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कोई भी नई व्यवस्था अपने वास्तविक रूप में आने में समय लेती है। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी के साथ भी यही हो रहा है।
मनीष पांडेय| कोई भी नई व्यवस्था अपने वास्तविक रूप में आने में समय लेती है। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी के साथ भी यही हो रहा है। एक जून, 2017 को अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सुधार करते हुए देश में इसे लागू किया गया था। विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं पर केंद्र और राज्यों के स्तर पर लगने वाले सभी 17 प्रकार के करों-शुल्कों को खत्म कर एक देश-एक कर की व्यवस्था लाई गई थी। तब से चार साल बीत चुके हैं, कर की अलग-अलग दरों को छोड़ दें तो अब तक इसका अनुभव सही रहा है। इसमें दो मत नहीं कि जीएसटी व्यवस्था देश की अर्थव्यवस्था को तेजी से एक संगठित रूप दे रही है।
जब कोई अर्थव्यवस्था संगठित रूप लेती है तो अप्रत्यक्ष कर के साथ-साथ प्रत्यक्ष कर का भी दायरा बढ़ता है। इससे देश को दोहरा फायदा होता है। चार वर्षो में करदाताओं का आधार 66.25 लाख से बढ़कर 1.28 करोड़ हो चुका है। इसके तकनीक आधारित होने से जो भी कर चोरी को अंजाम दे रहा है वह ऑडिट के दौरान आसानी से पकड़ में आ जा रहा है। अब अपने कारोबार को बिना इसके तहत पंजीकरण कराए किसी के लिए कामकाज करना संभव नहीं रह गया है। इससे हर स्तर पर पारदर्शिता बढ़ी है। अब सरकार को पता होता है कि किस कंपनी में कितने कर्मचारी काम कर रहे हैं। इससे कर्मचारियों को सरकार द्वारा निर्धारित भविष्य निधि सहित सभी जरूरी योजनाओं के लाभ मिल रहे हैं। पिछले चार साल में दो लाख से अधिक फर्जी कंपनियां अगर पकड़ में आई हैं तो वह इसी जीएसटी की देन है।
जीएसटी का दायरा बढ़े और इसका फायदा ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिल सके, इसके लिए इसमें कई स्तरों पर सुधार की गुंजाइश अभी बनी हुई है। अभी जीएसटी के पांच स्लैब हैं। इससे इसकी संरचना थोड़ी जटिल बनी हुई है। इन्हें कम कर दो या तीन किया जाना चाहिए। जैसे-12 और 18 प्रतिशत वाले स्लैब को मिलाकर एक ताíकक दर बनाई जा सकती है। इसके अलावा पेट्रोलियम, बिजली, रियल एस्टेट और शराब को भी जीएसटी के दायरे में लाने की मांग लंबे समय से हो रही है। अब समय आ गया है कि जीएसटी परिषद इस पर गंभीरता से विचार करे।
पूरे देश में इन पर समान रूप से कर लगाए जाने से इनकी कीमतों को लेकर विसंगति दूर होगी और वे सस्ते भी होंगे। इसके साथ-साथ जो राज्य जीएसटी संग्रह में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं उन्हें केंद्र सरकार को कुछ बोनस देना चाहिए। तिमाही रिटर्न भरने और तिमाही पेमेंट की व्यवस्था लाने पर भी विचार किया जाना चाहिए। उम्मीद है जैसे-जैसे सुधार की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी जीएसटी का दायरा बढ़ेगा। और फिर देश का टैक्स-जीडीपी अनुपात भी बढ़ेगा। अभी यह अनुपात 9.9 है, जो ओईसीडी (आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन) देशों के 34 प्रतिशत से काफी कम है।
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