सम्पादकीय

भारत-पाकिस्तान टी-20 वर्ल्ड कप 2021: खेल भावना को ताक पर रखकर फिर शुरू हुआ 'डर्टी गेम' पर फोकस

Gulabi
24 Oct 2021 11:30 AM GMT
भारत-पाकिस्तान टी-20 वर्ल्ड कप 2021: खेल भावना को ताक पर रखकर फिर शुरू हुआ डर्टी गेम पर फोकस
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भारत-पाकिस्तान टी-20 वर्ल्ड कप 2021

भारत-पाकिस्तान के बीच खेला जाने वाला क्रिकेट मैच किसी युद्ध की तरह ही करार दिया जाता है। दोनों तरफ भावनाओं में बहने वाले लोग अच्छे प्रदर्शन पर खिलाड़ियों को सिर पर बैठा लेते हैं और खराब प्रदर्शन पर उनके घरों के सामने प्रदर्शन करते हैं, उनके परिवार तक को धमकी देने से बाज नहीं आते।


खेलों के साथ ऐसा भारत-पाकिस्तान के अलावा तब भी होता है, जब मुख्यतः यूरोपियन देश फुटबॉल खेलते हैं। वहां भी एक-दूसरे को गालियां देने से लेकर गोलियां चलाने तक का काम अंजाम दिया जाता है। खेलों को लेकर इस तरह का रवैया सोच में डालता है, क्योंकि खेलों का तो मूल मकसद ही एक-दूसरे के प्रति खेल भावना विकसित करने का होता है, न कि खेल भावना को ताक पर रखकर एक-दूसरे से युद्धरत हो जाने का।

फिर आते हैं भारत पाकिस्तान क्रिकेट मैच पर। ये खेल नहीं एक पूरा एक बाजार है, जहां टीवी से लेकर पटाखे तक बिकने को तैयार हैं। एक सामान्य सा खेल जो कि भारत के राष्ट्रीय खेल पर तक हावी है, उसका हौव्वा इस कदर आमजन के दिमाग में फिट कर दिया जाता है कि हार-जीत युद्ध की जय-पराजय जितनी गंभीर हो जाती है। तुर्रा यह कि खेल का हर प्रतिद्वंदी उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना सिर्फ एक पड़ोसी देश।

बात फिर सिर्फ जीत का जश्न मनाने तक सीमित नहीं रहती। कुछ सिरफिरे लोग इसे धर्म और लैंगिक अपशब्दों का अखाड़ा बना देते हैं। बात बहस से बढ़कर लड़ाई और दंगों तक पहुंच जाती है। महज एक खेल में हार-जीत का परिणाम कुछ लोगों के साथ साथ पूरे देश को उठाना पड़ता है। यहीं बात खत्म नहीं हो जाती। इस आग को आने वाली पीढ़ियों तक ऐसे ही पहुंचाने की पूरी कोशिश की जाती है।

आज यानी 24 अक्टूबर को फिर एक बार भारत-पाकिस्तान टी-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप में एक-दूसरे के खिलाफ खेलने वाले हैं। पिछले कुछ दिनों से अनवरत सोशल मीडिया से लेकर टीवी के विज्ञापनों तक में इसी मैच से संबंधित खबरों की बाढ़ जारी है।

समाचार चैनल्स में तो भारत-पाकिस्तान के पिछले सालों में खेले मैचों के अंश दिखाए जा रहे हैं। यहां तक भी ठीक है, लेकिन इन झलकियों में केवल वे हिस्से शामिल किए जा रहे हैं, जिनमें या तो खिलाड़ी एक-दूसरे से बहस कर रहे हैं या कोई कंट्रोवर्शियल स्थिति पैदा हो रही है। इतने पर भी चैनल्स रुक नहीं रहे, उन हिस्सों को विशेष कमेंट्री और स्लो मोशन के साथ-साथ रिपीट किया जा रहा है। मतलब एक ही शॉट कम से कम 10 बार दिखाया जा रहा है।

पिछले कई सालों से विज्ञापन की एक सीरीज चलाई जा रही है, जिसमें बाकी प्रतिद्वंदी देशों के साथ-पाकिस्तान को भी टारगेट किया गया है।
'मौका' भी है और दस्तूर भी है कि इस विज्ञापन में ज्यादातर पाकिस्तान को लेकर ही इस तरह के तंज कसे गए हैं कि मेरे 10 वर्षीय बेटे ने ऐसे ही एक विज्ञापन को देखकर कहा कि -'ये तो गलत बात है ममा। किसी को ऐसे थोड़े ही ना रोस्ट करते हैं।' क्योंकि इस विज्ञापन में दो बच्चे क्लास में बैठे हैं और बच्ची अपने सहपाठी बच्चे से कहती है कि तेरे पापा को थैंक्स, क्योंकि उन्होंने जीरो का आविष्कार नहीं किया होता तो मैथ्स इतना आसान नहीं होता।
जब बच्चे के पिता आते हैं तो वह बच्ची उनसे कहती है कि- 'अंकल हर मौके पर इतने जीरो लाओगे तो....।' ये कौन सा कल्चर, कौन सी शिक्षा हम बच्चों को दे रहे हैं? वे बच्चे जो निष्कपट हैं, जो न धर्म जानते हैं, न जात। उनके मन मे हम ये जहर भर रहे हैं। और ऐसा नहीं कि ये एक तरफा है। जो भी पक्ष ये जहर बो रहा है, वह कटघरे में खड़ा करने लायक है।

अब आते हैं उन सवालों पर जो इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद कई लोगों के मन में कुलबुलाएंगे। राष्ट्रीयता या देशप्रेम क्या सिर्फ एक खेल या दो छुट्टियों (26 जनवरी/15 अगस्त) तक ही सीमित होना चाहिए? आप कहेंगे कि वे लोग (पड़ोसी मुल्क) तो इससे भी खराब कटाक्ष करते हैं। तो जनाब अगर वो ऐसा करते हैं तो उनको जवाब देने के भी तरीके हैं और हमारे खिलाड़ी इसमे बहुत सक्षम हैं। वो मैदान पर निपट लेंगे, क्योंकि आखिरकार तो जीत उसकी ही होती है जो बोलने की बजाय करके दिखाने में विश्वास रखता है।

शायद बहुत लोगों को इससे कोई फर्क न पड़ता हो लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस तरह से पैदा किए गए तनाव का असर खिलाड़ियों पर कितना होता होगा? इतना कि कोई भी सामान्य इंसान लक्ष्य से ही भटक जाए, बल्कि कई बार तो खिलाड़ी भावना से भरे होने के बावजूद खिलाड़ियों को अच्छा खेल दिखाने के साथ दूसरी तरफ के खिलाड़ियों के साथ एटीट्यूड दिखाने की एक्टिंग भी करनी पड़ती होगी। इतना ही नहीं इससे देश और समाज का माहौल भी खराब होता है और यह बात दोनों पक्षों पर लागू होती है।

तनाव के साथ खेलना कोई नहीं चाहता। ये कोई युद्ध नहीं है और वैसे भी युद्ध कोई नहीं चाहता। सीमा पर बैठा हमारा हर एक सिपाही भी आपकी-हमारी तरह अपने परिवार के साथ बैठकर सुकून के पल बिताना चाहता है। जब दुश्मन आएगा तो हमें जवाब देना बखूबी आता है। हमारे वीर सिपाहियों ने पहले भी 'मौकापरस्त' गलत ताकतों को मुंहतोड़ जवाब दिया है और आगे भी देंगे। इसलिए इस बार भारत के जीतने की दुआ कीजिए, लेकिन यह दुआ भी कीजिए कि अमन-चैन भी बरकरार रहे। ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को ये बता सकें कि बेटा- खेल हो या युद्ध हम बोलते नहीं, बहादुरी से काम करके दिखाते हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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