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- अमृत काल में संपन्नता...
हर्ष गुप्ता मधुसूदन। हमारे यहां एक बड़ी मशहूर कहावत है-मुंगेरी लाल के हसीन सपने। असल में किसी महत्वाकांक्षा का मखौल उड़ाना और उसे संशय की दृष्टि से देखना बहुत आसान होता है। उपहास और निंदा करने में कुछ खर्च भी तो नहीं होता। ऐसे विघ्नसंतोषी निराशा से लगाव रखते हैं, लेकिन वास्तविकता यही है कि अंत में आशावाद ही विजयी होता है। आशावादी और निराशावादी की यह बहुत कुछ आगे जाए, उससे पहले ही मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं मेरा वास्ता इन दोनों में से किसी से नहीं। मैं अनुभववादी हूं। इसमें अनुभवों एवं साक्ष्यों का सम्मिश्रण होता है। वस्तुत: किसी भी आकलन में इन तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन दिनों भारत को लेकर भी तमाम आकलन लगाए जा रहे हैं, जो आगामी 15 अगस्त को अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर लेगा। फिर अगले 25 वर्षों के दौरान स्वतंत्रता की सौवीं वर्षगांठ मनाने की यात्रा आरंभ होगी। इसे अमृत काल का नाम दिया जा रहा है। इस अवसर पर अपने विश्लेषण के आधार मैं यही कहूंगा कि अब भारत का स्वर्णिम दौर शुरू हो गया है। आने वाले समय में इस सुनहरे दौर की चमक और निखरकर ही सामने आएगी। भारत तेज वृद्धि के एक नए चक्र में दाखिल होने जा रहा है।