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- नसीहत देने की लाइलाज...
भारत का अंतरराष्ट्रीय कद जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे उसे नीचा दिखाने या बेवजह नसीहत देने का काम भी तेज हो रहा है। इस काम में विभिन्न पश्चिमी देश, उनकी संस्थाएं और उनका मीडिया भी शामिल है। कोरोना संक्रमण का कहर टूटने के बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया के एक बड़े हिस्से का मानना था कि भारत में लाशों के ढेर लग जाएंगे। जब ऐसा नहीं हुआ तो यही मीडिया इस पर हैरानी जताने लगा कि आखिर बड़ी आबादी वाले देश में इतने कम लोग कैसे मरे? कुछ यह आशंका जाहिर करने में जुट गए कि कहीं कोविड से मरे लोगों की मौतों को छिपाया तो नहीं गया? उन्हें इससे निराशा हुई कि और सब चीजें तो छिपाई जा सकती हैं, लेकिन मौतें नहीं। जब भारत ने कोविड रोधी टीका बनाने में सफलता हासिल कर ली तो उसमें भी नुक्स निकालने की कोशिश की गई और भारत बायोटेक की वैक्सीन को मंजूरी देने के बाद ऐसे सवाल खड़े किए गए कि आखिर तीसरे चरण के ट्रायल का विवरण सामने आए बिना उसे मंजूरी कैसे दे दी गई? ऐसे सवाल उठाने वालों को तब निराशा हुई, जब पता चला कि ऐसे और भी टीके थे, जिन्हें इसी तरह मंजूरी मिली। कुछ समय पहले तक इसकी आशंका थी कि इस तरह के सवाल उठेंगे कि भारत अपने लोगों को टीका लगाए बगैर दूसरे देशों को टीके की आर्पूित क्यों और कैसे कर रहा है, लेकिन प्रतिदिन दस लाख से अधिक लोगों के टीकाकरण के बाद ऐसे सवाल उठाने की तैयारी कर रहे परसंतापी कसमसा कर रह गए। किसी न किसी बहाने भारत को कठघरे में खड़े करने की उनकी मंशा पूरी कर दी अमेरिकी संस्था 'फ्रीडम हाउस' की उस रपट ने, जिसमें कहा गया है कि अब भारत स्वतंत्र देश नहीं रहा।