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बल्कि अंतिम आदमी को नियंत्रक बनने का वास्तविक हक हासिल हो पाएगा।
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर पूरे देश में उत्सव का माहौल बनाया गया है, जो निश्चित रूप से अच्छी बात है। लेकिन आज हम जिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, वह गंभीर चिंतन का विषय है। आजादी के बाद हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने जिस नए भारत के निर्माण का कार्य शुरू किया था, उसकी बुनियाद में आम आदमी था, अंतिम आदमी था। विकास का हर कदम उस अंतिम आदमी को ध्यान में रखकर उठाया जाना था। इसलिए महात्मा गांधी ने अभिजात कांग्रेस को आम आदमी की कांग्रेस बनाया, जिसमें बड़े पैमाने पर जनभागीदारी सुनिश्चित की गई।
उसका उद्देश्य यह था कि सत्य और अहिंसा की बुनियाद पर आम आदमी को संगठित करके अंग्रेजों से जो स्वराज हासिल किया जाएगा, वह स्थायी स्वराज होगा। अपने रचनात्मक आंदोलनों द्वारा, सविनय अवज्ञा आंदोलन के जरिये उन्होंने भारत की जनता के मन में यह भरोसा जगाया था, जिसका प्रभाव अगस्त क्रांति में दिखाई पड़ा था। आठ अगस्त, 1942 को कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित कर यह घोषित किया था कि हम जिस आजादी के लिए लड़ रहे हैं, वह आजादी किसी एक जाति, एक समूह, एक धर्म या आर्थिक समृद्धि वाले एक समूह की नहीं होगी, बल्कि देश के हरेक नागरिक के लिए होगी। लेकिन आज हम देखते हैं कि जो भावना, जो उमंग, उत्साह आजादी को लेकर था, वह आम लोगों में नहीं रह गया है। वह उमंग राज चलाने वालों और राज चलाने की आकांक्षा रखने वालों में तो है, लेकिन आम नागरिकों में नहीं है।
इसकी वजह है कि आज बेरोजगारी चरम पर है। वोट के लिए समाज को बांटा जा रहा है। सामाजिक समरसता खत्म होती जा रही है। महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है और सबसे बड़ी बात यह है कि बालिग मताधिकार के जरिये आम लोगों को जो अधिकार दिया गया था कि वह सत्ता का नियंत्रक होगा, वह आज याचक बना गया है और राज्य सत्ता द्वारा नियंत्रित हो रहा है। यह स्थिति देखकर मेरे जैसे गांधीजन के मन में यह सवाल उठता है कि क्या मुट्ठी भर लोगों के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी थी हमारे पूर्वजों ने। यह चिंतन का विषय है कि इस देश की आम जनता को वास्तविक रूप में आजादी का एहसास कब होगा और आम नागरिक लोकतंत्र में कब निर्णायक बन पाएगा! इसलिए गांधी विचार के एक कार्यकर्ता के नाते मेरी अपील है कि जिस लोकतंत्र की अवधारणा लेकर हम आगे बढ़े थे, उसके लोक को जागृत और संगठित किया जाए कि वह याचक न रहे, बल्कि इस व्यवस्था का नियंत्रक हो सके।
महात्मा गांधी ने आजादी के बाद नए भारत के निर्माण के लिए कुछ बुनियादी सिद्धांत बताए थे। पहला यह कि सामान्य आदमी और सबसे ऊपर के आदमी के बीच के भेद को निरंतर खत्म किया जाए। उनका सपना था कि गांव-गांव में कृषि और ग्रामोद्योग के आधार पर एक स्वायत्त आर्थिक व्यवस्था होगी, जिसमें भुखमरी, बेरोजगारी नहीं होगी और लोग अपने ईमान और मेहनत से कमाई रोटी खाएंगे। स्वस्थ और संतुलित जीवन जिएंगे। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि पश्चिम की जो तथाकथित औद्योगिक क्रांति हमें आकर्षक दिखाई देती है, वह अंततः हमें विनाश की ओर ले जाएगी। आज वही सब प्रत्यक्ष दिख रहा है। आज एक देश, दूसरे देश पर वर्चस्व बनाने की कोशिश कर रहा है और इसमें सबसे ज्यादा फायदा वह देश उठा रहा है, जो हथियारों का सबसे अधिक निर्माण करता है। उन्होंने कहा था कि यह जो विकास की अंधी दौड़ है, वह विनाश की ओर ले जाती है, जिसमें भारत को नहीं पड़ना चाहिए। बहुत से लोग यह गलतफहमी पैदा करते हैं कि गांधी प्रौद्योगिकी के खिलाफ थे। यह बिल्कुल गलत बात है। गांधी वैसी टेक्नोलॉजी चाहते थे, जो मनुष्य की कुशलता, उसकी उत्पादकता और रचनात्मकता को मशीन द्वारा खत्म न कर दे। इसी कारण आज बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। आज देश में एक तरफ अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है, दूसरी तरफ गरीबी में जीने वाले लोगों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है।
गांधी जी ने काफी सोच-विचार कर कहा था कि गांव की बुनियाद पर ही स्वराज की नई रचना होगी, जिसमें गांवों का पुनर्निर्माण किया जाएगा, गांवों की आर्थिक व राजनीतिक स्वायत्तता होगी और सांस्कृतिक विकास होगा और इस तरह एक नया भारत बनेगा, जो स्वायत्त ग्राम गणराज्यों का एक महासंघ होगा। अफसोस कि हम गांधी के मार्ग पर नहीं चल सके, बल्कि आज तो उनके कद को छोटा करने की भी कुत्सित कोशिश होने लगी है। लेकिन गांधी भारतीय इतिहास के ऐसे महापुरुष हैं, जो भारतीय राजनेताओं के लिए मजबूरी बन गए हैं। उनके विचारों पर चलना कठिन है, लेकिन उनसे पीछा भी नहीं छुड़ाया जा सकता। गांधी के बताए मार्गों पर चलकर ही हम अपने देश, अपने लोकतंत्र का विकास कर सकते हैं। आजादी के इस अमृत वर्ष में अगर हम अपनी रीतियों-नीतियों की समीक्षा करें और गांधी के विचारों के आधार पर लोकतांत्रिक मूल्य व्यवस्था कायम करने की कोशिश करें, तो न केवल देश का विकास होगा, बल्कि अंतिम आदमी को नियंत्रक बनने का वास्तविक हक हासिल हो पाएगा।
सोर्स: अमर उजाला
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