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कोरोना की दूसरी लहर ने जिस तरह कहर बरपाया, उससे स्वाभाविक ही चिकित्सा विशेषज्ञों और चिकित्सा कर्मियों की चिंता बढ़ी है।
कोरोना की दूसरी लहर ने जिस तरह कहर बरपाया, उससे स्वाभाविक ही चिकित्सा विशेषज्ञों और चिकित्सा कर्मियों की चिंता बढ़ी है। पहली लहर में अठारह साल से कम उम्र के बच्चों पर संक्रमण का खतरनाक असर नहीं देखा गया था। मगर दूसरी लहर में नवजात बच्चों तक पर इसका प्रभाव पड़ा। इसकी बड़ी वजह है कोरोना विषाणु का तेजी से अपना स्वरूप बदलना। दूसरी लहर में इसका डेल्टा स्वरूप उभरा, तो अब उसने बदल कर उससे भी खतरनाक स्वरूप ग्रहण कर लिया है।
फिलहाल उससे संक्रमित मरीजों की संख्या कम है, पर उसका खतरा लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में बच्चों की सेहत को लेकर चिंता गहरी हुई है। कोरोना से पार पाने का मुख्य हथियार फिलहाल टीकाकरण माना जा रहा है। मगर भारत में अठारह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए अभी तक टीका उपलब्ध नहीं था। अच्छी बात है कि अब बच्चों के लिए टीके का परीक्षण भी अपने अंतिम चरण में है और यह जुलाई के अंत या फिर अगस्त के पहले सप्ताह तक यह टीकाकरण केंद्रों पर उपलब्ध हो सकेगा। कोविड-19 कार्य समूह के प्रमुख ने आश्वस्त किया है कि जाइडस कैडिला का जाइकोव-डी नामक यह टीका, जुलाई के बाद अगले एक-दो महीने के भीतर, बारह से अठारह वर्ष आयुवर्ग के कम से कम एक करोड़ बच्चों को लगाया जा सकेगा।
अभी तक अठारह साल से कम उम्र के बच्चों का टीकाकरण न होने की वजह से पढ़ाई-लिखाई संबंधी तमाम गतिविधियां रोकनी पड़ी हैं। दसवीं-बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं रद्द करनी पड़ीं। ऊपर की दूसरी कक्षाओं के विद्यार्थियों को भी दो सत्रों में परेशानियां झेलनी पड़ी हैं। इसके चलते प्रतियोगी परीक्षाएं भी टाली गई हैं। इस तरह विद्यार्थियों की पढ़ाई-लिखाई का काफी नुकसान हो रहा है। दाखिले, कक्षाओं के संचालन और परीक्षा आदि को लेकर शिक्षण संस्थाओं ने इस समस्या का हल निकालने का प्रयास किया है।
मगर स्कूल न जाने, बाहरी गतिविधियां रुक जाने, उच्च अध्ययन से जुड़ी कई तकनीकी गतिविधियां बाधित होने की वजह से बच्चों के व्यक्त्वि विकास पर तो प्रभाव पड़ ही रहा है, उनमें कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशनियां भी नजर आने लगी हैं। इसलिए स्कूल-कॉलेज खोलना सरकारों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। अभी तीसरी लहर की अशंका जताई जा रही है, जिसमें बच्चों पर खतरनाक प्रभाव पड़ने को लेकर चिंता व्याप्त है। मगर स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि बच्चों का टीकाकरण शुरू होने के बाद पढ़ाई-लिखाई संबंधी गतिविधियों को सुचारु बनाने पर विचार किया जा सकता है।
कोरोना विषाणु के बदलते स्वरूप की वजह से संक्रमित लोगों के शरीर में कई चिंताजनक और लंबे समय तक बनी रहने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी उभर रही हैं। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति को कम उम्र में ही इसका संक्रमण हो जाता है, और जैसा कि तीसरी लहर में कोरोना के बदले स्वरूप के ज्यादा खतरनाक ढंग से सिर उठाने की आशंका व्यक्त की जा रही है, तो कई लोगों को जीवन भर उन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अभी बहुत सारे माता-पिता के लिए समस्या है कि वे कब तक बच्चों को घर की चारदीवारी में कैद करके रख सकते हैं। बच्चे उस तरह सावधानी भी नहीं बरत पाते, जैसे अधिक उम्र के लोग बरतते हैं। इसलिए अठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए टीकाकरण अभियान की शुरुआत से निस्संदेह लोगों को राहत मिलेगी और सुरक्षा का चक्र कुछ और मजबूत होगा।
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