सम्पादकीय

भारत मांग रहा सबकी खैर, फिर रूस क्यों नहीं रोक रहा ये जंग?

Rani Sahu
15 March 2022 11:02 AM GMT
भारत मांग रहा सबकी खैर, फिर रूस क्यों नहीं रोक रहा ये जंग?
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युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध के रास्ते पर सदियों से चले आ रहे भारत ने दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत यानी UN में फिर ये दोहराया है

नरेन्द्र भल्ला

युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध के रास्ते पर सदियों से चले आ रहे भारत ने दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत यानी UN में फिर ये दोहराया है कि जंग नहीं बल्कि बातचीत के जरिये ही रूस-यूक्रेन के बीच चल रही लड़ाई का समाधान निकल सकता है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका से उलझने और उसे सबक सिखाने के लिए चीन के दम पर जो रूस सबसे बड़ा पहलवान बनकर इस जंगी अखाड़े में जानबूझकर कूदा हो, क्या वो भारत की सलाह इतनी आसानी से मान लेगा?
अन्तराष्ट्रीय कूटनीति व सामरिक मामलों के विशेषज्ञ इस सवाल का जवाब 'ना' में ही देते हैं. उनके मुताबिक रूस जानता है कि भारत सैन्य साजो-सामान खरीदकर उसकी माली हालत को हमेशा से दुरूस्त रखता आया है लेकिन फिलहाल उसने इस बात को हाशिये पर रखते हुए ही यूक्रेन के खिलाफ जंग छेड़ी है क्योंकि वह जानता है कि इसमें अगर भारत खुलकर उसका साथ नहीं देगा तो अमेरिका के पाले में जाने की भी हिम्मत नहीं जुटा पायेगा. दरअसल, रूस ने भारत को ऐसे दोराहे पर ला खड़ा कर दिया है, जहां वह चाहते हुए भी किसी एक रास्ते पर आगे बढ़ने की कोशिश इसलिये नहीं करना चाहता क्योंकि इससे दुनिया की दोनों ताकतों को आरपार की ऐसी लड़ाई छेड़ने का मौका मिल जाएगा, जो दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ धकेल देगी.
हो सकता है कि कुछ लोग इससे इत्तिफाक न रखें लेकिन जिन लोगों ने पीएम नरेंद्र मोदी के सक्रिय राजनीति में आने से पहले एक संघ प्रचारक के रुप में उनके जीवनकाल को नजदीक से देखा है, वे सब ये बखूबी जानते होंगे कि मोदी एक उत्कृष्ट अध्येता भी रहे हैं. रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद जैसे तमाम महापुरुषों से लेकर संतों-फकीरों की बानी पढ़ने वाले मोदी किस कदर संत कबीर से प्रभावित हैं, ये उनके दिए गए भाषणों की बारीकी को पकड़कर कोई भी समझ सकता है. इसलिये कह सकते हैं कि इंसानियत को ख़त्म करने के लिए शुरु हुई इस विनाश लीला में पीएम मोदी ने फिलहाल तो कबीर के रास्ते पर चलना ही ज्यादा उचित व जरूरी समझा है. शायद इसलिए भी कि एक तरफ पुराना वफादार दोस्त रूस है, तो दूसरी तरफ रणनीतिक व कूटनीतिक लिहाज से हमारे लिए अहमियत रखने वाला नया मित्र अमेरिका भी है.
चूंकि नाराज दोनों को ही नहीं करना है और इस जंग को रुकवाने के लिए अपनी तरफ से हर पहल भी करनी है इसलिये मोदी सरकार 24 फरवरी से छिड़े युद्ध के बाद से ही कबीर के इस दोहे पर अमल करती हुई दिखाई दे रही है.
"कबीरा खड़ा बाज़ार में,मांगे सबकी ख़ैर,
ना काहू से दोस्ती,ना काहू से बैर."
हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि अन्तराष्ट्रीय कूटनीति इस रुख से कभी आगे नहीं बढ़ती लेकिन मौजूदा हालात में भारत ने जिस न्यूट्रल यानी तटस्थ रहने की भूमिका को चुना है, वही डिप्लोमेसी का सबसे प्रभावी औजार है. लेकिन इससे आगे बढ़कर भारत लगातार दोनों देशों से युद्ध रोकने की जो अपील कर रहा है, उसके गहरे मायने हैं क्योंकि भारत सिर्फ अपने देश के नागरिकों को नहीं बल्कि संसार की मानवता को बचाने का पक्षधर है. इसलिये कि अगर रूस के खिलाफ नाटो सेनाएं जंगी मैदान में कूद गईं तब दो देशों के बीच हो रही ये लड़ाई तीसरे विश्व युद्ध में तब्दील हो जायेगी जिसे रोकने की ताकत किसी में नहीं होगी.
लिहाज़ा भारत दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत यानी संयुक्त राष्ट्र में मानवता को ख़त्म करने वाले इस विनाश को रोकने की अपील दोहरा रहा है. संयुक्त राष्ट्र में भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि आर रवींद्र ने सोमवार को कहा कि भारत, रूस और यूक्रेन के बीच दुश्मनी को तत्काल समाप्त करने का आह्वान करता रहा है. UNSC ब्रीफिंग के दौरान रवींद्र ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री (Narendra Modi) ने बार-बार तुरंत सीजफायर का आह्वान किया है. उन्होंने इस बात पर हमेशा ही जोर दिया है कि बातचीत और कूटनीति के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है. रवींद्र ने कहा कि मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है और मानवीय स्थिति गंभीर हो गई है.
लेकिन सच तो ये है कि रूस की हालत इस वक़्त उस जख्मी शेर वाली हो चुकी है जिसे कोई समझा नहीं सकता. इजरायल के बाद फ्रांस की तरफ से की गई सुलह की कोशिश पर भी रूसी राष्ट्रपति पुतिन का दिया जवाब ये बताता है कि वे इस युद्ध को रोकने में नहीं बल्कि इसे बहुत आगे ले जाने के मूड में हैं.
भारत की चिंता दो पहलुओं से वाज़िब समझनी चाहिए. पहली तो ये कि भारत कभी भी दुनिया के किसी भी हिस्से में होने वाली लड़ाई का कभी समर्थन नहीं करता. दूसरा, ये कि अगर ये युद्ध लंबा खींच गया तो इसका सीधा असर हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भारत में पेट्रोल-डीजल के दामों को कहां ले जाएंगी इसकी शायद हम कल्पना ही नहीं कर सकते. लेकिन भारत करे भी तो क्या करे जिसे जंग रोकनी है उसने तो मानो अपने कानों में रुई डाल रखी है.
Rani Sahu

Rani Sahu

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