सम्पादकीय

भारत ने आपदा को बनाया अवसर, दिख रहा नीतिगत फैसलों का असर

Rani Sahu
5 Aug 2022 11:10 AM GMT
भारत ने आपदा को बनाया अवसर, दिख रहा नीतिगत फैसलों का असर
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भारत ने आपदा को बनाया अवसर

सोर्स- जागरण

के वी सुब्रमण्यन : दुनिया कोविड (covid) महामारी के झटकों से उबरने की कोशिश कर ही रही थी कि तभी रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukrain war) ने उसे फिर से मुश्किलों में डाल दिया। अब उसे दोनों मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ रहा है। चूंकि विश्व अभी कोविड पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं कर पाया है। लिहाजा एक तरफ इससे बचाव के उपाय लागू करने की मजबूरी है तो वहीं दूसरी तरह कोविड और यूक्रेन संकट से आपूर्ति श्रृखंला टूटने के चलते बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था को संभालने में दुनिया के देशों के पसीने छूट रहे हैं। पिछले दिनों ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट ने यह कह कर उसकी चिंता बढ़ा दी कि अधिकांश देश महंगाई और मंदी से दो-चार होने के लिए तैयार रहें। हाल में आई अमेरिकी विकास दर के आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते प्रतीत हो रहे हैं। लगातार दो तिमाहियों में उसकी विकास दर में गिरावट आई है। इसके आधार पर कई विशेषज्ञ अमेरिका में मंदी की बात करने लगे हैं

अमेरिका में मंदी की आहट के बीच भारत अगर मंदी के खतरे से बाहर दिख रहा है तो इसका कारण इसकी कोविड काल के दौरान अपनाई गई सफल नीति है। इसके सकारात्मक पहलुओं को देखकर आज विश्व हैरान है। अमेरिका जैसे कई विकसित देशों की अर्थव्यवस्था को जहां कोविड महामारी से बड़ा झटका लगा है, वहीं भारत ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर नीतिगत फैसलों से महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था के हालात पर अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता पाल क्रूगमैन कहते हैं कि अमेरिका में बढ़ती महंगाई और मंदी का कारण कोविड महामारी के दौरान अभूतपूर्व खर्च है।
भारत और दुनिया के बड़े-बड़े देशों की कोविड नीति पर गौर करें तो पाएंगे कि जहां उन्नत और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं ने मुख्य रूप से मांग को प्रोत्साहित करने की अपनी नीति पर फोकस किया। वहीं भारत ने आपूर्ति की कमी को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए। कोरोना काल में भारत ने मुख्य रूप से तीन बातों पर ध्यान दिया। पहला, इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च के लिए तर्कसंगत राजकोषीय नीति। दूसरा, आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को कम करने के लिए जरूरी सुधार और तीसरा, विशेष क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ाने के लिए कंपनियों को प्रोत्साहन। इसके अलावा भारत ने कोविड के दौरान करदाताओं की पाई-पाई का सही इस्तेमाल करने के लिए मांग पक्ष को मजबूत करने के लिए भी त्रिआयामी नीति अपनाई। जैसे कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से 80 करोड़ नागरिकों को अनाज और दालों की आपूर्ति की गई। इससे राजकोष पर कोई बोझ नहीं पड़ा, क्योंकि अन्न का जो भंडार पहले से मौजूद था, उसका इस्तेमाल किया गया।
भारत सरकार ने आधार की डिजिटल पहचान और 2014 के बाद प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खोले गए 40 करोड़ से अधिक बैंक खातों के माध्यम से कमजोर वर्ग के लोगों को पैसे ट्रांसफर कर प्रत्यक्ष लाभ दिया। चूंकि बैंकों के पास उधारकर्ताओं के बारे में सारी छोटी-बड़ी जानकारी मौजूद थी, इसलिए बैंकों द्वारा छोटी कंपनियों और माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं द्वारा शहरी गरीबों को कर्ज देने के लिए सरकार ने ऋण पर अपनी गारंटी दी। सरकार की गारंटी के साथ दिए हुए इस कर्ज से सुनिश्चित हुआ कि पैसा सही रूप में संकटग्रस्त लोगों तक ही पहुंच रहा है। इसकी एक अच्छी बात यह थी कि कर्ज का भुगतान कोविड काल में न करके अर्थव्यवस्था ठीक होने पर करना था। इससे लोगों को कर्ज लेने के लिए प्रोत्साहन मिला।
ऐसे उपायों से संकटग्रस्त लोगों तक सौ रुपये पहुंचाने के लिए सरकार को केवल पांच रुपये खर्च करने पड़े और वह भी तब जब अर्थव्यवस्था ने गति पकड़ ली। अब जरा इस तरह की दूरदर्शी नीति की तुलना वर्ष 2008 में आए वैश्विक वित्तीय संकट के बाद बनाई गई विफल नीति से करें। उस दौरान कृषि ऋण को माफ किया गया, जिसका लाभ सिर्फ अमीर किसानों और विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक पहुंचा। यहां तक कि उस दौरान आपूर्ति पक्ष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने के बाद भी महंगाई डेढ़ वर्षों के लिए उच्च दोहरे अंकों में रही। अगर देश इस तरह की नीति पर आज आगे बढ़ा होता तो मुद्रास्फीति डेढ़ वर्षों से अधिक समय के लिए 20 प्रतिशत से ज्यादा रहती। इससे केवल अमीरों को ही फायदा पहुंचता।
वैश्विक मंदी के दौरान वर्ष 2008 में भारत और दुनिया के कई देशों की विफल नीति अर्थशास्त्री कीन्स के सुझावों का परिणाम थी, लेकिन विचार की स्पष्टता, दृढ़ विश्वास और साहस के समायोजन से कोविड के दौरान भारत ने बाकि देशों के मुकाबले अलग तरह से कामयाबी पाई है। इस प्रकार देखें तो भारत ने महामारी के दौरान आपूर्ति श्रृखंला की दिक्कतों को न सिर्फ वक्त से पहले ही भांप लिया, बल्कि उसे दूर करने के लिए ठोस उपाय सुनिश्चित किए। भारत ने मांग और आपूर्ति दोनों पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया।
कोविड के दौरान पूंजीगत खर्च 13.5 प्रतिशत बढ़ा, जबकि अगर 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान के आंकड़ों पर गौर करेंगे तो यह पांच प्रतिशत कम हुआ था। बड़े पैमाने पर पूंजीगत खर्च से अर्थव्यवस्था को बल मिला और इसका अच्छा प्रभाव हुआ। इसलिए आज भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया के कई देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है। जब हम दो संकट की तुलना करते हैं तब उस वक्त की सरकारों के द्वारा उठाए गए कदमों और अर्थव्यवस्था को लेकर उनकी समझ को साफ तौर पर देखने का मौका मिलता है। दरअसल हम भारत में हर चीज को लेकर अतिरंजित प्रतिक्रिया करते हैं, लेकिन जहां तक अर्थव्यवस्था को लेकर भारत के भविष्य का सवाल है तो इसमें वैश्विक स्तर पर तेजी से आगे बढऩे की संभावनाएं मौजूद हैं।


Rani Sahu

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