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असंगठित क्षेत्र के कामगारों के पंजीकरण के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया ई-श्रम पोर्टल एक सराहनीय पहल है
असंगठित क्षेत्र के कामगारों के पंजीकरण के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया ई-श्रम पोर्टल एक सराहनीय पहल है. हाल ही में हम सभी ने देखा कि महामारी के दौरान ऐसे कामगार बहुत अधिक प्रभावित हुए. सरकार के पास अभी तक कोई ठोस आंकड़ा नहीं है, जिससे असंगठित कामगारों की सही संख्या की जानकारी मिल सके. इस कारण उनके लिए सरकारी व्यवस्था करने, नीति-निर्धारण करने तथा समुचित प्रावधान करने में अड़चनें आती हैं. ऐसे में आंकड़ा जुटाने की बड़ी आवश्यकता है.
सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस संबंध में हस्तक्षेप किया था. पहली बार किसी सरकार ने असंगठित क्षेत्र में कार्यरत 93-94 प्रतिशत कामगारों की की ओर ध्यान दिया है. अभी तक संगठित क्षेत्र के पांच-सात फीसदी कामगारों को ध्यान में रखकर ही नीतियां बनती रही हैं. इस लिहाज से श्रम पोर्टल एक अहम कदम है. अगर हमारे पास समुचित आंकड़े उपलब्ध हो जाते हैं, तो सरकार के लिए नीतियां बनाने में सुविधा होगी और श्रमिक संगठन भी कामगारों के हितों के लिए ठोस मांगें सरकार के सामने प्रभावी ढंग से रख सकेंगे. सभी श्रमिक संगठनों ने डाटाबेस बनाने की इस कोशिश का स्वागत किया है.
इस पोर्टल पर पंजीकरण की प्रक्रिया की गति को बढ़ाया जाना चाहिए. रिपोर्टों के अनुसार, अब तक तीन महीने की अवधि में लगभग साढ़े आठ करोड़ श्रमिकों का पंजीकरण हुआ है. आकलनों की मानें, तो असंगठित क्षेत्र में कार्यरत 38 करोड़ श्रमिकों का डाटाबेस तैयार करना है.
यह सरकार का आंकड़ा है, जो 2011 की जनगणना पर आधारित है, लेकिन हमारे हिसाब से देश में 54 करोड़ असंगठित कामगार हैं. जिस गति से पंजीकरण हो रहा है, मुझे लगता है कि सभी कामगारों को पंजीकृत करने में पांच वर्ष से अधिक समय लग सकता है. इसलिए इसकी गति तेज करने की जरूरत है. सरकार की पहल निश्चित रूप से अच्छी है, किंतु इसे अमल में लाने का जिम्मा अधिकारियों का है.
उल्लेखनीय है कि अप्रवासी कामगार कानून, 1979 की व्यवस्था है, लेकिन महामारी के दौरान श्रमिकों की भारी दुर्दशा हुई, क्योंकि इस कानून को लागू नहीं किया गया. जो भी सरकार होती है, वह संसद के माध्यम से कानून तो बना देती है, किंतु उसे व्यवहार में लाने का उत्तरदायित्व जिस नौकरशाही को है, उसे इसमें दिलचस्पी नहीं है. इस रवैये में सुधार लाना होगा.
ऐसी पहलों को सफल बनाने के लिए सरकार को जिस स्तर पर जागरूकता कार्यक्रमों पर ध्यान देना चाहिए, वैसा नहीं हो रहा है. इस प्रयास में श्रमिक संगठनों की भागीदारी नहीं है. मेरी राय में सरकार श्रमिक संगठनों को नकारात्मक दृष्टि से और अवरोध की तरह देखती है. जब तक आप इन संगठनों को साथ नहीं लेंगे तथा त्रिस्तरीय व्यवस्था को लागू नहीं करेंगे, तब तक किसी भी नीति या कार्यक्रम को ठीक से लागू नहीं किया जा सकता है.
सरकार स्वैच्छिक संस्थाओं और सरकारी तंत्र पर भरोसा करती है, पर सरकारी तंत्र को इस संबंध में समुचित रुचि ही नहीं है. ई-श्रम पोर्टल के संबंध में केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को बीस रुपये प्रति पंजीकरण की दर से आवंटन किया है. इस पहल में साझा सेवा केंद्रों के माध्यम से सभी श्रमिकों को मुफ्त पंजीकरण कर कार्ड देने की व्यवस्था है, लेकिन आप देश में कहीं भी चले जाएं, मजदूरों को पंजीकरण के लिए दो सौ से लेकर पांच सौ रुपये का भुगतान करना पड़ रहा है.
सरकार ने तो अच्छी व्यवस्था की कि श्रमिकों का मुफ्त पंजीकरण होगा और सेवा केंद्रों को प्रति कामगार बीस रुपये की दर से दिया जायेगा, जिससे उन्हें भी रोजगार मिले, पर लचर सरकारी नियंत्रण की वजह से बिचौलिये कमाई कर रहे हैं. पंजीकरण की गति धीमी होने की यह बड़ी वजह है, क्योंकि जिसके पास पैसे होंगे, वही इन केंद्रों की सेवा ले सकेगा.
समाज और सेहत के लिए नुकसानदेह चीजों का विज्ञापन बहुत से सिलेब्रिटी करते हैं. अगर सरकार इस पोर्टल को लेकर गंभीर है, तो उसे किसी सिलेब्रिटी से इसका प्रचार कराना चाहिए. स्वैच्छिक संस्थाओं और सरकारी मशीनरी की तुलना में कामगारों के मामले में अधिक अनुभव और समझ श्रमिक संगठनों के पास है. जब यह पोर्टल बीते 26 अगस्त को शुरू हो रहा था, तब केंद्रीय श्रम मंत्री ने कहा था कि कुछ समय के अनुभव के बाद केंद्र और राज्यों के स्तर पर समितियों का गठन किया जायेगा, जिसमें सभी संबद्ध पक्षों को शामिल किया जायेगा.
लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया है. पिछले सात साल से भारतीय श्रम सम्मेलन की एक भी बैठक नहीं बुलायी गयी है. इससे श्रमिक संगठनों के प्रति सरकार के नजरिये का अंदाजा लगाया जा सकता है. अगर ई-पोर्टल पहल को सफल बनाना है, तो श्रमिक संगठनों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी क्योंकि उनकी पहुंच सीधे कामगारों तक है. पंजीकरण के लिए निर्धारित उम्र की सीमा को 15 से 65 साल या उससे अधिक करना चाहिए, जैसा कई सरकारी नौकरियों में है.
अन्य क्षेत्रों में सरकार निगरानी करती है और जरूरत पड़ने पर छापेमारी जैसी कार्रवाई भी होती है. वैसी ही व्यवस्था पंजीकरण केंद्रों के संबंध में भी होनी चाहिए. पंजीकरण के लिए आवश्यक दस्तावेजों से जुड़े नियमों को भी सरल बनाया जाना चाहिए. अभी बैंक खाते और आधार कार्ड के साथ वह मोबाइल नंबर भी देना होता है, जो आधार संख्या से जुड़ा होता है. अक्सर ऐसा होता है कि सस्ती कॉलिंग दर की वजह से मजदूर सिम कार्ड और नंबर बदलते रहते हैं. ऐसे में पंजीकरण में समस्या आ रही है.
अब मजदूरों को आधार के साथ नये नंबर को जोड़ना पड़ रहा है. इससे उनका समय भी बर्बाद होता है और पंजीकरण केंद्रों को पैसे भी देने होते हैं. इस स्थिति में काम और मजदूरी छोड़ कर दिनभर पंजीकरण के लिए लिए दे पाना संभव नहीं है. चुनाव आयोग पहचान के लिए कई दस्तावेजों को मान्यता देता है.
उन्हें इस पंजीकरण के लिए भी स्वीकार किया जाना चाहिए. बहुत से कामगार अभी इतनी मुश्किल उठाने के लिए इसलिए भी तैयार नहीं हैं, क्योंकि इस पंजीकरण के बाद मिलनेवाली सामाजिक सुरक्षा के बारे कोई घोषणा सरकार की ओर से नहीं की गयी है. अभी तो केवल आश्वासन दिये जा रहे हैं. सरकार को ई-श्रम पोर्टल जैसी जरूरी पहल को ठीक से और कम समय में लागू करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए तथा जागरूकता प्रसार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
प्रभात खबर
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