सम्पादकीय

India China Border Dispute: ऐतिहासिक रूप से LAC पर चीन की गतिविधियों से भारत को ही फायदा होता रहा है

Rani Sahu
31 May 2022 1:29 PM GMT
India China Border Dispute: ऐतिहासिक रूप से LAC पर चीन की गतिविधियों से भारत को ही फायदा होता रहा है
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अप्रैल 2020 के बाद पूर्वी लद्दाख में कई स्थानों पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर बिना उकसावे के चीन (China) की कार्रवाइयों की वजह से भारत के साथ उसके संबंध अपने सबसे निचले स्तर पर हैं

अशोक कुमार |

अप्रैल 2020 के बाद पूर्वी लद्दाख में कई स्थानों पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर बिना उकसावे के चीन (China) की कार्रवाइयों की वजह से भारत के साथ उसके संबंध अपने सबसे निचले स्तर पर हैं. ग्राउंड फोर्स के बीच कई समझौतों और मौजूदा व्यवस्था के बावजूद, 15 कोर कमांडर स्तर की वार्ता और राजनयिक व राजनीतिक स्तर पर बातचीत के बाद भी, न तो इस तरह की घुसपैठ को टाला जा सका और न ही उन्हें पूरी तरह से सुलझाया जा सका. भारत ने एलएसी के साथ-साथ अंदरूनी इलाकों में चीनी कार्रवाइयों का प्रभावी ढंग से जवाब दिया है. नतीजतन, दोनों पक्षों से इन इलाकों में 50,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है. और इस तनातनी के कारण, उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों (HAA) में तैनात हमारे रक्षा बलों के भरण-पोषण पर अत्यधिक खर्च होता है. तुलनात्मक रूप से चीन भी अपनी आवश्यकताओं के लिए बड़ा खर्च कर रहा है.
ऐतिहासिक रूप से, चीन ही भारत को हमेशा उकसाता है और उसके आंतरिक मामलों में दखल देता रहा है, लेकिन अंत में भारत को हमेशा, 1962 के युद्ध को छोड़कर, फायदा हुआ है. 1962 में चीन की उकसाने वाली कार्रवाइयों से देश को राजनीतिक और सैन्य रूप से भारी नुकसान हुआ था. चीन ने 1949 में केएमटी (KMT) को हराकर आजादी हासिल की थी, इसने मौजूदा एलएसी के साथ-साथ न केवल पूर्वी लद्दाख में बल्कि अन्य इलाकों में भी बड़े क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया. 1962 के युद्ध की उसकी गलत आक्रामकता और एकतरफा वापसी के परिणामस्वरूप, चीन 1962 के कब्जे वाले स्थानों से पीछे हट गया. हालांकि, कई क्षेत्रों पर इसका कब्जा बरकरार है, जिनमें से कुछ पर 1949 से 1962 के बीच और युद्ध से पहले का कब्जा था.
हम उस समय के राजनीतिक नेताओं और सैन्य अधिकारियों की आलोचना में चाहे जो भी कहें, जिसमें 1962 में भारी नुकसान झेलने के बावजूद भारतीय वायुसेना का उपयोग न करना भी शामिल है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि देश ने अच्छी तरह से सबक सीख लिए हैं. तथ्यों से स्पष्ट है कि हम इन सबक को प्रभावी ढंग से लागू भी कर रहे हैं. एलएसी पर चीन के साथ जारी संघर्ष में भी भारत ने असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है और वह एक नया अध्याय लिख रहा है.
नाथुला और चोला में हुई झड़पों के निम्न परिणाम रहे
इससे पहले कि भारत 1962 के संघर्ष से उबर पाता, पाकिस्तान ने 1965 में भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के अलावा, 1963 में पीओके (PoK) का हिस्सा, शक्सगाम घाटी चीन को सौंप दिया. पाकिस्तान अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सका और अपने कुछ क्षेत्रों को और खो दिया, इनमें पीओके में हाजी पीर दर्रा सहित मैदानी इलाके शामिल थे. यह बात अलग है कि 1966 के ताशकंद समझौते के दौरान भारत को उदार बनना पड़ा, इस समझौते के तहत रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हाजी पीर दर्रे सहित सभी कब्जे वाले क्षेत्रों को पाकिस्तान को वापस कर दिया गया. ताशकंद समझौते के एक साल से भी कम समय में, चीन ने 1967 में सिक्किम में नाथुला और चोला दर्रे में भारत को उकसाया. लेकिन उसे पता नहीं था कि वह अब एक अलग भारत का सामना कर रहा है. नाथुला और चोला में हुई झड़पों के निम्न परिणाम रहे.
मारे गए सैनिकों और घायलों की संख्या के लिहाज से चीन को अधिक नुकसान हुआ. चीन झड़पों को खत्म करने के लिए सहमत हो गया, इस प्रकार स्थानीय स्तर पर भी भारत के सैन्य वर्चस्व को स्वीकार किया. इससे भारत ने उत्तरी सिक्किम के साथ-साथ पूर्वी सिक्किम दोनों में अपनी रक्षा को मजबूत करने के लिए नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया, इस प्रकार इस इलाके पर हावी होने के अलावा उसने अपनी पकड़ को और मजबूत किया. भारत ने चीन को चुंबी घाटी में अपना बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए भी मजबूर किया. हालांकि, यह खतरे में इजाफा कर सकता है, लेकिन साथ ही, यह भारतीय बलों को भी कई लक्ष्य प्रदान करता है. इसके परिणामस्वरूप सिक्किम के लोगों के साथ बेहतर संबंध बने, जो 1975 में भारत का एक राज्य बना. इसका चाहे जैसे भी विश्लेषण किया जाए, लेकिन वह चीन की पहली रणनीतिक हार थी.
चीन ने न तो 1967 की हार से सबक सीखा और न ही 1971 में पाकिस्तान पर भारत की अभूतपूर्व जीत से. इसने 1986-87 में अरुणाचल प्रदेश में घुसने का एक और प्रयास किया, सुमदुरोंग चू के दक्षिणी हिस्से में उसका सैन्य शिविर देखा गया था. भारत ने अपने सैनिकों को बड़े पैमाने पर लामबंद किया, जिसमें अधिकांश क्षेत्रों पर कब्जा शामिल था, ये संघर्ष के संभावित क्षेत्र हो सकते थे. इसके निम्न परिणाम हुए:
चीनी घुसपैठ एक ही स्थान तक सीमित थी, जो भी तीन तरफ से भारतीय चौकियों से घिरी हुई थी. यहां आज तक एक नाजुक स्थिति बनी हुई है. भारत ने एलएसी पर प्रभुत्व बढ़ाने वाले अपने सभी अग्रिम इलाकों पर कब्जा कर लिया, इसके अलावा चीनी पक्ष की ओर से किसी भी तरह की घुसपैठ को रोक दिया. इसके परिणामस्वरूप तवांग के लोगों के साथ बेहतर संबंध बना, क्योंकि भारतीय सेना ने तवांग के उत्तर में सुरक्षा का जिम्मा ले लिया और किसी भी कीमत पर तवांग की रक्षा करने का निर्णय लिया. हालांकि इस मुद्दे को मई 1987 में राजनीतिक स्तर पर सुलझा लिया गया, लेकिन इससे चीन को प्रभावी तरीके से जवाब देने में भारतीय सेना का संकल्प दिखाई दिया. यह चीन की दूसरी रणनीतिक हार थी.
2017 में भी चीन ने मुंह की खाई
चीन न केवल भारतीय सीमाओं में, बल्कि भूटान की भी सीमा में हस्तक्षेप करता रहा है. भूटान की रक्षा के लिए भारत का काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है, क्योंकि यह देश की रक्षा के लिए अहम है. चीन ने 2017 में डोकलाम (भूटान) में भारतीय शक्ति का परीक्षण करने का प्रयास किया. चीन द्वारा सड़क निर्माण, भारतीय सुरक्षा के लिए खतरा था, भारत ने भी अपने सैनिकों को जुटाया और अंत में, चीन को न केवल सड़क निर्माण को रोकने के लिए, बल्कि अपने वापस जाने के लिए भी मजबूर होना पड़ा. भारत भी अपनी तरफ से ऐसा करने के लिए बाध्य है. इसके निम्न परिणाम हुए.
भारतीय सुरक्षा बलों पर पड़ोसियों का विश्वास बढ़ा और विशेष रूप से भूटान का. चीन ने महसूस किया कि भारत न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा बल्कि अपने पड़ोसियों के लिए भी अपनी सारी शक्ति का उपयोग करेगा. इसने भारत को एक परिपक्व राष्ट्र के रूप में भी लोकप्रिय किया, जहां भारत की सेना ने चीनी सेना के साथ आमने-सामने होने के बावजूद, दुनिया की मदद के लिए रोने-धोने के बजाए, कूटनीति और राजनीतिक तरीके से इस मुद्दे को हल किया. इस तरह के दृष्टिकोण से रूस और यूक्रेन के संघर्ष को रोका जा सकता था. विश्लेषण के किसी भी दृष्टिकोण से यह चीन की तीसरी रणनीतिक हार थी.
जहां तक भारत के साथ चीनी सीमाओं का संबंध है, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में विवाद सीमित हैं. जब चीन ने 1967 में नाथुला और चोला में झड़पों का प्रयास किया, तो सिक्किम भारतीय इलाका नहीं था. चीन, एक बड़े प्लान के हिस्से के रूप में, 1967 को उसी तरह देखता था जैसा कि पांच साल पहले उसने एक युद्ध किया था. सिक्किम में अपने प्रयास में विफल होने के बाद, चीन ने नाथुला झड़प के दो दशकों के बाद अरुणाचल प्रदेश में एक और दुस्साहस किया.
2020 में भी भारत ने दिया मुंहतोड़ जवाब
इस प्रयास में भी असफल होने के बाद, 1986-87 के अरुणाचल दुस्साहस के लगभग तीन दशक बाद, इसने डोकलाम (भूटान) में भारत की ताकत का परीक्षण करने की कोशिश की. 2017 में डोकलाम में अपमान का सामना करने के बाद भी यह नहीं रुका और भारत के अक्साई चिन के बड़े क्षेत्रों पर पहले से ही कब्जे के बावजूद जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ का प्रयास किया. हालांकि, अप्रैल 2020 और उसके बाद चीन द्वारा एलएसी पर की गई कार्रवाई के निम्नलिखित निहितार्थ हैं.
चीन ने 2013-14 में यह कहा था कि ताइवान का एकीकरण उसकी पहली प्राथमिकता है. एलएसी के साथ, वह अब दो भौगोलिक छोरों पर विभाजित है, एक ताइवान में और दूसरा पूर्वी लद्दाख में. भारत चीन की विस्तारवादी गतिविधियों के बारे में दुनिया को समझाने में सक्षम रहा है, अधिक से अधिक देश चीन को संदेह की नजर से देख रहे हैं. इसने पूर्वी लद्दाख में बुनियादी ढांचे के विकास की गति को भी तेज कर दिया है, इसके अलावा भारत ने हर मौसम के लिए संपर्क सड़क विकसित किया है जो न केवल सैनिकों के लिए रसद पहुंचाने की और वहां रहने की लागत को कम करेगा बल्कि वर्तमान सुरक्षा को अभेद्य बना देगा. भारत ने अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में अपनी संप्रभुता के निशान लगाना शुरू कर दिया है. यह पैंगोंग त्सो पर एक पुल का निर्माण करके चुशुल में एक हवाई क्षेत्र को व्यावसायिक रूप से खोलकर, सीमावर्ती इलाकों में गांवों को विकसित कर और लुकुंग व उसके बाहर होटल और अन्य नागरिक सुविधाएं विकसित कर अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है.
चीन पूर्वी लद्दाख के सामने अपना बुनियादी ढांचा भी विकसित कर रहा है और इस प्रक्रिया में किसी भी संभावित संघर्ष की स्थिति में वह भारत के लिए और टारगेट उपलब्ध करा रहा है. पूर्वी लद्दाख में सेना और संसाधनों की तैनाती से, भारत बुनियादी ढांचे के विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है. इसके माध्यम से वह चीन-पाकिस्तान धुरी को बेअसर करने की स्थिति में होगा और इससे पाकिस्तान को दूसरों से अलग करना संभव होगा. हाल ही में उभरती भारतीय ताकत से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के फायदों को अधिक प्रभावी ढंग से निष्प्रभावी किया जा सकता है. रणनीतिक रूप से भारत, चीन को न केवल उसके प्राथमिक उद्देश्य, ताइवान से, बल्कि अरुणाचल प्रदेश से भी दूर करने में सक्षम रहा है और वह पश्चिम की ओर शिफ्ट हो गया है. भारत ने चीन को मजबूर किया कि वह अपने सैनिकों को कठिनाई भरे इलाकों में तैनात करे, जिसके कारण उसके कई सैनिक हताहत हुए हैं. ऊंचाई वाले इलाकों में तैयार भारतीय सैनिकों की ताकत का बेहतर उपयोग किया जा रहा है.
एलएसी पर चीनी दुस्साहस ने भारत को चौथी रणनीतिक जीत का अवसर दिया है
केवल हॉट स्प्रिंग्स के साथ देपसांग और डेमचोक के पुराने मुद्दों के अलावा अधिकांश भारतीय चिंताओं का समाधान कर लिया गया है. भारत के संकल्प को देखते हुए बाकी मुद्दों को भी भारतीय शर्तों पर हल किया जाएगा. क्वाड (QUAD) का गठन शुरू में इंडो-पैसिफिक के लिए किया गया था, जिसमें प्रमुख चिंताएं अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की थीं. लेकिन बाद में भारत को शामिल किया गया, क्योंकि यह एकमात्र देश है जो आने वाले दशक में चीन के विस्तारवादी नीति को बेअसर करने के लिए कारगर साबित हो सकता है. चीन के छिपे हुए एजेंडे को देखते हुए हम चाहते हैं कि एलएसी गतिरोध जल्द से जल्द खत्म हो जाए, लेकिन इसकी निरंतरता कहीं अधिक फायदेमंद है, खासकर जब तक एलएसी का विवाद और सीमा विवाद पूरी तरह से हल नहीं हो जाता.
1967, 1987, 2017 और अब 2020 के एक्शन के साथ भारत के पास चीन को रणनीतिक रूप से एक बार फिर से हराने का ऐतिहासिक अवसर है. एक बार जब चीन अप्रैल-2020 से पहले की स्थिति पर वापस लौटने के लिए स्वीकार कर लेता है तो यह एक पूर्ण समझौता होगा. आशावाद की स्थिति हमेशा बनी हुई होती है. इस ऐतिहासिक क्षण का फायदा उठाने और एलएसी गतिरोध को चीन के लिए एक बुरे सपने में बदलने के लिए उचित प्रयासों और उनकी निरंतरता की आवश्यकता है. एलएसी पर चीनी दुस्साहस ने भारत को चौथी रणनीतिक जीत उपलब्ध कराने के अवसर प्रदान किए हैं.

सोर्स- tv9hindi.com

Rani Sahu

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