सम्पादकीय

India Coronavirus Second Wave: कोरोना वायरस के म्यूटेशन से निपटने की पर्याप्त क्षमता

Gulabi
26 April 2021 10:18 AM GMT
India Coronavirus Second Wave: कोरोना वायरस के म्यूटेशन से निपटने की पर्याप्त क्षमता
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India Coronavirus Second Wave क्‍या म्यूटेशन से बदले हुए कोरोना विषाणु के रूप बनना चिंता का विषय हैं

डॉ. यूसुफ अख्तर। India Coronavirus Second Wave क्‍या म्यूटेशन से बदले हुए कोरोना विषाणु के रूप बनना चिंता का विषय हैं और वर्तमान में उपलब्ध टीके उनके खिलाफ प्रभावी होंगे? म्यूटेशन एक प्राकृतिक क्रिया है। जब कोई विषाणु प्रजनन करके अपनी संख्या बढ़ा रहा होता है तो इसका जीनोम अनुवांशिक सामग्री (आरएनए या डीएनए) भी उसकी कार्बन प्रतियां बनाता है, परंतु इस प्रक्रिया के दौरान इसमें त्रुटियां होती हैं और इसी तरह की त्रुटियां जीवों में क्रम-विकास का कारण हैं। ये बहुत कुछ वर्तनी की त्रुटियों की तरह है जो हम लिखते समय कर जाते हैं। हालांकि उन गलतियों को बाद में हम सुधार सकते हैं, पर विषाणु विशेष रूप से जिनकी अनुवांशिक सामग्री आरएनए की बनी होती है, वे इसे नहीं सुधार सकते।


अधिकांश ऐसे म्यूटेशन विषाणु के लिए हानिकारक होते हैं, इससे ऐसे दोषपूर्ण विषाणु बनते हैं जो स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं और फिर कभी नहीं देखे जाते हैं। दूसरे जो बच जाते हैं, वे प्रजनन जारी रखते हैं और आगे संक्रमण फैलाते हैं, ऐसे म्यूटेशन विषाणु को कुछ चुनिंदा फायदे देते हैं, जैसे बेहतर संक्रामकता, बढ़ा हुआ संचरण या प्रतिरक्षा को चकमा दे पाने की क्षमता। प्रकृति अक्सर इन्हीं का चुनाव करती है और ये ही विषाणुओं की नस्ल को आगे बढ़ाते हैं।
दिसंबर 2019 में चीन के वुहान से आया विषाणु लगातार होने वाले म्यूटेशन की वजह से अब काफी बदल चुका है। विषाणु का बदला हुआ रूप पहली बार जनवरी 2020 के अंत में उभरा था जो ज्यादा संक्रमण करने वाला, तेजी से प्रजनन करने और अधिक कुशलता से संचारित होता था। नतीजतन अब इसके बदले हुए रूप दुनिया भर में प्रमुख चिंता का कारण बन गए हैं। विषाणु के यही रूप अब अधिक संख्या में दुनिया भर में घूम रहे हैं। ब्रिटेन के बदले हुए विषाणु में 23 म्यूटेशन हैं और पहली बार ये इंग्लैंड के दक्षिणी हिस्से में पाए गए थे, लेकिन अब यह लगभग 114 देशों में फैल गया है। इसी प्रकार ब्राजील के बदले हुए विषाणु में 16 म्यूटेशन हुए हैं और इनका फैलाव 36 देशों तक हो चुका है। इन सभी बदले हुए विषाणुओं में ऊपरी कवच पर पाई जाने वाली स्पाइक प्रोटीन के जीन में कई विभिन्न प्रकार के म्यूटेशन होते हैं जिनसे प्रोटीन बनने पर इनके एमिनो अम्ल बदल जाते हैं
स्पाइक प्रोटीन विषाणु के मानव कोशिका में प्रवेश करने में मदद करती है, जो विषाणु के प्रजनन करने के लिए आवश्यक पहला कदम है। मानव कोशिका के संपर्क में आने वाले स्पाइक प्रोटीन के ये हिस्से, इस प्रकार इसकी सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं और टीके द्वारा उत्पन्न सुरक्षा करने वाली एंटीबॉडी के लिए सर्वोत्तम संभव लक्ष्य हैं। स्वाभाविक रूप से म्यूटेशन से विषाणु विकास का लक्ष्य स्पाइक प्रोटीन का यही हिस्सा होगा, जो इसे मानव कोशिका से बेहतर संपर्क बनाने में मदद करे और टीकाकरण के बाद एंटीबॉडी द्वारा इस संपर्क को बेअसर करने की प्रक्रिया को फेल कर दे।
मार्च में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका टीके से एक खास विषाणु से संक्रमित लोगों ने विषाणु के पुराने रूप की तुलना में समान रूप से बीमारी के खिलाफ सुरक्षा प्रदर्शित की थी। हालांकि जिन वालंटियर्स पर परीक्षण किया गया था उनकी एंटीबॉडी इन विषाणुओं से मानव कोशिकाओं से संपर्क करने में थोड़ी कम सक्षम थी। भारत बायोटेक का कोवैक्सिन टीका भी प्रयोगशाला परीक्षणों में ब्रिटेन वाले विषाणु के नए रूप को अच्छी तरह से बेअसर करने में कामयाब लगता है। ऐसे में हमें शुक्रगुजार होना चाहिए कि दुनिया के पास टीके हैं और टीकाकरण का उपयोग कर महामारी को समाप्त करने का एक ऐतिहासिक अवसर है। इसमें भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। निश्चित तौर पर हमें इस अवसर का पूरा लाभ लेना चाहिए।
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