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महिलाओं का यौन शोषण फिर सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट ने 12 मई को एक फैसले में कहा है कि यौन उत्पीडऩ से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के कार्यान्वयन में ‘गंभीर खामियां’ और ‘अनिश्चितता’ हैं, जिससे कई कामकाजी महिलाओं के पास अपनी नौकरी छोडऩे के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, फैसला लिखने वाली जस्टिस कोहली ने कहा, ‘इस तरह के निंदनीय कृत्य का शिकार होना न केवल एक महिला के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है, बल्कि यह उसके भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है। अक्सर यह देखा जाता है कि जब महिलाएं कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ का सामना करती हैं, तो वे इस तरह के दुव्र्यवहार की शिकायत करने से हिचकती हैं। उनमें से कई तो अपनी नौकरी छोड़ भी देती हैं।’ माननीय अदालत ने नोट किया, यह वास्तव में एक खेदजनक स्थिति है और सभी राज्य अधिकारियों, सार्वजनिक प्राधिकरणों, निजी उपक्रमों, संगठनों और संस्थानों की खराब रवैये का प्रदर्शन करती है, जो यौन उत्पीडऩ से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम को अक्षरश: लागू करने के लिए बाध्य हैं।
अदालत ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सत्यापित करने के लिए समयबद्ध अभ्यास करने का निर्देश दिया कि क्या मंत्रालयों, विभागों, सरकारी संगठनों, प्राधिकरणों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, संस्थानों, निकायों आदि ने आंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी), स्थानीय समितियों (एलसी) और आंतरिक समितियों (आईसी) का गठन अधिनियम के तहत किया है। इन निकायों को आदेश दिया गया है कि वे अपनी-अपनी समितियों का विवरण अपनी वेबसाइटों पर प्रकाशित करें। यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट के 15 मार्च, 2012 के फैसले के खिलाफ दायर एक अपील में आया, जिसमें यौन उत्पीडऩ की शिकायतों के आधार पर नौकरी से बर्खास्त करने के अधिकारियों के फैसले के खिलाफ गोवा विश्वविद्यालय के एक कर्मचारी की रिट याचिका को खारिज कर दिया गया था। महिलाओं के यौन शोषण की बात कार्यस्थल तक सीमित नहीं है। खेलों की दुनिया को ही लें, दुनिया के कई देशों की तरह भारतीय महिला एथलीट और पहलवान भी यौन उत्पीडऩ का सामना कर रही हैं। कई मामलों में कोच और मेंटर ही शोषण करने वालों में शामिल हैं। एथलीट और पहलवान ऐसे सिस्टम की मांग कर रही हैं, जहां वे बिना किसी डर के शिकायत कर सकें। पिछले साल जुलाई में एक बड़ा मामला सामने आया था। उस समय सात महिला एथलीटों ने प्रसिद्ध खेल कोच के खिलाफ यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया था। 19 वर्षीय एक महिला एथलीट से जुड़े मामले में आरोपी को गिरफ्तार किया गया था।
इस एथलीट ने अपने आरोप में कहा था कि किसी तरह का विरोध करने पर कोच ने उसे और उसके परिवार के सदस्यों को जान से मारने की धमकी दी थी। इस बात में शक नहीं है कि अक्सर यौन शोषण में शामिल लोग बाहुबली ही होते हैं और उनका शिकार कमजोर महिलाएं होती हैं। ग्लोबल ऑब्जर्वेटरी फॉर जेंडर इक्वालिटी एंड स्पोर्ट की सीईओ बताती हंै कि ‘खेल के क्षेत्र में कोच और एथलीट के संबंध के बीच पद का जो फासला होता है, उसकी वजह से एथलीट विशेष रूप से कमजोर होते हैं। खेल में चापलूसी की संस्कृति है, इसलिए ‘ग्रूमिंग’ आम बात हो जाती है। इस वजह से एथलीटों के लिए आगे आना और शिकायत करना मुश्किल हो जाता है।’ वह आगे बताती हैं कि ‘खेलों में एक और सामान्य बात यह है कि सभी लोग सभी चीजें देखते हैं, लेकिन कोई सामने नहीं आना चाहता। दूसरे शब्दों में कहें, तो लोग तमाशबीन खड़े रहते हैं। वे दुव्र्यवहार के बारे में जानते हुए भी किसी तरह का कदम नहीं उठाते हैं। लोगों के खुलकर न बोलने और सामने न आने की वजह से आरोपी के पक्ष में यथास्थिति बरकरार रहती है। यह खासकर उन मामलों में ज्यादा होता है, जब आरोपी शक्तिशाली हो।’ सूचना के अधिकार के आवेदन से मिले आंकड़ों के अनुसार 2010 से 2020 के बीच भारतीय खेल प्राधिकरण को यौन उत्पीडऩ की 45 शिकायतें मिलीं। इनमें 29 कोच के खिलाफ की गई थीं। इतनी शिकायतों के बावजूद जिस स्तर पर कार्रवाई होनी चाहिए थी, उतनी नहीं हुई। क्या हमारे यहां खेल के क्षेत्र में दुव्र्यवहार इस तंत्र का अभी भी हिस्सा बना हुआ है।
भारत में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय खेल संघों की संख्या 56 है। हालांकि इनमें से महज कुछ ही संघ ऐसे हैं जिनके पास विशेष रूप से यौन उत्पीडऩ की जांच के लिए आंतरिक शिकायत समितियां हैं। कई एथलीट इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारतीय खेलों में यौन शोषण आम बात है। महिला पहलवानों द्वारा यौन शोषण का आरोप आहत करने वाला है। कई कारणों के चलते वर्षों तक शोषण के मानसिक आघात से गुजरने के बाद असली दोषियों का नाम सामने लाना मुश्किल हो सकता है। इसको रोकने के लिए प्रतिस्पर्धी खेलों में चयन के लिए महिलाओं को जिम्मेदारी दी जाए। ऐसे संगठनों का नेतृत्व करने के लिए महिला एथलीटों की कोई कमी नहीं है। कई एथलीट और खिलाड़ी यह भी मानते हैं कि सरकार को सभी खेल इकाइयों के लिए आंतरिक शिकायत समितियों के प्रदर्शन की जानकारी देने वाली नियमित रिपोर्ट प्रकाशित करना और संगठन की वेबसाइट पर विवरण प्रकाशित करना अनिवार्य करना चाहिए। स्पोट्र्स में महिला शोषण को लेकर जो शिकायतें आती हैं, उन्हें खेल के सिस्टम को बदलने और इसे सुरक्षित बनाने के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए। बहुत कम ध्यान में आने वाली घटनाओं में मानसिक रूप से बीमार महिलाओं के साथ होने वाली यौन शोषण की घटनाओं के मामलों में आमतौर पर शिकायत दर्ज नहीं की जाती है। इसका मूल कारण है कि मानसिक रूप से बीमार ये महिलाएं अपना यौन शोषण करने वाले व्यक्ति की पहचान करने में असमर्थ रहती हैं। यौन शोषण का शिकार हुईं महिलाओं के अनुसार इन मामलों में आरोपी व्यक्ति अपराध को अंजाम देने के बाद घटनास्थल से फरार हो जाते हैं।
कई बार ऐसा भी होता है कि यौन शोषण अथवा बलात्कार का शिकार हुईं मानसिक रूप से बीमार इन महिलाओं को बच्चे को जन्म भी देना पड़ता है। एक गैरसरकारी संगठन (एनजीओ) ने पहचान गुप्त रखे जाने की शर्त पर कहा कि आपराधिक मानसिकता और पृष्ठभूमि वाले लोग आमतौर पर मानसिक रूप से बीमार इन महिलाओं को अपना शिकार बनाते हैं। इन मामलों में पीडि़ता के मानसिक रूप से बीमार होने के कारण आरोपी के बच निकलने की संभावना अधिक होती है। समाज के लिए शर्मनाक है कि कुछ नेता, कुछ अभिनेता, फिल्मों के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर, कुछ धर्म गुरु, कुछ डॉक्टर, कुछ अधिकारी, कुछ टीचर, कुछ स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालयों के प्रबन्धक, कुछ स्पोट्र्स कोच, कुछ बॉस इत्यादि महिला यौन शोषण में लगातार संलिप्त पाए जा रहे हैं। ये एक महिला की महिला होने के कारण की मजबूरी का फायदा उठाने में अग्रणी रोल अदा कर रहे हैं। आखिर क्यों? महिलाओं के साथ जो यौन उत्पीडऩ, शोषण, भेदभाव होता है, उसका प्रभाव न केवल मानसिक रूप से पड़ता है, बल्कि इसके साथ-साथ उन पर किए जाने वाले यौन उत्पीडऩ का शारीरिक प्रभाव भी पड़ता है। क्या सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा? कम से कम व्यवस्था सभी राज्यों में अपने द्वारा कंट्रोल किए जा रहे विभागों से हर माह यौन शोषण की शिकायतों की डिटेल तो मांग ले, तो यह बेहतर ही होगा।
डा. वरिंद्र भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल :[email protected]
By: divyahimachal
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Rani Sahu
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