सम्पादकीय

भारत : अंतर्विरोधों से लड़कर मजबूत हुआ गणतंत्र

Neha Dani
26 Jan 2022 1:51 AM GMT
भारत : अंतर्विरोधों से लड़कर मजबूत हुआ गणतंत्र
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अधिक आत्मविश्वास से करने की शक्ति मिलती है। गणतंत्र दिवस पर गणतंत्रवाद का संदेश स्वतंत्रता के संदेश से मेल खाता है।

पश्चिम में गणतंत्रवाद के विकास की तुलना में, भारत में गणतंत्रवाद के विचार गांव के गणराज्यों में निहित थे, जो एक अच्छी, समृद्ध और शांतिपूर्ण व्यवस्था प्रदान करते थे। पाणिनी और कौटिल्य, दोनों ने ऐसे गणतंत्रों पर गौर किया। महाभारत के शांति पर्व में ऐसे गणराज्यों के गुणों, एकजुटता और समृद्धि की ओर इशारा करते हुए विस्तृत चर्चा की गई है। राज्य से संबंधित मामलों में राजनीतिक भागीदारी और विचार-विमर्श योद्धा वर्ग या राजा, शाही परिवारों (राजकुलों) से युक्त क्षत्रियों तक ही सीमित था।

अधिकांश गणराज्यों के शासकों ने एथेंस के विशेषाधिकार प्राप्त नागरिकों के समान एक गण या विशेषाधिकार प्राप्त समूह का गठन किया। अठारहवीं शताब्दी के अंत में जब भारत में आधुनिक जागरण का दौर शुरू हुआ, जिसे भारतीय पुनर्जागरण कहा जाता है, एक अच्छी सार्वजनिक व्यवस्था को लेकर बहस शुरू हुई, जो आज भी जारी है। तीन महत्वपूर्ण घटनाक्रमों ने ऐसे विचारों को जन्म दिया पहला, अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियों का प्रभाव।
राममोहन राय ने इंग्लैंड जाते समय कैलाइस में रुकने पर फ्रांसीसी ध्वज को सलामी दी। दूसरा, विलियम जोन्स (1746-94) के नेतृत्व में एशियाटिक सोसाइटी के प्रयासों के माध्यम से भारत की महान विरासत के बारे में जागरूकता और तीसरा, पश्चिमी उदार विचारों, वैज्ञानिक तर्क और कानून के शासन से परिचित एक शिक्षित मध्यम वर्ग का उदय। यह एक समझ की शुरुआत थी कि भारतीय समाज असमान है और इसमें तत्काल सामाजिक सुधार की जरूरत है।
भारतीय अभिजात वर्ग ने महसूस किया कि अमेरिकी स्वतंत्रता राजनीतिक थी, जिसमें सामाजिक स्वतंत्रता निहित नहीं थी। फ्रांसीसी क्रांति की तुलना में यह कम आकर्षक थी, जिसने राजनीतिक और सामाजिक, दोनों व्यवस्था को पुनर्व्यवस्थित करने का प्रयास किया। 19वीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत में इटली के राजनीतिक विचारक ग्यूशेप मेजिनी के सुधारवादी विचारों ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी, लाजपत राय और महात्मा गांधी को प्रभावित किया।
सामाजिक व्यवस्था पर राजनीतिक व्यवस्था की प्रधानता के प्रश्न के बारे में, तिलक ने तर्क दिया कि चूंकि सामाजिक मुद्दे विभाजनकारी हैं, इसलिए उन्हें स्वतंत्रता प्राप्ति तक स्थगित करना होगा और उसके बाद ही उनसे आसानी से निपटा जा सकता है। ज्योतिराव फुले के अग्रणी कार्य ने जाति शोषण की अमानवीयता को सामने ला दिया, और जिसने धीरे-धीरे राष्ट्र को हिला दिया और उनके इस कार्य को नारायण गुरु, पेरियार और आंबेडकर ने जारी रखा।
हालांकि, गांधी ने महसूस किया कि भारत जैसे बड़े अंतर्विरोधों वाले देश में, स्वतंत्रता की लड़ाई सामाजिक एकता और अस्पृश्यता को समाप्त करने पर आधारित होनी चाहिए। इसने गांधी और आंबेडकर के बीच हुए ऐतिहासिक पूना पैक्ट, 1932 को जन्म दिया, जिसके द्वारा शिक्षा, सेवाओं और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण के साथ दी गई बड़ी रियायतों के साथ भारतीय समाज के एक स्थायी विभाजन को रोका गया।
1946 में शुरू हुई संविधान निर्माण प्रक्रिया के दौरान लोकतंत्र और गणतंत्र, दोनों का परस्पर उपयोग किया गया था, जिसका अर्थ था कि गणतंत्रीय आदर्श संविधान का अभिन्न अंग बन जाएंगे। सांविधानिक प्रावधानों का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह शक्ति और अधिकार का वितरण करता है, मौलिक अधिकार, सामाजिक न्याय और निर्देशक सिद्धांतों को सुरक्षित करता है। एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता 21 वर्ष से ऊपर के प्रत्येक भारतीय को सार्वभौमिक मताधिकार प्रदान करना था, जबकि पश्चिम में इसे सीमित रखा गया था।
आंबेडकर ने उस कार्य की याद दिलाई, जो आगे था, अर्थात भारत अभी एक राष्ट्र नहीं था। एक राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया एक कठिन प्रक्रिया है। और हमारे संविधान ने प्रमुख अंतर्विरोधों को सफलतापूर्वक एकीकृत किया है, जिससे हमारे युवा राष्ट्र को अपने जनसांख्यिकीय लाभ के साथ अपनी स्वतंत्रता के पचहत्तरवें वर्ष में दुनिया का सामना और अधिक आत्मविश्वास से करने की शक्ति मिलती है। गणतंत्र दिवस पर गणतंत्रवाद का संदेश स्वतंत्रता के संदेश से मेल खाता है।
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