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भारत की समुद्री सुरक्षा मालदीव से शुरू होकर श्रीलंका तक पहुंचती है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत की समुद्री सुरक्षा मालदीव से शुरू होकर श्रीलंका तक पहुंचती है। मालदीव से भारत के संबंध मुगलकाल से हैं जबकि श्रीलंका तो 1919 तक भारत का हिस्सा रहा। श्रीलंका से भारत के संबंध कभी नीम तो कभी शहद जैसे रहे हैं। हिन्द प्रशांत क्षेत्र और हिन्द महासागर में चीन जिस तरह से अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशें कर रहा है उसे देखते हुए यह जरूरी है कि भारत समुद्री सुरक्षा को पुख्ता बनाए। चीन हिन्द महासागर में अपनी समुद्री सिल्क परियोजना के लिए श्रीलंका और मालदीव को महत्वपूर्ण मानता है। श्रीलंका चीन की मैत्री में अपने हाथ जला चुका है कि किस तरह ड्रैगन ने उसे अपने कर्ज के जाल में फंसा कर हम्बनटोटा बंदरगाह को हड़प लिया था।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल लगातार भारत और पड़ोसी देशों में संबंधों को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। अजित डोभाल ने नेपाल का दौरा भी किया था और अब वह श्रीलंका के दौरे पर पहुंचे। भारत, श्रीलंका और मालदीव के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों ने समुद्री सुरक्षा सहयोग की चौथी त्रिपक्षीय बैठक में भाग लिया। इससे पहले यह बैठक 2014 में नई दिल्ली में हुई थी। तीनों देशों के अधिकारियों ने हिन्द महासागर क्षेत्र में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चुनौतियों से निपटने में सहयोग को और मजबूत करने पर सहमति व्यक्त की तथा सांझा सुरक्षा खतरों पर विचारों का आदान-प्रदान किया और खुफिया जानकारियों को सांझा करने के लिए व्यापक सहयोग बढ़ाने तथा आतंकवाद, कट्टरता, मादक पदार्थ, हथियार और मानव तस्करी, धन शोधन, साइबर सुरक्षा और समद्री पर्यावरण जैसे मुद्दों को शामिल करने पर सहमत हुए। श्रीलंका, भारत और मालदीव ने 2011 में समुद्री सुरक्षा सहयोग पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की बैठक की शुरूआत की थी। अजित डोभाल ने श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे, श्रीलंका के रक्षा सचिव मेनजर जनरल (सेवानिवृत्त) कमल गुणारत्ने और मालदीव की रक्षा मंत्री मारिया दीदी से मुलाकात कर बैठक में लिए गए फैसलों पर कार्यान्वयन सुनिश्चित करने पर बल दिया।
भारत और श्रीलंका का करीब आना एक अच्छी बात है। अजित डोभाल ने अपने दौरे के आखिरी पलों में तमिल नेता और आर. संपनथान से मुलाकात भी की। संपनथान की तमिल नेशनल अलायंस के दस सांसद हैं और उन्हें श्रीलंका का अहम तमिल नेता माना जाता है। चीन के साथ जारी सीमा विवाद और लद्दाख में तनाव के चलते भारत देश के पूर्व, उत्तर और उत्तर-पूर्व इलाके में अपनी सेना की तैनाती बढ़ा रहा है। एक तरफ जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर चीन पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है तो दूसरी तरफ वह नेपाल के साथ अपने संबंध मजबूत कर रहा है। नेपाल में चीन कई तरह की सड़क परियोजनाओं को भी अंजाम दे रहा है और उसका दावा है कि नेपाल को लेकर चल रही परियोजनाओं के मामले में वह भारत के मुकाबले में नेपाल के अधिक करीब है। चीन ने श्रीलंका में भी काफी निवेश कर रखा है। भारत को दक्षिण में अगर अपनी स्थिति मजबूत करनी है तो श्रीलंका ही एक मात्र देश है। वर्ष 2015 में महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे। उन्होंने चुनावों में अपनी हार के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था।
2018 में श्रीलंकाई राष्ट्रपति मैत्री पाल सिरिसेन ने भी भारत पर इस तरह के आरोप लगाए। भारत और श्रीलंका के बीच कड़वाहट कम करने और रिश्तों को फिर से सुधारने के लिए कूटनीतिज्ञों को तीन साल का वक्त लगा। श्रीलंका में रहने वाले तमिलों के हितों की रक्षा का मुद्दा भी भारत के लिए महत्वपूर्ण रहा है। श्रीलंका लिट्टे के कारण कई वर्ष तक गृह युद्ध झेलता रहा। इसी वर्ष 30 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिन्दा राजपक्षे में वर्चुअल बातचीत हुई थी। नरेन्द्र मोदी ने दोनों देशों के बीच बौद्ध धर्म से जुड़े संबंधों को बढ़ावा देने के लिए 1.5 करोड़ डालर की मदद की भी घोषणा की थी। कोलम्बो बंदरगाह पर भारत-जापान इस्टर्न कंटेनर टर्मिनल परियोजना को लागू करने पर भी सहमति बनी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका में रहने वाले अल्पसंख्यक तमिल समुदाय के साथ शक्तियों का विकेन्द्रीकरण करने वाले श्रीलंकाई संविधान के 13वें संशोधन को पूर्ण रूप से लागू करने की अपील भी की थी।
जहां तक मालदीव का संबंध है, ऐतिहासिक दृष्टि से भारत- मालदीव के संबंध प्राचीन काल से ही सौहार्दपूर्ण रहे हैं। दोनों देशों के बीच भाषायी, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं वाणिज्यिक जैसे सांझा संबंध रहे हैं। मालदीव का क्षेत्रफल 298 वर्ग किलोमीटर है जो हिन्द महासागर में श्रीलंका के 600 किलोमीटर, दक्षिण पश्चिम में 1,200 प्रवाल द्वीपों में विस्तृत है, जिनमें से केवल 202 द्वीपों पर ही निवास है। मालदीव का भारत के लिए बहुत अधिक रणनीतिक महत्व है, अतः भारत के लिए मालदीव से बेहतर संबंध बनाए रखना समय की जरूरत है। सत्ता परिवर्तन के चलते भारत के लिए कुछ समस्याएं जरूर आईं क्योंकि चीन मालदीव में वर्चस्व बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन नई सत्ता के साथ भारत की समझदारी बढ़ी है।
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