीय भाषाओं को समृद्ध बनाने का लें प्रण
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सोर्स - जागरण
हृदयनारायण दीक्षित : भाषा अद्भुत लब्धि है। भाषा से समाज बना। समाज ने भाषा का संवर्द्धन किया। भाषा सामूहिक संपदा है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता का समूचा ज्ञान भारतीय भाषाओं में उगा। विचारों का जन्म और विकास मातृभाषा की ही गोद में होता है। मातृभाषा अभिव्यक्ति का स्वाभाविक माध्यम होती है। भारत में अनेक समृद्ध भाषाएं हैं, लेकिन विदेशी भाषा अंग्रेजी की ठसक है। यहां अंग्रेजी के जानकार विशिष्ट विद्वान माने जाते हैं।
अंग्रेज भारत आए। अंग्रेजी लाए। अंग्रेजी के साथ अपनी संस्कृति भी लाए। अंग्रेजों एवं अंग्रेजी विद्वानों ने प्रचारित किया कि भारत पहले राष्ट्र नहीं था। अंग्रेजों ने ही भारत को राष्ट्र बनाया। इस सबसे राष्ट्रीय क्षति हुई। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने भोपाल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आयोजित कार्यक्रम में अंग्रेजी के आकर्षण पर टिप्पणी की है, 'अंग्रेजी के मोह की वजह से हम अपनी प्रतिभा का पांच प्रतिशत उपयोग ही देश के विकास में कर पा रहे हैं। आज भी 95 प्रतिशत बच्चे मातृभाषा में पढ़ते हैं। जिस दिन स्थानीय भाषा में पढ़े बच्चों की देश की हर व्यवस्था में पूछ होगी, उस दिन भारत विश्व फलक पर सूर्य की भांति चमकेगा।' शाह की चिंता सही है। भारत को अंग्रेजी और अंग्रेजियत के मोहपाश से मुक्त होना चाहिए।
अंग्रेजी को विश्वभाषा कहा जाता है, लेकिन जापान, रूस, चीन आदि देशों में अंग्रेजी की कोई हैसियत नहीं है। एशिया महाद्वीप के 48 देशों में भारत के अलावा किसी भी देश की मुख्य भाषा अंग्रेजी नहीं है। अजरबैजान की भाषा अजेरी और तुर्की है। इजरायल की हिब्रू। उज्बेकिस्तान की उज्बेक। ईरान की फारसी। सऊदी अरब, सीरिया, इराक, जार्डन, यमन, बहरीन, कतर और कुवैत की भाषा अरबी है। चीन और ताइवान की भाषा मंदारिन है। श्रीलंका की सिंहली एवं तमिल है। अफगानिस्तान की पश्तो। तुर्किये की तुर्की है।
यूरोप अंग्रेजी भाषी माना जाता है, पर यूरोप के 43 देशों में से 40 की भाषा अंग्रेजी नहीं है। यहां डेनमार्क की डेनिश। चेक गणराज्य की चेक। रूस की रूसी। स्वीडन की स्वीडिश। जर्मनी की जर्मन। पोलैंड की पोलिश। इटली की इटैलियन। ग्रीस की ग्रीक। यूक्रेन की यूक्रेनी। फ्रांस की फ्रेंच। स्पेन की स्पेनिश। सिर्फ ब्रिटेन की भाषा अंग्रेजी और आयरलैंड की आयरिश एवं अंग्रेजी है। इसके बावजूद भारत में अंग्रेजी महारानी है।
अंग्रेजी केवल भाषा ही नहीं है। अंग्रेजी की विशेष संस्कृति है। यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति की विरोधी है और श्रेष्ठतावादी है। जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में फूट डालकर अपना स्वार्थ साधा वैसे ही अंग्रेजियत ने भारतीय भाषाओं में भेद किया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम की भाषा हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाएं थीं। कांग्रेस अपने जन्मकाल से ही अंग्रेजी को वरीयता दे रही थी। गांधी जी ने कहा था, 'अंग्रेजी ने हिंदुस्तानी राजनीतिज्ञों के मन में घर कर लिया है। मैं इसे अपने देश और मनुष्यत्व के प्रति अपराध मानता हूं।'
कांग्रेसी शासन ने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा अंग्रेजी माध्यम से ही कराई। जनता पार्टी की पहली गैर कांग्रेसी सरकार ने हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषा-भाषी छात्रों के साथ न्याय किया। 1979 से हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषा-भाषी छात्र भी अपनी भाषा में परीक्षा दे रहे हैं। संस्कृति, सेवायोजन एवं संवाद की भाषाएं भारतीय हैं। बावजूद इसके अंग्रेजी प्रभुवर्ग की भाषा बनी। मातृभाषा के उपयोग के अभाव में संस्कृति निष्प्राण होती है। अंग्रेजी को विश्वभाषा बताने वाले आत्महीन ग्रंथि के शिकार हैं। गांधी जी ने लखनऊ में आयोजित अखिल भारतीय एक भाषा-एक लिपि सम्मेलन (1916) में कहा, 'मैं टूटी-फूटी हिंदी में बोलता हूं। अंग्रेजी बोलने में मुझे पाप लगता है। किसी के सामने झुकने की जरूरत नहीं। अपनी भाषा में बात करो।'
संविधान सभा में राजभाषा पर लंबी बहस हुई थी। अलगू राय शास्त्री ने कहा, 'हिंदी की होड़ है अंग्रेजी के साथ। बांग्ला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ से नहीं। अंग्रेजी हुकूमत गई। अंग्रेजी हमारे किसी भी प्रांत की भाषा नहीं है।' आरवी धुलेकर ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बताया। कई सदस्यों ने आपत्ति की। धुलेकर ने कहा कि अंग्रेजी के नाम 15 वर्ष का पट्टा लिखने से राष्ट्र का हित साधन नहीं होगा।
स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वप्न पूरे करने के लिए पांच प्रण बताए हैं। पंच प्रण में 'गुलामी की हर मानसिकता से मुक्ति' महत्वपूर्ण है। अंग्रेजी भारत में गुलामी की सोच का प्रमुख स्तंभ है। ब्रिटिश सत्ता को भारत छोड़े हुए 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। अंग्रेजी संस्कार का दुष्प्रभाव बढ़ रहा है। बेशक अंग्रेजी एक भाषा है। भाषा के रूप में उसका ज्ञान बुरा नहीं है, लेकिन भारत के लिए अंग्रेजी सिर्फ भाषा नहीं है। यह पराधीनता का स्मारक है। अंग्रेजियत के प्रभाव में भारतीय इतिहास लेखन भी दूषित हुआ है। संस्कृति और सभ्यता पर इसका दुष्प्रभाव सुस्पष्ट है। शाह ने उसी भाषण में कहा कि 'अंग्रेजों ने अपना शासन चलाने के लिए भारतीय समाज में कई प्रकार की हीन भावनाओं की निर्मिति की थी। अब इन भावनाओं को त्यागने का समय आ गया है।' अब भारत आत्मविश्वासी राष्ट्र है। राष्ट्र जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्साह है।
संविधान (अनुच्छेद 351) में राजभाषा हिंदी के लिए केंद्र को निर्देश हैं, 'संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।' संविधान में आठवीं अनुसूची की भाषाओं को हिंदी एवं संस्कृत से शब्द लेने के निर्देश हैं। अंग्रेजी से शब्द लेने के निर्देश नहीं हैं। इसी संवैधानिक निर्देश का पालन करते हुए हम सब को राजभाषा एवं सभी भारतीय भाषाओं को समृद्ध बनाने का प्रण करना चाहिए। अंग्रेजी संस्कारों से मुक्ति का यही उचित समय है।
Rani Sahu

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