सम्पादकीय

भारत और मुस्लिम देश

Subhi
8 Jun 2022 2:58 AM GMT
भारत और मुस्लिम देश
x
पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के बारे में भारतीय जनता पार्टी के दो पदाधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणी पर जिस प्रकार उन्हें पार्टी से निकालने की कार्रवाई की गई है उससे स्पष्ट होता है

आदित्य नारायण चोपड़ा: पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के बारे में भारतीय जनता पार्टी के दो पदाधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणी पर जिस प्रकार उन्हें पार्टी से निकालने की कार्रवाई की गई है उससे स्पष्ट होता है की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी भारत में धार्मिक सद्भाव बनाए रखने के लिए अपने और पराए के बीच में भेदभाव करना नहीं चाहती। परंतु 57 मुस्लिम देशों के संगठन के महासचिव ने इस मुद्दे पर जिस प्रकार का रुख अख्तियार करते हुए वक्तव्य जारी किया वह किसी भी रूप में अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक संबंधों की मर्यादित रूप रेखा में नहीं आता है। इसी वजह से भारत के विदेश मंत्रालय ने इस वक्तव्य को विभाजन कारी व संकीर्ण मनोवृत्ति से भरा हुआ गुमराह करने वाला बयान करार दिया और अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि भारत में सभी धर्मों के लोगों के साथ एक समान व्यवहार किया जाता है और अल्पसंख्यकों के प्रति भारत सरकार की नीति कभी भी विभेद कार्य नहीं रही है। मुस्लिम देशों के संगठन के कुछ देश पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के मुद्दे पर जिस तरह अतिवादी कदम उठा रहे हैं या प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं वह भारत और अरब देशों की मधुर संबंधों को देखते हुए किसी भी रूप में उचित नहीं है। भारत ने शताब्दियों से अरब दुनिया के साथ अपने संबंधों पर कभी भी मजहब की छाया नहीं पड़ने दी जिसकी वजह से इन देशों के आर्थिक विकास में भारतीयों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही। ईरान की इस्लामी सरकार ने जिस तरह भारत के राजदूत को बुलाकर रोष प्रकट किया वह भी ठीक नहीं समझा जा सकता क्योंकि ईरान और भारत के ऐतिहासिक सांस्कृतिक संबंध इस प्रकार रहे हैं कि विश्व इतिहास की धरोहर समझे जाते हैं। जहां तक कुवैत का प्रश्न है तो उसने अपनी एक व्यापारिक माल से भारतीय उत्पादों का बहिष्कार किया यह भी अतिवादी कदम ही समझा जाएगा क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी भाजपा ने उन दोनों व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई पहले ही कर दी है जिन का विरोध कुवैत कर रहा है। दुनिया जानती है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक राष्ट्र है और इसकी इस व्यवस्था में न्यायपालिका पूर्ण रूप से निष्पक्ष रहकर विभिन्न मजहब के लोगों के बीच में उठने वाले किसी भी विवाद पर पूर्ण रूप से संविधान के नजरिए से ही फैसला करती है।अतः पूरी दुनिया को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि भारतीय समाज की आपसी सहिष्णुता कोई दिखावे की चीज नहीं है बल्कि इस देश के नागरिकों के रक्त में बसी हुई है। मगर इस मुद्दे पर पाकिस्तान के वजीरे आजम जनाब शहबाज शरीफ बोल पड़े। क्या कयामत है कि छाज तो बोल ही रहा है। मगर मगर वह चलनी भी बोल रही है जिसके रग रग में छेद भरे पड़े हैं। शरीफ साहब किस मुंह से अल्पसंख्यकों के साथ बराबरी और उनके नागरिक अधिकारों की वकालत कर रहे हैं जबकि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न एक सामान्य घटना है और हद यह है कि ऐसा करने वालों की याद को बनाए रखने के लिए इमारतें तक तामीर की जाती है। इसलिए गुजारिश यह है कि जनाब शहबाज शरीफ पहले अपने मुल्क की तारीख उठाकर पढ़ लें। मुस्लिम देशों की संगठन को भी पाकिस्तान की शह पर भारत विरोध में कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक मर्यादाओं की बेअदबी होती नजर आए। यह भारत ही है जहां के मुसलमान बिना किसी ऑफ और घर की यहां की शासन व्यवस्था के अभिन्न अंग है और लोकतांत्रिक प्रणाली को चलाने वाले हर हिस्से में इनकी सक्रिय भागीदारी है यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा करने वाली फौज में भी मुसलमान नागरिकों की हिंदू नागरिकों के समान ही भागीदारी है जिसके प्रमाण हमें ढूंढने की जरूरत भी नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी को मुस्लिम देशों के सिरमौर राष्ट्र सऊदी अरब ने अपने देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान देकर कई वर्ष पहले ही यह घोषित कर दिया था कि भारत वास्तव में मजहब के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करता है इसके बावजूद अगर मुस्लिम देशों के संगठन का महासचिव कोई बयान भारत में हुई राजनीतिक घटना के बारे में जारी करता है तो उसे सरकार से जोड़ना उचित नहीं लगता। संपादकीय :सबको मुबारकस्वदेशी हथियारों से लड़ेगी सेनाभट्ठी में झुलसते शहरसर्वधर्म समभाव और भाजपाबिहार में जातिगत जनगणनाकोरोना में उलझ गई गणित की शिक्षाभारत में राजनीतिक लोकतंत्र है इसके बारे में मुस्लिम देशों को कम जानकारी हो सकती है क्योंकि उनके यहां धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की कल्पना करना प्रायः संभव नहीं होता मगर हम 15 अगस्त 1947 के बाद से ही डंके की चोट पर पूरी दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र माने जाते हैं और इसका लक्ष्य और उद्देश्य दोनों नागरिकों को सशक्त करना है चाहे उनका मजहब या पूजा पद्धति कोई सी भी हो। इस व्यवस्था में राजनीतिक पार्टी और उसकी सरकार में भी अंतर रहता है अतः इस हकीकत को मुस्लिम देशों को समझना चाहिए। भारत तो वह देश है जिसे कुछ वर्ष पहले ही मुस्लिम देशों के संगठन के सम्मेलन में भाग लेने की इजाजत दी गई थी। यह काम तब हुआ था जब स्वर्गीय श्रीमती सुषमा स्वराज भारत की विदेश मंत्री थी। मुसलमानों का प्रतिनिधित्व भारत पूरे जोश खरोश से इसलिए करता रहा है क्योंकि भारतीय व्यवस्था में मुसलमान किसी भी रूप में किसी भी संभाग में पीछे नहीं है। यह भी इस देश के वैसे ही सम्मानित नागरिक हैं जैसे कि अन्य धर्मों के लोग। मुस्लिम देशों को पता होना चाहिए यह वह देश है जिसमें :''कोई बोले राम राम कोई खुदाएकोई देेवे गुसैंया कोई अल्लाए।''


Next Story