सम्पादकीय

शहीदों की बदौलत आजाद है भारत

Rani Sahu
22 March 2022 7:11 PM GMT
शहीदों की बदौलत आजाद है भारत
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भारत देश का इतिहास गौरवशाली रहा है, जो अपने अंदर कई संस्कृतियां समेटे हुए है

भारत देश का इतिहास गौरवशाली रहा है, जो अपने अंदर कई संस्कृतियां समेटे हुए है। हमारा देश महान शूरवीरों, वीरांगनाओं की कर्मभूमि रहा है जिन्होंने देश की आन-बान-शान बनाए रखने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। हमारे देश में अनगिनत शहीदों की स्मृति के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर एक से अधिक शहीदी दिवस मनाए जाते हैं। हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों एवं क्रांतिकारी शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव सिंह और राजगुरु को अंग्रेजी हुकूमत ने अदालत की तय तारीख से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 की शाम 7.00 बजे तीनों को एक साथ फांसी दे दी थी और उनके पार्थिव शरीरों को रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात व्यास नदी में ले जाकर जला दिया गया था। महान क्रांतिकारियों ने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ क्रांति की ऐसी मिसाल जलाई थी जिससे ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला कर रख दिया था। अमर शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।

उनका पैतृक गांव खटकड़कलां है जो पंजाब (भारत) में है। भगत सिंह के पिताजी सरदार किशन सिंह व माताजी का नाम विद्यावती कौर था जो एक किसान परिवार से संबंध रखते थे। उनके रणवीर सिंह, करतार सिंह, जगत सिंह, कुलवीर सिंह व राजेंद्र सिंह भाई थे। भगत सिंह का परिवार आर्य समाजी सिख परिवार था। उनका परिवार गदर पार्टी का समर्थक था। जिस दिन भगत सिंह का जन्म हुआ था, उसी दिन भगत सिंह के पिताजी और चाचा जेल से रिहा हुए थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने औपनिवेशक विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के ज़ुल्म में जेल में डाल दिया था। इसलिए भगत सिंह की दादी ने बच्चे का नाम भागा (अच्छे भाग्य वाला) रखा था। बाद में उन्हें भगत सिंह कहा जाने लगा। देशभक्ति का पाठ भगत सिंह को विरासत से ही मिला था। शहीद सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 में लायलपुर (अभी पाकिस्तान में है) में हुआ था। भगत सिंह और शहीद सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहते थे। इन दोनों जांबाजों की आपस में गहरी दोस्ती थी। दोनों लाहौर नेशनल कालेज के छात्र थे। शहीद राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था। उनका जन्म पुणे जिला के खेड़ा गांव में हुआ था। अभी इसी गांव का नाम शहीद राजगुरु नगर रखा गया है। उनके पिता जी का नाम श्री हरि नारायण और माता जी का नाम पार्वती बाई था।
राजगुरु जी ने कई धर्म ग्रंथों तथा वेदों का अध्ययन किया था। शिवाजी तथा उनकी छापामार शैली के बहुत ही प्रशंसक थे। वाराणसी में इनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ था और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से जुड़ गए थे। भगत सिंह करीब 12 वर्ष के ही थे, उस समय जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। इस हत्याकांड ने भगत सिंह के मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भर दिया था। भगत सिंह सन् 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे जिसमें गांधीजी विदेशी सामानों का बहिष्कार कर रहे थे। सन् 1921 में भगत सिंह ने लाला लाजपत राय जी के नेशनल कॉलेज लाहौर में प्रवेश ले लिया। पंजाब नेशनल कॉलेज में उनकी देश भक्ति की भावना फलने-फूलने लगी। इसी कालेज में ही उनका यशपाल, भगवतीचरण, सुखदेव, तीर्थराज, झंडा सिंह आदि क्रांतिकारियों से संपर्क हुआ था। सन् 1923 में उनके बड़े भाई की मृत्यु के बाद उन पर शादी करने का दबाव डाला गया तो वे घर से भाग गए। इसी दौरान उन्होंने दिल्ली में अर्जुन के संपादकीय विभाग में अर्जुन सिंह के नाम से कुछ समय काम किया। उनका मानना था कि 'अगर मेरा विवाह गुलाम भारत में हुआ तो मेरी वधु केवल मृत्यु ही होगी।
' सन् 1924 में उन्होंने कानपुर में दैनिक पत्र प्रताप के संचालक गणेश शंकर विद्यार्थी से मुलाकात की। इस भेंट के माध्यम से वे बटुकेश्वर दत्त और चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आए। चंद्रशेखर आजाद के प्रभाव से भगत सिंह पूर्णता क्रांतिकारी बन चुके थे। सन् 1926 में भगत सिंह ने लाहौर में नौजवान भारत सभा का गठन किया जो एक धर्मनिरपेक्ष संस्था थी। सभी साथियों ने कसम खाई थी कि हम देश के हितों को अपने धर्म के हितों से बढ़कर मानेंगे। उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। 9 अगस्त 1925 को काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर अंग्रेजी सरकार के सरकारी खजाने को लूट लिया था। इसी घटना का नाम काकोरी कांड इतिहास में प्रसिद्ध है। इस घटना का अंजाम भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ मिलकर दिया था। इसके बाद भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद के हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े। सन् 1928 में साइमन कमीशन मुंबई पहुंचा और देशभर में साइमन कमीशन का भारी विरोध हुआ। 30 अक्तूबर 1928 में कमीशन लाहौर पहुंचा जहां लाला लाजपत राय जी के नेतृत्व में कमीशन के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुआ था।
इसमें भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी। सहायक अधीक्षक सांडर्स ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया और इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय जी बुरी तरह घायल हो गए थे जिसकी वजह से 17 नवंबर 1928 में लाला जी स्वर्ग सिधार गए थे। लाला जी की मृत्यु का बदला लेने के लिए भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, आजाद और जय गोपाल को कार्य दिया गया। क्रांतिकारियों ने सहायक अधीक्षक सांडर्स को मारकर लाला जी की मौत का बदला लिया था। 8 अप्रैल 1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने भी सरकार की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे। भगत सिंह खून खराबा नहीं चाहते थे। उन्होंने सिर्फ अंग्रेजों को जगाने के लिए ऐसा कदम उठाया था। उन्होंने ऐसे खाली स्थानों पर बम फेंके थे जहां कोई भी मौजूद नहीं था। वे चाहते तो भाग भी सकते थे, लेकिन उन्होंने भागने से मना कर दिया, सिर्फ इंकलाब जिंदाबाद व साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए पर्चे हवा में उछालते रहे। जेल में रहते हुए भी उनका अध्ययन लगातार जारी रहा। उस दौरान लिखे गए लेख आज भी उनके विचारों के दर्पण हंै। उनकी लिखी पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है । भगत सिंह एक क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं थे, बल्कि एक अध्ययनशील विचारक भी थे। इन क्रांतिकारियों की बदौलत ही भारत आज आजाद है।
मनवीर चंद कटोच
लेखक भवारना से हैं
Rani Sahu

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