सम्पादकीय

पाकिस्तान की सियासत के लिए भारत अहम, वहां की सेना और नई सरकार को रिश्ते सुधारने पर ध्यान देने की जरूरत

Gulabi Jagat
13 April 2022 11:42 AM GMT
पाकिस्तान की सियासत के लिए भारत अहम, वहां की सेना और नई सरकार को रिश्ते सुधारने पर ध्यान देने की जरूरत
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पाकिस्तान की सियासत के लिए भारत अहम
के वी रमेश।
पाकिस्तान (Pakistan) के राजनीतिक नैरेटिव में भारत एक जुनून की तरह छाया रहता है, यही कारण है कि हाल के राजनीतिक और संवैधानिक संकट के लिए भारत (India) को सारे फसाद की जड़ न बताया जाना, थोड़ा हैरान करता है. संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है. यहां तक कि षड्यंत्र रचने वाले, जिनकी पाकिस्तान में कोई कमी नहीं है, वे भी अपने देश में चल रहे गंदे खेल का आरोप भारत पर मढ़ने का कोई कारण नहीं खोज सके. यहां तक कि इमरान खान (Imran Khan), जो हर बात के लिए भारत को दोषी ठहराते थे, दो बार भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की प्रशंसा करते नजर आए.
पाकिस्तान में घटनाक्रम अब भी चल रहा है और इसके भारत के साथ रिश्तों पर पड़ने वाले प्रभाव पर पैनी नजर रखी जानी चाहिए. लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए सबसे पहले भारत को इस बात का ध्यान रखना होगा कि बॉर्डर पर कोई अप्रिय घटना न हो. रावलपिंडी, जीएचक्यू (जनरल हेडक्वार्टर्स-पाकिस्तान सेना) और इस्लामाबाद दोनों सत्ता प्रतिष्ठानों से पाकिस्तान का कमजोर लोकतंत्र शासित होता है, वे ऐसा मानते हैं कि अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति पर सबसे पहले ध्यान देने की जरूरत है.
इमरान ने बाजवा को ओवररूल करने का प्रयास किया था
पाकिस्तान को पूंजी की जरूरत है, चाहे यह ऋण के रूप में ही क्यों न आए, ताकि अस्थिर वित्तीय स्थिति दुरुस्त हो और उत्पादन प्रक्रिया को सही कर कारोबार को बढ़ावा दिया जा सके, मुख्य रूप से निर्यात को. इमरान खान को मुख्य रूप से उनके सहयोगियों और उनकी पार्टी के वफादारों के दलबदल के कारण नहीं, बल्कि सेना से टकराव के चलते सत्ता से बेदखल कर दिया गया है. जाहिर तौर पर खान, खुद को सत्ता से हटाए जाने के लिए सेना पर साजिश रचने और उसे अंजाम देने का आरोप नहीं लगा सकते हैं और इसीलिए उन्होंने अमेरिकी विदेश विभाग पर खुद को हटाने का दोष मढ़ा.
सेना ही इमरान को सत्ता में लेकर आई, पीएमएल-एन (पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज) के खिलाफ केस बनाए गए, विरोधियों की ओर से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के खिलाफ किए जा रहे चुनावी प्रचार को दबाया गया, सेना ने छोटे दलों को इमरान खान के पीछे खड़े होने के लिए राजी किया और प्रधानमंत्री पद के लिए उनका रास्ता साफ किया. इस वास्तविकता से संभवत: खान दूर होते चले गए और उनके भीतर खुद को बड़ा मानने की गलतफहमी पैदा हो गई, उन्होंने कुछ अहम नियुक्तियों में सेना को ओवररूल करने का प्रयास किया, इनमें आईएसआई के महानिदेशक का पद भी शामिल है.
पाकिस्तान में अंदर की खबर रखने वाले कहते हैं कि इमरान ने बाजवा को ओवररूल करने का प्रयास किया, वह लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम की जगह आईएसआई प्रमुख बनाने की सिफारिश कर रहे थे, क्योंकि उनकी पत्नी, बुशरा मनेका, जो कि 'पीरनी' (विद्वान या भविष्यवक्ता) हैं, उन्होंने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान की सबसे शक्तिशाली खुफिया एजेंसी के प्रमुख के तौर पर सितारे हमीद के पक्ष में हैं, न कि अंजुम के.
पाकिस्तानी सेना भारत के साथ शांति चाहती है
सेना और सरकार के बीच संबंध इतने खराब थे कि वे टिक नहीं पाए. खुद को नए कायद-ए-आज़म (आजादी के नए संघर्ष के तौर पर उन्होंने अपना पॉलिटिकल कैंपेन चलाया) के तौर पर देखने की इमरान की इच्छा ने उनकी मुश्किल बढ़ा दी, क्योंकि सेना को यह पसंद नहीं आया. अब इमरान सत्ता में नहीं हैं, ऐसे में जनरल कुछ नीतियों में बदलाव करना चाहते हैं, खासकर विदेश नीति के क्षेत्र में. उन्होंने संकेत दिया है कि पाकिस्तान किसी भी गुट का हिस्सा बनकर विदेश नीति नहीं चलाएगा और देश के किसी भी अन्य राष्ट्र से रिश्ते, किसी अन्य देश की कीमत पर नहीं होंगे.
इस बात को ध्यान में रखते हुए कि पाकिस्तान का इकलौता मित्र (आयरन फ्रेंड, जैसा कि चीनी मीडिया हाल की घटनाओं से चिंतित है) चीन ही है, ऐसे में नया नैरेटिव भारत की जांची-परखी गुटनिरपेक्ष की नीति की नकल लगता है, जिसे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 'बहु-संरेखण' (Multiple Alignment) या 'रणनीतिक स्वायत्तता' (Strategic Autonomy) के रूप में फिर से परिभाषित किया है.
इसका मतलब यह होगा कि अमेरिका के साथ संबंधों को कब्र से बाहर निकालने के विकल्प तलाशे जाएंगे. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की बाजवा की निंदा, अब तक पाकिस्तान की आधिकारिक नीति के विरुद्ध है, लेकिन इससे रास्ता खुलेगा. लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है भारत को लेकर नीति. पाकिस्तान की सेना, देश की कमजोरी को लेकर सतर्क है और संभवत: भारत के साथ कुछ समय के लिए शांति (पीरियड ऑफ पीस) चाहती है.
कुछ परिवर्तन होने वाला है
इस्लामाबाद सुरक्षा वार्ता में बाजवा के भाषण ने कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान की. आइए जानते हैं बाजवा ने क्या कहा: साउथ और सेंट्रल एशिया की क्षमता का अब तक दोहन नहीं किया गया है, स्थिर भारत-पाक संबंध इसके लिए बेहद अहम हैं, पूर्व और पश्चिम एशिया के बीच संपर्क सुनिश्चित करके हम ऐसा कर सकते हैं. हालांकि, दो परमाणु ताकत वाले पड़ोसियों के बीच विवादों के चलते इस दिशा में हमेशा से काम नहीं हो पाया है. जाहिर तौर पर कश्मीर विवाद इस समस्या की जड़ है. यह समझना महत्वपूर्ण है कि कश्मीर विवाद के शांतिपूर्ण तरीके से समाधान के बिना, उपमहाद्वीप के बीच मेलजोल की प्रक्रिया पर तलवार लटकी ही रहेगी. हालांकि, हमें लगता है कि यह अतीत को दफनाने और आगे बढ़ने का समय है, लेकिन शांति प्रक्रिया को फिर से शुरू करने या सार्थक बातचीत के लिए, हमारे पड़ोसी को एक अनुकूल माहौल बनाना होगा, खासकर भारतीय अधिकृत कश्मीर में.
बाजवा ने कहा कि पाकिस्तान ने हाल के दिनों में इंटर-कनेक्टिविटी में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं, जिसमें "अफगान-पाकिस्तान ट्रांजिट ट्रेड एग्रीमेंट को फिर से सक्रिय किया गया है, भारत को माल निर्यात करने के लिए अफगानिस्तान को रास्ता भी प्रदान किया गया है और हम एनर्जी एंड ट्रेड कॉरिडोर का भी हिस्सा हैं, जो कि सेंट्रल, साउथ और वेस्ट एशिया के लिए भू-मार्ग से होकर गुजरता है. पाकिस्तानी सेना भारत के साथ शांति क्यों चाहती है, इसके कई कारण हैं – इनमें लगभग दिवालिया अर्थव्यवस्था में रक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना सबसे अहम कारण है. FATF से बाहर निकलने की जरूरत दूसरी है. तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जनरलों को यह एहसास है कि भारत, कश्मीर को नहीं छोड़ेगा, चाहे कुछ भी हो.
और वे यह भी महसूस करते हैं कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भारत के साथ व्यापार जरूरी है. भारतीय गेहूं, सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ पाकिस्तान में महंगाई को कम कर सकते हैं. और अगर बाजवा की टिप्पणी पर ध्यान दिया जाता है तो पाकिस्तानी सेना, जो भारत को अफगानिस्तान और फिर मध्य एशिया के लिए जाने वाले भू-मार्ग में बाधा है, अब रास्ता रोके खड़ी नहीं रहेगी. बेशक, भारत-पाकिस्तान के साझा इतिहास को देखते हुए बदलाव आसान नहीं हैं. लेकिन फिर भी अगर कोई बदलाव ला सकता है तो वह पाकिस्तानी सेना है और ऐसा लगता है कि वह भारत के प्रति विद्रोही तेवर में नहीं है, इससे संकेत मिलता है कि कुछ परिवर्तन होने वाला है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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