सम्पादकीय

India Power Crisis : भारत में पावर सेक्टर की आर्थिक कमर न तोड़ दे विदेशी कोयले से बिजली बनवाने की जिद!

Rani Sahu
19 May 2022 2:45 PM GMT
India Power Crisis : भारत में पावर सेक्टर की आर्थिक कमर न तोड़ दे विदेशी कोयले से बिजली बनवाने की जिद!
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केंद्र सरकार द्वारा कोयला आयात (Coal Import) करने के लिए राज्यों को भेजा गया ताजा निर्देश भारत में बिजली सेक्टर के लिए आर्थिक मोर्चे पर बहुत भारी पड़ सकता है

रंजीव |

केंद्र सरकार द्वारा कोयला आयात (Coal Import) करने के लिए राज्यों को भेजा गया ताजा निर्देश भारत में बिजली सेक्टर के लिए आर्थिक मोर्चे पर बहुत भारी पड़ सकता है. हाल के महीनों में देश भर में भारी बिजली संकट (Power Crisis) के बीच बिजली उत्पादन के लिए विदेशों से कोयला मंगवाने के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच लुका-छुपी का खेल लगातार चल रहा है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश के 108 ताप बिजली घरों के पास केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority) की ओर से निर्धारित स्टॉक सीमा की तुलना में 25 फीसदी से कम कोयला है जिसे क्रिटिकल स्टेज माना जाता है.
ऐसे में केंद्र सरकार चाहती है कि सभी राज्य यथाशीघ्र विदेशों से कोयला मंगवाने का टेंडर जारी करें, लेकिन आयातित कोयले के घरेलू कोयले की तुलना में कहीं ज्यादा महंगा होने को आधार बताते हुए ज्यादातर राज्यों ने इस मामले में अभी आगे कोई कार्यवाही नहीं की है. लेकिन इसी पृष्ठभूमि में बुधवार 18 मई को केंद्र सरकार की ओर से जारी ताजा निर्देश देश के पावर सेक्टर में चर्चा का विषय बना हुआ है. केंद्र सरकार के ताजा निर्देश में कहा गया है कि 31 मई 2022 तक जो ताप बिजली घर कोयला आयात करने का आदेश नहीं करेंगे और 15 जून तक बिजली उत्पादन के लिए घरेलू कोयले के साथ आयातित कोयले की ब्लेंडिंग यानी उसे मिलाना शुरू नहीं करेंगे तो उन्हें इसके बाद 10 फीसदी के बजाय 15 फीसदी कोयला 31 अक्टूबर 2022 तक आयात करना होगा. इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने आगे यह भी कहा है कि 1 जून 2022 के बाद घरेलू कोयले के आवंटन में भी ऐसे ताप बिजली घरों को 5 फीसदी कम कोयला दिया जाएगा जिन्होंने आयातित कोयले का आदेश नहीं किया है.
आयातित कोयला बंदरगाहों पर आएगा फिर पूरे देश में जाएगा
केंद्र के इस निर्देश की भाषा और तेवरों को बिजली सेक्टर के विशेषज्ञ कोयला आयात करने के लिए बढ़ाया जा रहा बेजा दवाब मान रहे हैं जो कि उचित नहीं है. उनका कहना है कि इससे स्पष्ट हो जाता है कि केंद्र सरकार ने कोयला आयात करने को मुख्य ध्येय बना लिया है. इतना ही नहीं राज्यों के अधिकांश ताप बिजली घर आयातित कोयले के लिए डिजाइन नही किये गए हैं. ऐसे में घरेलू कोयले के साथ आयातित कोयला मिलाने से तकनीकी दिक्कतें भी खड़ी हो सकती हैं. ऊर्जा विशेषज्ञों के मुताबिक चूंकि बिजली उत्पादन के लिए हालिया कोयला संकट में राज्य के बिजली उत्पादन गृहों का कोई दोष नहीं है लिहाजा केंद्र सरकार को कोयला आयात के अतिरिक्त खर्च को खुद उठाना चाहिए.
दरअसल बिजली उत्पादन के लिए कोयले की उपलब्धता के मामले में परस्परविरोधी बयानों ने भी भ्रम में इजाफा ही किया है. मसलन एक ओर तो केंद्र सरकार अप्रैल तक यह दावा करती रही है कि कोल इंडिया का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में अधिक हुआ है और कोयले का कोई संकट नहीं है, दूसरी ओर अब इसके ठीक विपरीत केंद्र सरकार यह कह रही है कि राज्य के ताप बिजली घर कोयला आयात करें और अब यह कोयला आयात करने का कार्यक्रम 31 मार्च 2023 तक बढ़ा दिया गया है. आनन फानन में विदेशों से कोयला मंगवाने के केंद्र के निर्देश का एक पहलू बिजली उत्पादन केंद्रों तक इसके परिवहन से भी जुड़ा है.
मसलन, वर्तमान में ताप बिजली घरों तक कोयला न पहुंचने का प्रमुख कारण रेलवे के रेक की कमी बताई जा रही है. ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि आयातित कोयला जो बंदरगाहों पर आएगा वहां से कई हजार किलोमीटर दूर स्थित ताप बिजली घरों तक किस तरह यह कोयला पहुंचाया जाएगा? इस पूरे प्रकरण पर ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे कहते हैं, मौजदा कोयला संकट केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों बिजली, कोयला और रेल के आपसी समन्वय की भारी कमी के कारण पैदा हुआ है. ऐसे में राज्यों पर कोयला आयात करने के लिए बेजा दवाब न डाला जाए और यदि राज्यों को कोयला आयात करने के लिए मजबूर किया जाता है तो आयातित कोयले का अतिरिक्त भार केंद्र सरकार को उठाना चाहिए.
आयातित कोयला तकरीबन चार गुना महंगा होगा
उल्लेखनीय है कि भारत में बिजली उत्पादन का करीब 70 फीसदी कोयले पर निर्भर है. लिहाजा कोयले की कमी बिजली उत्पादन और सप्लाई पर तत्काल असर डालती है. बिजली उत्पादन केंद्रों की आय का जरिया उसके खरीदारों, यानी बिजली वितरण कंपनियों द्वारा खरीदी गई बिजली के एवज में किए जाने वाले भुगतान पर निर्भर करता है. वर्तमान में भुगतान की जो स्थिति है उसके मुताबिक वितरण कंपनियों का बिजली उत्पादन की संस्थाओं पर हजारों करोड़ रुपए का बकाया है. ऐसे में उत्पादन की संस्थाएं भी कोयला समेत अन्य कच्चा माल के भुगतान में फिसड्डी रहती हैं. यानी बिजली का पूरा सिस्टम भारी घाटे में चल रहा है.
ऐसे में पहले से भारी आर्थिक संकट झेल रहे बिजली सेक्टर के लिए कोयला आयात करना उनपर भारी भरकम आर्थिक बोझ साबित होगा. जानकारों के मुताबिक घरेलू कोयले की तुलना में आयातित कोयला तकरीबन चार गुना महंगा होगा. चूंकि निर्देश केंद्र का है लिहाजा इसे दरकिनार करना आसान नहीं होगा. हालांकि इसके बावजूद कई राज्यों ने कोयला आयात करने की अभी मंजूरी नहीं दी है, क्योंकि महंगा कोयला बिजली की कीमत भी महंगी करेगा.
बिजली की मांग के मामले में अव्वल राज्यों में शामिल उत्तर प्रदेश ने भी अभी तक कोयला आयात करने को मंजूरी नहीं दी है. सूबे के बिजली विभाग ने इसके लिए राज्य सरकार से मंजूरी मांगी है. इतना ही नहीं, बिजली विभाग ने उत्तर प्रदेश के सभी निजी बिजली उत्पादन केंद्रों को पत्र भेज कर कहा है कि चूंकि विदेशी कोयले का मामला उत्तर प्रदेश सरकार के पास विचाराधीन इसलिए सरकार के निर्णय के बाद निजी बिजली घरों के लिए बिजली विभाग का अनुमोदन जरूरी होगा. यानी बिजली संकट पर काबू पाने के लिए विदेशों से कोयला मंगाने के मामले में असमंजस जारी है और राज्यों की सहमति हो भी गई तो भी इतना तय है कि इसके आर्थिक पहलू पर बहस जारी रहेगी.
Rani Sahu

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