सम्पादकीय

भारत-नेपालः रिश्तों में लौटी गर्मजोशी

Subhi
19 May 2022 2:44 AM GMT
भारत-नेपालः रिश्तों में लौटी गर्मजोशी
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बुद्ध जयंती के मौके पर एक दिवसीय यात्रा पर नेपाल जाना अपने आप में द्विपक्षीय रिश्तों में पॉजिटिव बदलाव का मजबूत संकेत है।

नवभारत टाइम्स; प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बुद्ध जयंती के मौके पर एक दिवसीय यात्रा पर नेपाल जाना अपने आप में द्विपक्षीय रिश्तों में पॉजिटिव बदलाव का मजबूत संकेत है। हालांकि प्रधानमंत्री के रूप में यह उनकी पांचवीं नेपाल यात्रा थी, लेकिन 2019 में दोबारा सरकार बनाने के बाद से उनके नेपाल जाने का यह पहला ही मौका था। 2016 से जुलाई 2021 में शेर बहादुर देउबा के प्रधानमंत्री बनने तक दोनों देशों के रिश्ते खराब हो गए थे। उसके बाद द्विपक्षीय रिश्तों में सुधार और मजबूती का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह भारतीय प्रधानमंत्री की इस यात्रा से और आगे बढ़ेगा। भारत इस बात को भी समझता है कि जियो-पॉलिटिक्स के लिहाज से नेपाल खासी अहमियत रखता है। इसी वजह से वहां चीन से लेकर अमेरिका तक की दिलचस्पी बनी हुई है। खासतौर पर जिस तरह से चीन के साथ सीमा विवाद बढ़ा है, उसे देखते हुए भारत को नेपाल सहित सभी पड़ोसियों के साथ संबंधों को और मजबूत बनाना होगा। भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा भी कि द्विपक्षीय संबंध न केवल नेपाल और भारत के लिए बल्कि इस पूरे क्षेत्र के लिए और प्रकारांतर से पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं।

मोदी की यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आर्थिक सहयोग सुनिश्चित करने वाले आधा दर्जन समझौतों पर भी दस्तखत किए। खासकर ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग पर जोर रहा। भारत और नेपाल के बीच पारंपरिक और सांस्कृतिक संबंध बहुत पुराना है, लेकिन अब एक दूसरे के सहयोग से दोनों देशों की आर्थिक ग्रोथ तेज करने पर ध्यान दिया जा रहा है। यह बहुत अच्छा प्रयास है और इसकी सराहना की जानी चाहिए। यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 2019 में भारत को पीछे छोड़ते हुए चीन वहां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक बन गया था। असल में, 2016 के बाद भारत विरोध नेपाली राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति का जरिया बन गया था। नेपाल के कुछ राजनीतिक दलों ने भी इसे हवा दी। इसमें खासतौर पर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) सबसे आगे थी। इसी वजह से उस दौरान चीन को वहां अपना प्रभाव बढ़ाने में कामयाबी मिली। लेकिन देउबा के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद से वहां विदेश नीति को संतुलित करने की कोशिश शुरू हुई, जिसके अच्छे नतीजे दिखने लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही कहा कि ये रिश्ते हिमालय की तरह प्राचीन और अटूट हैं। अगर कुछ खास परिस्थितियों में इनमें कुछ समय के लिए गिरावट आई तो उसे दुर्भाग्यपूर्ण अपवाद मानकर भुला देने और फिर नए सिरे से संबंधों को नई ऊंचाइयों की ओर ले जाने में ही समझदारी है। अच्छी बात है कि दोनों देशों का नेतृत्व इसी समझ के आधार पर 'बीती ताहि बिसारि दे आगे की सुधि लेइ' की भावना के तहत आगे बढ़ रहा है।


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