सम्पादकीय

भारत-पाकिस्तान: LOC पर शांति की उम्मीद

Gulabi
27 Feb 2021 1:13 PM GMT
भारत-पाकिस्तान: LOC पर शांति की उम्मीद
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काफी समय से यह जरूरत महसूस की जा रही थी कि प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष बातचीत के जरिए ही सही,

भारत और पाकिस्तान की सेनाओं की ओर से संयुक्त घोषणापत्र के रूप में गुरुवार को आई यह खबर एकबारगी सबको चौंका गई कि दोनों पक्ष एलओसी पर युद्धविराम समझौते का सख्ती से पालन करने पर सहमत हो गए हैं। दोनों देशों के बीच युद्धविराम का समझौता 2003 में ही हुआ था। कमोबेश इसका पालन भी हो रहा था। लेकिन फरवरी 2019 में पुलवामा हमले के बाद जो हालात बदले, तो फिर युद्धविराम समझौता मानो बेमानी ही हो गया। केंद्रीय गृहराज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कुछ ही दिनों पहले लोकसभा में बताया था कि पिछले तीन वर्षों के दौरान एलओसी पर युद्धविराम उल्लंघन की 10752 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 72 सुरक्षाकर्मी और 70 आम नागरिक मारे गए। निश्चित रूप से सीमा पर लगातार तनाव की यह स्थिति दोनों पक्षों के लिए नुकसानदेह थी।

काफी समय से यह जरूरत महसूस की जा रही थी कि प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष बातचीत के जरिए ही सही, पर सीमा पर तैनात दोनों देशों के सैनिकों में न्यूनतम विश्वास बहाल किया जाए, ताकि दोनों तरफ जान माल के अनावश्यक नुकसान से बचा जा सके।

हालांकि आधिकारिक तौर पर इस सहमति को डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल्स ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस) लेवल की बातचीत का ही नतीजा बताया गया है, लेकिन जानकारों के मुताबिक बैकडोर चैनल की महीनों चली बातचीत के बाद ही यह संभव हो पाया है। कहीं न कहीं यह इस तथ्य की भी भूमिका इसमें रही है कि दोनों ही देशों को अपनी दूसरी सीमाओं पर भी लगातार ध्यान देना जरूरी लग रहा था।


भारत जहां लद्दाख बॉर्डर पर चीनी सेना की गतिविधियों पर पैनी नजर बनाए हुए था, वहीं पाकिस्तान के सामने अमेरिकी सेना की वापसी की चर्चा के बीच अफगानिस्तान सीमा पर चुनौतियां बढ़ती जा रही थीं। बहरहाल, भारत के लिए यह सचमुच राहत की बात है कि जहां चीनी सेना के साथ एक स्तर की सहमति के बाद कुछ जगहों से दोनों सेनाओं की वापसी की प्रक्रिया शुरू हुई है, वहीं एलओसी पर भी शांति स्थापित होने की संभावना जगी है। हालांकि इसका यह कतई मतलब नहीं है कि दोनों देशों के बीच विवाद के बिंदु कम हो गए हैं। जैसा कि भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताने भी साफ किया कि सभी महत्वपूर्ण मसलों पर हमारा रुख अपरिवर्तित है। ऐसे में यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि आखिर इस सहमति की आयु को लेकर आश्वस्त कैसे हुआ जा सकता है।
क्या गारंटी है कि फिर कोई आतंकी गुट कोई बड़ा कांड करके इस सहमति की धज्जियां उड़ने वाले हालात नहीं बना देगा? जाहिर है कि इसका पॉजिटिव जवाब पाकिस्तान सरकार का आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़ा ऐक्शन ही हो सकता है। तभी आतंकी तत्वों पर लगाम लगेगी और वे दोनों देशों के संबंधों को बिगाड़ने के अपने मंसूबों से तौबा करेंगे।


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