सम्पादकीय

भारत और अमेरिका

Subhi
13 April 2022 4:06 AM GMT
भारत और अमेरिका
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच हुआ सीधा संवाद दोनों देशों की एक-दूसरे के लिए अहमियत बताता है। दोनों नेताओं के बीच यह वार्ता कई लिहाज से महत्त्वपूर्ण रही है।

Written by जनसत्ता: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच हुआ सीधा संवाद दोनों देशों की एक-दूसरे के लिए अहमियत बताता है। दोनों नेताओं के बीच यह वार्ता कई लिहाज से महत्त्वपूर्ण रही है। सबसे बड़ी बात यह कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत की तटस्थता से अमेरिका जिस तरह परेशान है, उससे यह संदेश जा रहा था कि इसे लेकर दोनों देशों के बीच तनाव पैदा हो गया है।

इस वार्ता के साथ ही, दोनों देशों के बीच विदेश और रक्षा मंत्रियों के स्तर की 'टू प्लस टू' वार्ता भी संपन्न हो गई। तीसरी बात यह कि अगले महीने क्वाड की बैठक भी होगी। हाल की वार्ता ज्यादा महत्त्वपूर्ण इसलिए भी है कि इसमें भारत ने अमेरिकी नेतृत्व को अपने रुख से एक बार फिर अवगत करा दिया। भारत ने साफ कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मसले पर वह तटस्थता की नीति पर ही चलेगा।

दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर अमेरिका लगातार इस कोशिश में है कि भारत तटस्थता की नीति छोड़ कर उसके साथ आ जाए। यूक्रेन के पक्ष में खड़े अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। अमेरिका अपने सहयोगी देशों पर रूस से तेल नहीं खरीदने और उसके साथ व्यापार बंद करने का दबाव भी बना रहा है। ऐसा ही दबाव उसने भारत पर भी बनाया। कुछ दिन पहले अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने दिल्ली आकर भारत को चेताया भी था कि वह अमेरिकी प्रतिबंधों को न मानने का मतलब समझे। तभी जापान के प्रधानमंत्री भी भारत आए थे।

आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने भी प्रधानमंत्री के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए शिखर बैठक की थी। अमेरिका की इन सारी कवायदों का मकसद यही था कि रूस के खिलाफ भारत उसके साथ खड़ा हो जाए। लेकिन हाल की वार्ता में भी भारत ने साफ कहा कि वह तटस्थता की नीति पर ही चलेगा। हां, यूक्रेन के बुच शहर में जो कत्लेआम हुआ, भारत उसकी निंदा करता है और इस घटना की जांच की मांग का समर्थन करता है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने रूस और यूक्रेन दोनों के राष्ट्रपति से फोन पर बातचीत में शांतिकी अपील कर चुके हैं और यह सुझाव भी रखा कि दोनों राष्ट्रपतियों को सीधी बात कर समाधान निकालना चाहिए।

भारत के रूस और अमेरिका दोनों के साथ सैन्य और कारोबारी रिश्ते हैं। रूस तो भारत का अमेरिका से भी पुराना दोस्त है। ऐसे में भारत दोनों से संतुलन बना कर चलता आया है। यही होना भी चाहिए। भारत की नीति में राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि है। ऐसे में भारत क्यों किसी के दबाव में आएगा? रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली खरीदने को लेकर अमेरिका का रुख हैरान करने वाला ही रहा है। भारत को जिससे ठीक लगे, उससे व्यापार करे, तेल खरीदे, हथियार सौदा करे।

इसमें किसी का दबाव क्यों होना चाहिए? हालांकि सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता और न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) की सदस्यता के मुद्दे पर अमेरिका ने समर्थन दोहराने की बात कह कर अपनापन दिखाने की कोशिश की, जो वह पहले भी करता रहा है। मानवाधिकारों के मुद्दे पर भारत को घेरने की उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। सच तो यह है कि वैश्विक राजनीति में अमेरिका भारत की उपयोगिता समझ रहा है। इसीलिए उसने अपने चौगुटे में जापान और आस्ट्रेलिया के साथ भारत को भी रखा है। यह सही है कि दोनों देश शिक्षा, कारोबार, हथियार खरीद जैसे मामलों में एक दूसरे के सहयोगी हैं। पर वैश्विक दबावों और हितों के लिए अगर रिश्ते प्रभावित होने लगें, तो फिर 'बेहतर संबंधों' की बात बेमानी ही लगती है।


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