सम्पादकीय

India - China Border Tension: भरोसे के काबिल नहीं चीन; गलवन में मात खाने के बाद चिनफिंग जल्द कर सकता है नई सैनिक खुराफात

Gulabi
15 Jun 2021 6:16 AM GMT
India - China Border Tension: भरोसे के काबिल नहीं चीन; गलवन में मात खाने के बाद चिनफिंग जल्द कर सकता है नई सैनिक खुराफात
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India - China Border Tension

विजय क्रांति : लद्दाख के गलवन घाटी क्षेत्र में भारतीय और चीनी सेना के बीच हुई मुठभेड़ को एक साल हो गए। इस घटना ने भारत और चीन के रिश्तों में जितनी कड़वाहट घोली, उसकी बराबरी केवल 1962 में चीन के सैनिक हमले से ही की जा सकती है। रक्षा मामलों के इतिहासकार तो इसे आधुनिक सैनिक इतिहास की सबसे बर्बर घटनाओं में गिन रहे हैं। 15-16 जून, 2020 की रात भारतीय नियंत्रण वाले लद्दाख और चीनी कब्जे वाले अक्साई चिन के बीच पड़ने वाली गलवन घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर अचानक हमला किया था, जिसमें 20 भारतीय जवान बलिदान हुए थे। जब यह हमला हुआ उस समय भारतीय सैनिक पूरी तरह निहत्थे थे और वे भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच बनी सहमति के तहत वहां से चीनी सैनिकों की वापसी का मुआयना करने आए थे। चीनी सैनिकों का जत्था पहले तो वापसी के लिए अपनी दिशा में चल दिया, लेकिन फिर अचानक ही पलटकर उसने कील लगी लोहे की छड़ों के साथ भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया। जब तक निहत्थे और हतप्रभ भारतीय सैनिक संभलते और उनके बचाव के लिए नई कुमुक आती, तब तक भारत के 20 सैनिक मारे जा चुके थे। जवाबी हमले में हमारे जवानों ने कम से कम 43 चीनी सैनिकों को मार गिराया। यह बात और है कि चीन ने अपने तीन सैनिकों के मारे जाने की बात स्वीकार की।

चीन सरकार ने छिपाई पहचान
भारत ने गलवन में शहीद प्रत्येक भारतीय सैनिक की पहचान सार्वजनिक की, लेकिन चीन ने न तो अपनी जनता को और न ही विदेशी मीडिया को किसी तरह की जानकारी हासिल होने दी। जब एक चीनी पत्रकार ने चीनी सैनिकों के भी मारे जाने की खबर जारी की तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया। इसी तरह सोशल नेटवर्क साइट पर गलवन में मारे गए अपने परिवार के सैनिक सदस्य या रिश्तेदार की खबर और फोटो शेयर करने वाले चीनी नागरिकों के मैसेज न केवल हटा दिए गए, बल्कि उन्हेंं गिरफ्तार भी कर लिया गया। हाल में चीन सरकार ने एक नया कानून बनाया है, जिसके तहत इस तरह की किसी भी खबर को चीनी सेना का अपमान करना माना जाएगा और पत्रकार एवं उसके अखबार को देशद्रोह की सजा दी जाएगी।
चीन की एकपक्षीय कार्रवाई ने लद्दाख की सुरक्षा के लिए गभीर खतरा पैदा कर दिया था
गलवन से लगभग डेढ़ महीने पहले ही चीनी सेना ने लद्दाख और सिक्किम के सीमाक्षेत्रों में अचानक कार्रवाई करके लद्दाख के पैंगोंग झील, स्पांगुर और हॉट-स्प्रिंग के साझा गश्त वाले ऐसे कई स्थानों पर अपनी चौकियां बना ली थीं। ये ऐसे इलाके थे, जिनके बारे में यह सहमति थी कि जब तक कोई अंतिम संधि नहीं हो जाती, तब तक दोनों पक्षों के सैनिक बिना हथियार लिए बारी-बारी से वहां गश्त कर सकेंगे। सीमा सुरक्षा के हिसाब से इन नाजुक इलाकों में चीन की इस एकपक्षीय कार्रवाई ने लद्दाख की सुरक्षा के लिए बहुत गंभीर खतरा पैदा कर दिया था, लेकिन भारत के बहादुर सैनिकों ने ऐसा कदम उठाया, जिसने पैंगोंग और आसपास के इलाकों में बाजी पलट दी और चीनी सेना की पूरी किलेबंदी को बेकार कर दिया। भारतीय सेना की 'विकास' रेजिमेंट के नाम से मशहूर स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवानों ने अभूतपूर्व जीवट दिखाते हुए 29 सितंबर से तीन अगस्त के बीच अपने एक खामोश अभियान में चुशुल इलाके में 16 हजार फुट ऊंची कैलास चोटियों पर मोर्चे लगा दिए, जहां से पैंगोंग झील और स्पांगुर के इलाकों में तैनात चीन की सभी चौकियां भारतीय सेना की सीधी मार में आ गईं। इस फोर्स के अधिकांश सैनिक भारत में रहने वाले तिब्बती शरणार्थी समाज के जवान हैं, जो ऊंचे और बर्फीले इलाकों में युद्ध के लिए माहिर माने जाते हैं। 'विकास' के इसी अभियान का परिणाम है कि लद्दाख में अपना असली आक्रामक रुख छोड़कर चीनी सेना वहां तनाव घटाने के लिए नई संधि का रास्ता सुझाने लगी है।

लद्दाख के मोर्चे पर चीनी सेना की नाकामी से सबसे ज्यादा मायूसी चिनफिंग को हुई

लद्दाख के मोर्चे पर चीनी सेना की नाकामी से सबसे ज्यादा मायूसी शी चिनफिंग को हुई, जो चीन का राष्ट्रपति होने के अलावा कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और चीनी सेना के प्रधान सेनापति भी हैं। उन्हीं की शह पर चीनी सेना ने पिछले साल पांच मई से लद्दाख में आक्रामक अभियान शुरू किया था। इस अभियान का असली लक्ष्य था भारत की सीमा को लेह से जोड़ने वाली दारबुक, स्योक और गलवन के रास्ते दौलतबेग ओल्डी तक जाने वाली नई रक्षा सड़क पर कब्जा जमाकर भारत की आखिरी हवाई पट्टी दौलतबेग ओल्डी और सियाचिन पर कब्जा करना। अगर चीन इसमें कामयाब हो जाता तो भारत पूरे सियाचिन और उत्तरी लद्दाख से हाथ धो बैठता। चीन को शिनजियांग और पाकिस्तान से जोड़ने वाले काराकोरम हाईवे पर भी भारतीय सेना का दबदबा खत्म हो जाता। चिनफिंग को यकीन था कि लद्दाख में इतनी बड़ी जीत हासिल करके वह चीन के अभूतपूर्व हीरो बन जाएंगे और अक्तूबर 2021 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सौवीं कांग्रेस उन्हेंं जीवन भर चीन का राष्ट्रपति बनाए रखने के उनके प्रस्ताव पर मुहर लगा देगी, लेकिन भारतीय सैनिकों ने उनके नापाक इरादों को नष्ट कर डाला।
लद्दाख पर कब्जे में असफल रहने के कारण चिनफिंग और चीनी सेना की हुई किरकिरी

लद्दाख पर कब्जे में असफल रहने के कारण चिनफिंग और चीनी सेना की एक और किरकिरी यह हुई कि उन्हेंं 3,448 किमी लंबी हिमालयवर्ती सीमा पर अपनी सेना को र्सिदयों में भी तैनात रखना पड़ा। इसने चीनी सैनिकों की हेकड़ी निकाल दी। सैटेलाइट फोटो और चीनी इलेक्ट्रॉनिक संदेशों से यह स्पष्ट है कि लद्दाख की सर्दी में बीमार और मरने वाले चीनी सैनिकों की ढुलाई में चीनी हेलिकॉप्टर बुरी तरह हलकान हो चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार चीन के लगभग 90 प्रतिशत सैनिकों को एक-दो महीने के अंतराल पर बदलना पड़ता है। उनके मुकाबले भारत के सैनिक सियाचिन क्षेत्र में औसतन एक साल के लिए तैनात रहते हैं। ऐसे अनुभव वाले भारतीय सैनिकों की संख्या हजारों में है। शायद यही कारण है कि लद्दाख के मोर्चों पर मुंह की खाने के बाद अब शी चिनफिंग ने लद्दाख क्षेत्र में थल सैनिकों के बजाय हवाई सेनाओं की तैनाती का नया अभियान शुरू कर दिया है। इसे देखते हुए कई रक्षा विशेषज्ञों को आशंका है कि लद्दाख विजय का अपना अधूरा सपना पूरा करने को हताश चिनफिंग अक्टूबर से पहले कोई नई सैनिक खुराफात कर सकते हैं।
( लेखक तिब्बत-चीन मामलों के विशेषज्ञ एवं सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट के चेयरमैन हैं )
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