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पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए कुछ करने की जरूरत है, क्योंकि उनके बढ़ते दाम आम आदमी के लिए मुसीबत बन रहे हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर लगाम लगाने के जतन इसलिए किए जाने चाहिए, क्योंकि यह आशंका उभर आई है कि उनके चलते विकास की गति पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। एक ऐसे समय जब विकास कार्यों को गति देने की कोशिश की जा रही है, तब फिर यह देखा ही जाना चाहिए कि आखिर पेट्रोलियम पदार्थो में वृद्धि का सिलसिला कायम रहना कहां तक उचित है? इस मामले में केंद्र को भी सक्रिय होना चाहिए और राज्यों को भी। उनके बीच आरोप-प्रत्यारोप का कोई मतलब इसलिए नहीं, क्योंकि केंद्र हो या राज्य सरकारें, दोनों ही पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों से लाभान्वित होती हैं। यदि राज्य सरकारें यह चाह रही हैं कि पेट्रोल-डीजल की मूल्य वृद्धि थामने के लिए केंद्र सरकार कुछ करे तो उन्हें भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह अपेक्षा उचित नहीं कि केंद्र सरकार तो पेट्रोल-डीजल पर अपने टैक्स कम करे, लेकिन राज्य सरकारें कुछ न करें। उचित यह होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर ऐसे उपाय करें, जिससे आम जनता को राहत मिले। यह सही है कि केंद्र और राज्यों के समक्ष राजस्व बढ़ाने की चुनौती है, लेकिन इसके लिए अन्य उपाय खोजे जाने चाहिए। पेट्रोलियम पदार्थो पर टैक्स के जरिये राजस्व जुटाने की एक सीमा होनी चाहिए।