सम्पादकीय

मनोरंजन की दुनिया में महिलाओं की बढ़ती संख्या अच्छा संकेत

Gulabi Jagat
24 March 2022 8:45 AM GMT
मनोरंजन की दुनिया में महिलाओं की बढ़ती संख्या अच्छा संकेत
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यह बेहतरीन कहानियां बनाने वालों के लिए और कहानियों का आनंद उठाने का सबसे अच्छा समय है
मोनिका शेरगिल का कॉलम:
यह बेहतरीन कहानियां बनाने वालों के लिए और कहानियों का आनंद उठाने का सबसे अच्छा समय है। भारत के कोने-कोने में ढेर सारी कहानियां मौजूद हैं। चाहे कहानीकार नए हों या अनुभवी, सभी बहुत रचनात्मक तरीकों से कहानियां बना रहे हैं। दर्शक भी नई शैलियों के साथ प्रयोग कर रहे हैं और उनका अन्वेषण कर रहे हैं। पर सबसे महत्वपूर्ण बात है कि अब हमारे पास कम पेश की गई आवाजें सुने जाने, कहानियों को देखे जाने के ज्यादा मौके प्रदान करने की असाधारण क्षमता है।
साथ ही स्ट्रीमिंग सर्विसेज के माध्यम से हमें रोजमर्रा की जिंदगी की कहानियां पर्दे पर देखने को मिल रही हैं। भारत के मनोरंजन उद्योग में हर क्षेत्र की अविश्वसनीय महिलाओं की कहानियां अब तेजी से सामने आ रही हैं। वर्तिका चतुर्वेदी (दिल्ली क्राइम) से लेकर कस्तूरी डोगरा (अरण्यक) तक, कई वास्तविक किरदार पेश किए जा रहे हैं, जो बड़ी ही बहादुरी से जिंदगी के उतार-चढ़ाव का सामना करती हैं। साथ ही उन महिला कहानीकारों को देखकर भी प्रेरणा मिलती है, जो अपने चुनिंदा विषयों और बखूबी पेश किए जाने वाले किरदारों के साथ हर दिन एक नई उपलब्धि हासिल कर रही हैं।
हम सबकी कहानियों के अलग-अलग पहलू हैं। रिश्ते, परिवार, दोस्ती, कॅरिअर, मातृत्व या फिर कुछ और। कभी हम अपने आप को छोटे से शहर में आधारित 'पगलैट' जैसी कहानी की तरफ खिंचते हुए पाते हैं। वहीं, कई बार ऐसा होता है कि हम उन मशहूर एक्टर्स के जीवन के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं, जो एक मां, पत्नी और एक बेटी की भूमिकाओं को संभालने की कोशिश कर रही होती हैं, जैसे अनामिका आनंद ने 'द फेम गेम' में किया है। इन कहानियों ने हमें किरदारों की जिंदगी का हिस्सा बनाया, उन्हें बखूबी पेश किया और बदले में हम उनसे जुड़े, उन्हें लेकर संवेदना पैदा हुई और हमारी सोच का दायरा भी बढ़ा।
आज, महिलाएं परदे के पीछे अपने अनूठे सिनेमाई अंदाज से सबको प्रभावित कर रही हैं। वे दमदार कहानियों को वास्तविकता के संग प्रस्तुत कर रही हैं। ये निर्माता परिभाषित फॉर्मूले और शैलियों से परे जाकर ऐसी कहानियां सामने ला रही हैं, जो दर्शकों से बेहतरीन जुड़ाव बनाती हैं। अन्विता दत्त द्वारा निर्देशित 'बुलबुल' की मंत्रमुग्ध कर देने वाली कहानी, एंथोलॉजी में सबसे प्रभावपूर्ण फिल्मों में से एक 'पावा कढईगल' का निर्देशन करने वाली सुधा कोंगारा से लेकर सोफिया पॉल तक जिन्होंने मलयालम सुपरहिट 'मिनाल मुरली' का निर्माण किया और लीना यादव जिन्होंने व्यावहारिक डॉक्यूमेंटरी-सीरीज 'हाउस ऑफ सीक्रेट्स: बुराड़ी डेथ्स' का निर्देशन किया। ये सभी उदाहरण उन महिलाओं के हैं जो शानदार कहानीकार हैं।
हमें गर्व है कि अब हमारे (नेटफ्लिक्स) वैश्विक कार्यबल में 51.7% महिलाएं हैं, जो कि 2020 के 48.7% से ज्यादा है। भारत में अब तक जितनी भी कहानियां हमने बनाई हैं उनमें से आधे से भी ज्यादा कहानियों में महिलाओं का मुख्य किरदार है- इनमें 'मसाबा मसाबा' से लेकर 'ये काली काली आंखें' शामिल हैं। हर दिन, हम उन कहानियों को पहचानने और बताने में थोड़ा बेहतर करते हैं जो यूनिवर्सल होती हैं, चाहे कहानी का किरदार या उसके कहानीकार कोई भी हों। हम सही मायने में मनोरंजन की दुनिया में महिलाओं के भविष्य को लेकर आशावादी हैं।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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