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- टीके की चुनौतियों से...
वरुण गांधी : विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जब 11 मार्च, 2020 को कोविड-19 को महामारी घोषित किया था तो इसकी बहुत कम उम्मीद थी कि किसी विकासशील देश के नागरिकों को एक साल में वैक्सीन लगाई जा सकेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति के मुख्य स्वास्थ्य सलाहकार डॉ. फाउसी को उम्मीद थी कि सिर्फ 50-60 फीसद कारगर वैक्सीन भी एक साल या उसके बाद तैयार हो सकेगी, पर इस मामले में मानव सभ्यता भाग्यशाली साबित हुई। नवंबर 2020 के अंत तक ही फाइजर की वैक्सीन के तीसरे चरण के नतीजे आ गए, जो 95 फीसद असरदार थी। आठ दिसंबर, 2020 को एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने भी अपनी वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के अंतरिम नतीजे जारी किए, जो तकरीबन 76 फीसद असरदार बताई गई। अब सवाल इनके उत्पादन और आपूर्ति का था। ज्यादातर देशों के लिए वैक्सीन उत्पादन एक बड़े जोखिम वाला दांव था, क्योंकि देशों को कामयाबी की संभावना का आकलन कर तय करना था कि किन संस्थानों को फंड दिया जाए? ऐसी वैक्सीन पहले बाजार में नहीं आई थीं, खासतौर से नई तकनीक एमआरएनए पर आधारित वैक्सीन। लिहाजा फाइजर और एस्ट्राजेनेका जैसी कंपनियों के लिए उत्पादन बढ़ाना चुनौती भरा था। यहां तक कि परंपरागत तरीके से निष्क्रिय वायरस का इस्तेमाल कर वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाना भी आसान नहीं था, जैसे कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन। भारत बायोटेक को वैक्सीन का एक बैच जारी करने में 120 दिन (निर्माण, ट्रायल और रिलीज संबंधी गतिविधियों में) लग जाते हैं।