सम्पादकीय

बढ़ती आबादी घटते संसाधन

Subhi
30 Aug 2021 1:00 AM GMT
बढ़ती आबादी घटते संसाधन
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आबादी बढ़ने के साथ घटते संसाधन और बढ़ती बेरोजगारी देश में कई आसन्न समस्याओं को जन्म दे रही है। इ

आबादी बढ़ने के साथ घटते संसाधन और बढ़ती बेरोजगारी देश में कई आसन्न समस्याओं को जन्म दे रही है। इससे विकास की राह में बाधाएं आ रही हैं। केंद्र और राज्य सरकारों की तमाम परिवार नियोजन योजनाओं, अभियानों और स्वयंसेवी संगठनों की सशक्त भूमिका के बावजूद भारत में जनसंख्या वृद्धि की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। जाहिर है, परिवार नियोजन के सरकारी अभियान पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहे हैं।

दुनिया की बढ़ती आबादी को लेकर आ रही रिपोर्टें चौंकाने वाली हैं। संयुक्त राष्ट्र की रपट के मुताबिक 2050 तक एशिया महाद्वीप की आबादी पांच अरब हो जाएगी और सदी के अंत तक दुनिया की आबादी बारह अरब तक पहुंच जाएगी। दिलचस्प आंकड़ा तो यह है कि 2024 तक चीन और भारत की आबादी बराबर हो जाएगी और 2027 में भारत चीन को पछाड़ कर दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। पर बढ़ती आबादी को लेकर कुछ राहत दिलाने वाले आंकड़े भी हैं, जिनके मुताबिक पिछले कुछ दशकों में आबादी की रफ्तार में कुछ कमी आई है, खासकर 1971-81 के मध्य वार्षिक वृद्धि दर 2.5 फीसद थी, जो 2011-16 के दौरान घट कर 1.3 फीसद रह गई।
बेतहाशा बढ़ती आबादी का असर खाने-पीने के सामान और दवाइयों, यातायात के साधन, बिजली, और आवास जैसी जरूरी चीजों तथा संसाधनों की उपलब्धता पर पड़ता है। इसके अलावा पर्यावरण, भुखमरी, बेरोजगारी और लोगों की सेहत पर असर को भी साफतौर पर देखा जा सकता है। गौरतलब है कि सबको बेहतर तालीम, स्वास्थ्य सुविधाएं, रोजगार, आवास और संतुलित आहार न मिलने की बड़ी वजह बढ़ती आबादी को ही माना जा रहा है। इसके अलावा कुपोषण, गरीबी और असंतुलित विकास भी बढ़ती आबादी की देन हैं।
केंद्र और राज्य सरकारें जनता को बेहतर सेहत, तालीम, रोजगार और संतुलित आहार मुहैया कराने की बात आजादी के बाद से ही करती आई हैं, लेकिन पिछले साढ़े सात दशक में देश की आधी से ज्यादा आबादी को न तो बेहतर तालीम मिल पा रही है और न ही बेहतर सेहत।बढ़ती आबादी को लेकर कुछ दिलचस्प आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आए हैं। इसके मुताबिक संपत्ति और धन के आधार पर कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में भिन्नता देखने को मिलती है।
भारत में यह आंकड़ा सबसे गरीब समूह में 3.2 बच्चे प्रति महिला, मध्य समूह में 2.5 बच्चे प्रति महिला और उच्च समूह में 1.5 बच्चे प्रति महिला है। इससे पता चलता है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में आबादी की बढ़ोत्तरी ज्यादा है। आज की तारीख में भारत की आबादी में युवाओं की आबादी पच्चीस करोड़ से ऊपर है, यानी देश का हर पांचवा व्यक्ति युवा है। ऐसे में इतनी बड़ी आबादी को रोजगार, अच्छा स्वास्थ्य, संतुलित आहार, शिक्षा और आवास मुहैया कराना भारत जैसे विकासशील देश के लिए बड़ी चुनौती तो है ही।


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